Comedy Nights With Kapil
:
Sania Mirza - Full Episode - 22nd December 2013
Kapil starts the show with his wisecracks and jokes on political parties
and politics. Later, he
questions the audience about their views on
politics. Kapil announces that he has been given a ticket for the next
elections. He tries to give the good news to his family members, who
ridicule the same. Rajni, who is Raju's wife comes from the village, to
meet Raju. Sania Mirza joins Kapil on the show. Watch the episode and
have a funny and rollicking time.
Renowned, actor-comedian Kapil
Sharma makes his debut as a TV show producer with his new show Comedy
Nights With Kapil. He will be seen multiple roles of an actor,
scriptwriter and producer in his production debut. Already famous for
his amazing comic timing and his talent to dig humor out of any
situation, he is ready present everyday life in a fresh ad unique way.
Comedy Nights With Kapil
:
Govinda - Full Episode - 15th December 2013
Comedy Nights With Kapil
:
Shahid Kapoor, Sonakshi Sinha - Full Episode - 8th December 2013
The episode starts with Kapil speaking about the generation being born
now a days. He speaks about the over smart children of this generation.
Kapil's wife again comes and complains about Dadi asking for a child.
Later, Prabhu Deva, Shahid Kapoor, Sonakshi Sinha and Sonu Sood join
Kapil onstage for the promotion of the movie, R...Rajkumar. Watch the
episode and have a hearty laugh. Renowned, actor-comedian Kapil
Sharma makes his debut as a TV show producer with his new show Comedy
Nights With Kapil. He will be seen multiple roles of an actor,
scriptwriter and producer in his production debut. Already famous for
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सुबहे बनारस _ हमारी काशी
काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह.. सुप्रभात .. बनारस▬●Good Morning.. Banaras▬● সুপ্রভাত .. কাশী▬●મોર્નિંગ સારા .. બનારસ▬● ಮಾರ್ನಿಂಗ್ ಗುಡ್ .. ಬನಾರಸ್▬● नमस्ते बनारस.. महादेव .. जय श्री कृष्ण.. राधे राधे.. सत श्री आकाल.. सलाम वाले कुम.. जय भोले ...
सुबहे बनारस _ हमारी काशी
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सुबहे बनारस _ हमारी काशी
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सुबहे बनारस _ हमारी काशी
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चेतगंज की नक्कटैया - बनारस की सर्वाधिक
मशहूर नक्कटैया चेतगंज की मानी जाती है। काशी में चेतगंज की रामलीला
कार्तिक में होती है। विजयादशमी के एक सप्ताह बाद कार्तिक कृष्ण चतुर्थी
(करवा-चौथ) की रात चेतगंज मुहल्ले में लाखों की भीड़ वाला 'लक्खी मेला'
अर्थात चेतगंज की नक्कटैया सम्पन्न होती है। यह लीला केवल भारत में ही नहीं
बल्कि विश्वप्रसिद्ध मानी जाती है। भारत के कोने-कोने से भक्तगण भगवान के
दर्शन के लिए आते हैं। इस दिन पूरा मेला क्षेत्र बिजली की रंग-बिरंगी
झालरों एवं स्थान-स्थान पर बने स्वागत तोरणों से सजा होता है। दुकानें सजी
