खुशवंत का दुखः औरत को बस कामुक नजर से देखा

मशहूर लेखक और स्तंभकार खुशवंत सिंह को इस बात का दुख रहा कि उन्होंने महिलाओं को हमेशा कामुक नजर से देखा। 99 वर्ष की उम्र में खुशवंत सिंह का गुरुवार को निधन हो गया।

पिछले साल प्रकाशित खुशवंतनामा: द लेसंस ऑफ माई लाइफ में उन्होंने दुख जताया कि उन्होंने अपने शुरुआती जीवन में कई बुरे काम किए जैसे गोरैया, बत्तख और पहाड़ी कबूतरों को मारना। उन्होंने लिखा है, 'मुझे इस बात का भी दुख है कि मैं हमेशा अय्याश व्यक्ति रहा। चार साल की उम्र से अब तक मैंने 97 वर्ष पूरे कर लिए हैं, अय्याशी हमेशा मेरे दिमाग में रही।'



 उन्होंने लिखा, 'मैंने कभी भी इन भारतीय सिद्धांतों में विश्वास नहीं किया कि मैं महिलाओं को अपनी मां, बहन या बेटी के रूप में सम्मान दूं। उनकी जो भी उम्र हो, मेरे लिए वे वासना की वस्तु थीं और हैं।' 

खुशवंत सिंह को लगता था कि उन्होंने बेकार के रिवाजों और सामाजिक बनने में अपना बहुमूल्य समय बर्बाद किया और वकील एवं फिर राजनयिक के रूप में काम करने के बाद लेखन को अपनाया। उन्होंने लिखा है, 'मैंने कई वर्ष अध्ययन और वकालत करने में बिता दिए जिसे मैं नापसंद करता था। मुझे विदेशों और देश में सरकार की सेवा करने और पैरिस स्थित यूनेस्को में काम करने का भी दुख है।'

उन्होंने लिखा है कि वह काफी पहले लेखन कार्य शुरू कर सकते थे।  


"बहुत ही विवादास्पद चरित्र वेल खुसवन्त सिंह जी आज हमारे बीच नही रहें . उनका निजी जीवन हमेशा विवादो मे ही रहा पर एक लेखक के रूप मे उन्हे नकारा नही जा सकता. भगवान उनकी आत्मा को शान्ती दें यही हमारी प्रार्थना है."

 
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!