अमला एकादशी आज !


आमल की एकादशी फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। आंवले के वृक्ष में भगवान का निवास होता हैं इसलिए इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान का पूजन किया जाता हैं। आंवला विष्णु भगवान का प्रिय फल है।
आमल की एकादशी एक पवित्र हिन्दू पर्व है। इस दिन अमला को भगवान विष्णु लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। आमल की एकादशी व्रत फाल्गुन शुक्ल पक्ष को एकादशी के दिन किया जाता। ऐसा माना जाता है कि एकादशी समस्त पाप नाश करने में समर्थ है। सौ गाय दान करने का जो फल होता है वही फल आमल की एकादशी करने से प्राप्त होता है।


अमला एकादशी पूजा-
अमला एकादशी भी आमल की एकादशी के रूप में जाना जाता है। इसे फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पर रखा जाता है। इस साल, आंवला एकादशी 12 मार्च 2014 को मनाया जाएगा। यह अमला एकादशी पापों के सभी प्रकार से व्यक्ति को मुक्त कर देते है।
माना जाता है कि आंवला पेड़ भगवान विष्णु के चेहरे से उत्पन्न माना जाता है। इस दिन आंवला के पेड़ में जल चढ़ाना चाहिए। इसके बाद धूप, चंदन, रोली, फूल, आदि से पूजन करना चाहिए। आंवला के पेड़ के नीचे ब्राहमणों को भोजन कराना चाहिए। भगवान विष्णु के भक्त एकादशी व्रत करते हैं। इसमें आंवले के पेड़ की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करता है, वह उस परम धाम में जाता है, जहां साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं।


अमला की एकादशी पर चौघड़िया मुहूर्त।
इस बार संवत 2070 चैत्र शुक्ल पक्ष 12 मार्च 2014 [बुधवार] को अमला एकादशी मनाई जाएगी।
अगले दिन पाराना समय- 06: 52
17: 32 पाराना दिन द्वादशी समाप्ति पल पर
एकादशी तिथि 11 मार्च 2014 पर- 00: 40 पर शुरू होता है।
एकादशी तिथि 12 मार्च 2014 के 15: 11 पर समाप्त होता है।
फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी अमला एकादशी के रूप में जाना जाता है। अमला एकादशी महा शिवरात्रि व होली के बीच पड़ता है। वर्तमान में यह अंग्रेजी में फरवरी या मार्च के महीने में मनाया जाता है।


एकादशी व्रत विधि-
दशमी की रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा भोग विलास से भी दूर रहें। प्रात: एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें; नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ शुद्ध कर लें। वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है, अत: स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करे। यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर आंवले के पेड़ के नीचे जाकर पूजा करें गीता पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें।
विष्णु के द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करें।


महात्म-
जिन्होंने श्रीहरि के व्रत किया है, उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय, देवताओं का पूजन, यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थो में स्नान कर लिया। श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जहां भागवत शास्त्र है, भगवान विष्णु के लिए जहां जागरण किया जाता है और जहां शालीग्राम शिला स्थित होती है, वहां साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं ।


व्रत खोलने की विधि-
द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए। मेरे सात जन्मों के शारीरिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए ।
अमला एकादशी के बारे में एक कथा प्रचलित है।

कथा- प्राचीन काल में भारत में चित्रसेन नामक राजा राज्य करता था । उनके राज्य में एकादशी व्रत का प्रचलन था। प्रजा एवं राजा एकादशी का व्रत रखते थें। एक दिन राजा चित्रसेन शिकार खेलते खेलते दूर निकल गए। वहां पर जंगली जातियों ने उन पर आक्रमण कर दिया। उनके शस्त्रों-अस्त्रों का उनपर कोई प्रभाव नही पड़ा। देखते- देखते जंगली जाति के आदमियों की संख्या बढ़ गई। तो उनके आक्रमण से राजा चित्रसेन संज्ञाहीन होकर पृथ्वी पर गिर पडे़। पृथ्वी पर गिरते ही राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई जो समस्त राक्षसों को मारकर अदृष्य हो गई। जब राजा की मुर्छा टुटी तो उन्हे सब राक्षस मृत पडे़ दिखाई दिये। वे बडे़ आश्चर्य में पड़कर सोचने लगे कि इन्हें किसने मारा है तभी आकाशवाणी हुई, ये समस्त राक्षस तुम्हारे आमला एकादशी व्रत के प्रभाव के कारण मारे गए हैं। यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ तथा अपने राज्य में उसने आमला एकादशी के व्रत का प्रचार करवाया।
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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