होती हैं। मिट्टी के बर्तनों से लेकर घर-गृहस्थी के समान तक बिकते हैं।
घरों की छतों-बाजारों पर महिलाओं एवं बच्चों की भीड़ देखते ही बनती है।
इस लीला का प्रारम्भ लगभग ११५ वर्ष पहले सन १८८७ ई. में राम के अनन्य भक्त
बाबा फतेहराम ने किया था। बताते हैं कि बाबा फतेहराम नगर में यायावर
वृत्ति से निरंतर भ्रमण किया करते थे। जहाँ कहीं भी लीला होती थी उनका आसन
जम जाता था। अन्त में इसी भक्तिभाव से प्रेरित होकर बाबा ने चेतगंज में एक
नई शुरुआत "चेतगंज रामलीला समिति" की स्थापना करके की। प्रारंभ में इस लीला
की व्यवस्था चन्दे पर आधारित थी किन्तु बाद में बाबा ने एक अनूठी तरकीब
निकाली कि मेला क्षेत्र का प्रत्येक दुकानदार प्रतिदिन एक-एक पैसा देगा। इस
प्रकार वर्ष भर में लीला की व्यवस्था के लिए काफी धन एकत्रित होने लगा।
बाद में बाबा के इस निस्पृह जीवन से अभिभूत होकर नगर के सेठ-साहुकार भी इस
लीला में उत्साह के साथ भाग लेने लगे। उनकी तरफ से लाग-विमानों की व्यवस्था
होने लगी। नक्कटैया लीला में, मूलत: तुलसीकृत मानस पर आधारित
रामलीला के श्रृंखलाबद्ध प्रदर्शन के क्रम में, लक्ष्मण अमर्यादित सुपर्णखा
की नाक काटकर रावण की आसुरी शक्ति को चुनौती देते हैं, जिसके प्रत्युत्तर
में राम-लक्ष्मण के विरुद्ध सुपर्णखा एवं उसके भाई खर-दूषण द्वारा आसुरी
सैन्य-शक्ति प्रदर्शन और राम से युद्ध की यात्रा का जुलूस ही नक्कटैया मेले
का आकर्षण बनता है। यह जुलूस पिशाच मोचन मुहल्ले से आधी रात तो चलकर लीला
स्थल चेतगंज तक (लगभग २ कि.मी.) प्राय: ४ बजे तक पहुँचता है। राम
के विरुद्ध सुपर्णखा के सैन्य अभियान को प्रदर्शित करने के लिए लोग,
स्वाँग, चमत्कृत और डरावने दृश्यों के माध्यम से समाज और देश की विभिन्न
अव्यवस्था जनित कुरीतियों को खुले मंच पर दिखाने की परम्परा रही है। इस बात
के उल्लेख भी मिलते हैं कि राष्ट्रीय चेतना जागृत करने वाले और समकालीन
समस्याओं से सम्बन्धित दृश्य भी लोग के माध्यम से दिखलाए जाते थे जैसे
पुलिस अत्याचार, सत्याग्रह, नमक आन्दोलन, दांडी यात्रा, जलियांवालाबाग
हत्याकांड इत्यादि। सामाजिक कुरीतियों में शराबी, राक्षस,
गौनहारिन, बहुस्री प्रथा आदि के दृश्य भी लोगों और स्वाँगों के माध्यम से
प्रदर्शित होते हैं। दर्शकों के मनोरंजन हेतु राक्षसों की चमत्कृत करने
वाली युक्तियों को भी दर्शाया जाता था, जैसे मोमबत्ती की रोशनी में पंख
फड़फड़ाते कबूतर के ऊपर एक आदमी, जिसके हाथ में तार के सहारे लटकते बच्चे,
जीभ के आर-पार सलाख और टपकती खून की बूँदें, पेट के आप-पार तलवार आदि। इन
सब दृश्यों के आगे चलती नाककटी सुपर्णखा और उसके पीछे राक्षसी सेना के
डरावने दृश्य होते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न देवी-देवताओं की
झाँकी, हरिशचन्द्र प्रसंग तथा पौराणिक प्रसंगों आदि की झाँकियाँ भी निकाली
जाती है। मेले में दुर्गा व काली के मुखौटे, मुकुट व वस्र धारण किए हुए
सैकड़ों की संख्या में पात्र जुलूस के साथ चलते हैं। इनके अनोखे करतब जैसे
तलवार की धार पर माँ काली द्वारा नृत्य थाली को कोर पर नृत्य का
प्रदर्शन आदि बीच-बीच में किया जाता है जो आश्चर्यजनक व मनोरंजक होते हैं।
विशेष आकर्षक बात यह है कि इस मेले के लिए विशेष रुप से तैयार किए गए मँहगे
से मँहगे भाग व विमान बाहर से, आस-पास के जिलों से ही नहीं बल्कि दूसरे
