सुबह-ए- बनारस डाल रहा है गरीब बच्चों के शिक्षा में बाधा

बनारस की सुबह दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां की सुबह देखने के लिए विदेशों से भी मेहमान खींचे चले आते हैं। कुछ साल पहले ही शासन ने 'सुबह-ए-बनारस' को खास बनाने के लिए वाराणसी के अस्सी घाट पर ऐसे कार्यक्रम की शुरुआत की जिसमें बनारस की संस्कृति के साथ-साथ वाराणसी की पहचान भी लोगों को देखने को मिले।

हर सुबह बनारस में गंगा किनारे आरती और शास्त्रीय संगीत की धुन बरबस ही सैलानियों को आकर्षित करती है। अस्सी घाट का सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘सुबह-ए-बनारस’ अस्सी घाट पर आयोजित संगीत समारोह सुबह-ए-बनारस की शान की शान है। यह घाटों की ठाठ में चार-चांद लगा रहा है।  सुबह के रागों पर आधारित यह आयोजन होता है। यहां बेहद आकर्षक नृत्य का कार्यक्रम होता है। यह कार्यक्रम भारतीय संस्कृति व परंपरा को बढ़ावा देने वाला है।इसकी थीम जापान के शिन्तो धर्म  से प्रेरित है शिन्तो अर्थात कामियों का मार्ग। जापान का एक प्रमुख और मूल धर्म है। इसमें कई देवी-देवता हैं जिनको कामी कहा जाता है। कामी का अर्थ महान, अद्भुत, पवित्र जीव होता है। हर कामी किसी न किसी प्राकृतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। एक जमाने में शिन्तो धर्म जापान का राजधर्म हुआ करता था। इसका जापान के सांस्कृतिक, धार्मिक विकास, राष्ट्रीय जीवन में स्थिरता लाने में महत्वपूर्ण योगदान है। हिंदू धर्म की तरह इसमें भी अनेकेश्वरवाद को मान्यता मिली है। अनेक देवी देवताओं के समूह पूजे जाते रहे हैं जिनमें ‘अनाटेरा सुओमी कामो’यानी सूर्य-देवी को प्रमुखता दी गई है।

जब से सुबह-ए- बनारस कार्यक्रम शुरू हुआ है बनारस के सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर तब से यही हाल है, कार्यक्रम से जुडे कई लोग हैं जो क्षेत्र विशेष (घाट) को अपने बाप की बपौती समझते हैं.... सुनने में तो अब यह भी आ रहा है कि वहां कोई भी अब कार्यक्रम होता है तो सुबह-ए- बनारस के लोग कार्यक्रम स्थल को अपनी बपौती बताकर मोटी कमाई करते हैं..और हो सकता है कि गरीब बच्चों को पढाने वाले लोगों द्वारा इनको पैसा ना देना खल रहा हो इसलिए ये लोग इस नेक काम में व्यवधान उत्पन्न कर रहे हो..

रत्नेश वर्मा जिला सांस्कृतिक समिति के सचिव है शुरु में जिला प्रशासन से धन मिलता था अब वो बंद है ! अब यह सब " सुबह-ए- बनारस आनन- कानन " नाम से रजिसट्रेशन करवा कर सदस्यता शुल्क ५ हजार लेते है और कोई सोशल कार्यक्रम अस्सीघाट पर करने आता है तो उससे पैसा लेते है ! जो नही देता उसको अनुमति का भय दिखाकर भगा देते है ! इसके पहले सब बजडा सुसज्जित करवा कर २५ सौ प्रति आदमी से लेकर नौका विहार कराते थे लेकिन मल्लाहों के विरोध के कारण सब बंद कर दिए  उसका ताजा हाल ये है की  सुबह-ए- बनारस डाल रहा है गरीब बच्चों के शिक्षा में बाधा

इनरव्हील क्लब उदया (
यह संस्था है महिलाओं का) ओर से अस्सीघाट पर गरीब बच्चों के लिए पीएम की महत्वाकांक्षी योजना के तहत चलाये जा रहे नि: शुल्क साक्षरता कार्यक्रम में सुबह- ए-बनारस के जिम्मेदार लोग बाधा पहुंचा रहे है | अस्सीघाट पर प्रतिदिन सायं ६ से ७ बजे तक ३५ गरीब बच्चों को जो स्कूल नहीं जाते है उन्हें संस्था की महिलाए सभी पाठ्य सामग्री नि: शुल्क मुहैया करा कर बेसहारा बच्चों शिक्षित करने का अभियान चलाया हैं | उपरोक्त कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ गत २० मार्च को बीएचयू के कुलपति प्रो जी सी त्रिपाठी के मुख्य आतिथ्य में हुआ था | बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने वाले संस्था कि महिलाओं ने यह आरोप लगाया है कि अस्सीघाट पर सुबह-ए- बनारस के एक जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा प्रतिदिन किसी न किसी तरह से इस नेक कार्य में बाधा डाली जा रही है | यह कहा जा रहा है कि बिना मेरी अनुमति के इस घाट पर कोई भी सामाजिक कार्य नही किया जा सकता है | साथ ही अब यह भी कहा जा रहा है कि यह कार्य परिसर से बाहर किया जाय जबकि घाट सार्वजनिक होता है कोई परिसर नही है | इस मामले कि शिकायत महिलाओं ने स्थानीय पार्षद श्री गोबिन्द शर्मा से शिकायत की तो पार्षद ने तत्काल इस घटना की जानकारी जिलाधिकारी श्री राजमणि से की | इस पर डीएम ने हर संभव गरीब बच्चों को नि: शुल्क साक्षरता अभियान से जोडने के लिए सहयोग एवं मदद करने का भरोसा दिया | ज्ञातव्य है कि सुबह-ए- बनारस कार्यक्रम के लिए महज २ घंटे के लिए प्रशासन से अनुमति है जबकि इस भीषण गर्मी में देश- विदेश से आने वाले पर्यटकों को काफी परेशानीयों का समना करना पड रहा है क्योकि नये अस्सीघाट पर पर्यटकों के लिए बने दोनों आश्रय स्थल पर २४ घंटे सुबह-ए- बनारस का कब्जा रहता है | इसके पूर्व वाराणसी विकास प्राधिकरण ने सुबह-ए- बनारस द्वारा अवैध रुप से आश्रय स्थल पर बने चबुतरे को तोड भी दिया था इसके बावजूद वहां फिर से अतिक्रमण कर चबुतरा बना दिया गया है | इस मामले को लेकर स्थानीय नागरिकों में भारी आक्रोश है |


वहां चाय की दूकान आर्थिक लाभ के लिए जब खुलवाई जा सकती है तो बेसहारा बच्चों को एक घंटा नि: शुल्क शिक्षा क्यों नहीं दी जा सकती है | समर कैंप तो रईसों के बच्चों के मनेरंजन के लिए घाटों पर लगाये जाते है ताकि उसका आर्थिक लाभ लोग उठा सकें

एक संस्कृति से जुडा हुआ मामला है तो एक देश के शिक्षा से... इसमें शाशन को अपने और से पहल करनी होगी...  इस शिक्षा अभियान को भी सुबहे बनारस में जोड़कर जिलाधीश महोदय द्वारा सुबहे बनारस को सार्थक बनाना चाहिए।इस सन्दर्भ में क्षेत्र के कई बुद्धिजीवी भी अपनी सेवाएं निशुल्क देना चाहते हैं।किन्तु कुछ खास दबंगों द्वारा सुबहे बनारस को अपनी जागीर समझने से वे निराश हैं।


























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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!