काशी
का गंगा के साथ-साथ जल तीर्थों के कारण भी विशेष महत्व रहा है। इसलिये इसका एक
नाम अष्ट कूप व नौबावलियों वाला नगर भी है। काशी के जल तीर्थ भी गंगा के
समान पूज्य रहे हैं। इन्हीं कुण्डों में एक कुण्ड कुरू क्षेत्र कुण्ड भी
है। अस्सी से पंच मंदिर होते हुए रवीन्द्रपुरी कालोनी जाने वाले मार्ग पर
दाहिनी ओर स्थित कुरू क्षेत्र कुण्ड के बारे में ऐसी मान्यता रही है कि यह
कुण्ड हरियाणा राज्य के पानीपत स्थित कुरूक्षेत्र का ही एक रूप है। प्राचीन
काल में महाभारत की युद्धस्थली रही कुरूक्षेत्र के नाम पर ही इस कुण्ड का नाम
रखा गया,
इस कुण्ड का धार्मिक, अध्यात्मिक महत्व काफी
पहले से रहा है। इस कुण्ड में पर्व आदि पर स्नान का विशेष महत्व रहा है।
पहले इस कुण्ड में काफी जल इकट्ठा रहा करता था, लेकिन धीरे-धीरे कई कारणों
से जल कम होता गया। प्रदूषण व कुण्ड का पर्याप्त रख-रखाव न होने के कारण
अब यह कुण्ड भी धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है। पौराणिक
ग्रंथ ‘मानसी उल्लास’ में काशी के जल कुण्डों, जल तीर्थों का व्यापक व
विशद वर्णन मिलता है। न केवल लोग कुरूक्षेत्र कुण्ड का जल पवित्र माना जाता है
और वहाँ स्नान करते थे बल्कि यहाँ के जल को भगवान पर चढ़ाते थे। कुण्ड
लोगों की प्यास बुझाने का भी एक मुख्य श्रोत था। सूर्य ग्रहण में यहाँ स्नान
करना धार्मिक महत्व था। इसका उल्लेख स्कन्द पुराण काशी खण्ड और काशी रहस्य
में है। स्नान से मनोवांछित फल मिलता है, ऐसी मान्यता है।
कुण्ड
की मौजूदा स्थिति यह है कि इसके चारों तरफ काई का अम्बार है। पानी प्रदूषित
हो गया है। कुण्ड के दक्षिण में पत्थर की कई प्राचीन मूर्तियां हैं जो
उपेक्षा के कारण लुप्त होती जा रही हैं। वर्तमान समय में कुण्ड का स्वरूप काफी
बदल गया है। अब सिर्फ यह कुण्ड उपेक्षित कुण्डों की सूची में है।
काशी
में अब कुण्ड तेजी से अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं। कई महत्वपूर्ण कुण्डों, सरोवरों को पाटकर उस पर
भवन आदि का निर्माण करा दिया
गया है। कई कुण्डों,
पोखरों
पर अवैध कब्जे का प्रयास जारी है। धार्मिक, पौराणिक व लोगों के जीवन
के लिये महत्वपूर्ण जल तीर्थों के अस्तित्व की रक्षा के लिये अब नागरिकों को ही
कारगर पहल करनी होगी, वरना वह दिन दूर नहीं जब
इनका अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो जायेगा।