प्रदेशों से भी प्रदर्शन के लिए आते हैं। इस मेले की सबसे प्रमुख विशेषता
यह है कि इसे "सामप्रदायिक एकता का प्रतीक" माना जाता है। उत्कृष्ट भाग को
रामलीला समिति द्वारा पुरस्कृत किया जाता है। दो-तीन दशक पूर्व
नक्कटैया मेले का उद्देश्य व्यंगयातमक अभिव्यक्तियों का खुले मंच पर
प्रदर्शन या धार्मिक वातावरण के निर्माण तक सीमित न रहकर जन जागरण एवं
राष्ट्रीय भावनाओं का निर्माण तथा विकास भी रहा है। बदलते परिवेश में
नक्कटैया का मेला फैन्सी शो बन गया है। बिजली-बत्ती की सजावट, कथानक के
प्रसंग से अलग-थलग दृश्यों का समावेश तथा विकृत स्वांग आज की नक्कटैया का
स्वरुप है इसमें धर्म की जगह धीरे-धीरे व्यावसायिकता का समावेश होता जा रहा
है। इस साल विश्व पटल पर स्थापित चेतगंज के नक्कटैया जुलूस में
इस बार जेल में बंद लालू यादव को चारा खाते दिखने वाला लॉग आकर्षण का
केन्द्र है.. देशभर में घटित चर्चित घटनाओं एवं भ्रष्टाचार पर आधारित लॉग,स्वांग व विमान ही इस नक्कटैया की प्रसिद्धि का मूल कारण है।
नक्कटैया में इलाहाबाद, फूलपुर, जौनपुर, मुंगराबादशाहपुर, भदोही आदि
क्षेत्रों से आए आकर्षक लॉग विमान शामिल है । लगभग पांच किमी. की परिधि में
आने वाले मेला क्षेत्र में विद्युत उपकरणों से आकर्षक सजावट है।मेला
क्षेत्र में 11 स्वागत द्वार बनाये गये हैं। नक्कटैया जुलूस पिशाचमोचन
क्षेत्र से उठकर चेतगंज थाने के सामने आयेगा, जहां डीएम प्रांजल यादव
उद्घाटन करेंगे तथा विशिष्ट अतिथि के रुप में एसएसपी अजय मिश्र मौजूद
रहेंगे। इसके पश्चात जुलूस लहुराबीर, सेनपुरा, चाउरछंटवा, मंशाराम फाटक,
हबीबपुरा होकर चेतगंज चौराहे के समीप रामलीला मंच के पास पहुंचकर समाप्त
होगा। उन्होंने बताया कि आयोजन का यह 126वां वर्ष है।
POST LINK For "बनारसी मस्ती के बनारस वाले" पूरी ऐल्बम देखने के लिए
लोलार्क कुण्ड, वाराणसी वर्तमान समय में स्थिति यह है कि अधिकांश कुण्ड मानव आवश्यकता की बलि चढ़ गये और इन्हें पाटकर उँची-उँची इमारतों और आलीशान कालोनियों ने अपना अस्तित्व कायम कर लिया है। इसके बावजूद काशी की धर्म प्राण जनता के लिये आज भी उसका महत्व बरकरार है। इन कुण्डों पर समय विशेष पर मेले लगते हैं और श्रद्धालु वहाँ जाकर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये पूजन-अर्चन करते हैं। यह कुण्ड भदैनी मुहल्ले में है। यहाँ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को एक विशाल मेला लगता है। लोलार्क छठ के नाम से प्रचलित है। भदैनी क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध राम मंदिर के बगल में स्थित लोलार्क कुण्ड लोलार्क छठ के नाम से भी जाना जाता है। कुण्ड की अनेक मान्यताओं में यह भी शामिल है कि इसमें स्नान करने से बांझ (संतानोत्पत्ति में असमर्थ) महिलाओं को भी संतानोत्पत्ति होती है और चर्म रोगियों को लाभ मिलता है। शास्त्रकारों के अनुसार अकबर और जहांगीर के युग में इस कुण्ड को वाराणसी का नेत्र माना जाता था। ऐसी कल्पना की जाती है कि उस युग में यहाँ लोलार्क नाम का एक मुहल्ला भी था। पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ स्थित मंदिर का उल्लेख गाहड़वाल ताम्रपत्रों में मिलता है। बावड़ी का मुंह दोहरा है, एक में पानी इकट्ठा होकर दो कुओं में जाता है। यह कुएं पत्थर के बने हैं और उन पर जगत बना हुआ है। दोनों जगतों के मध्य प्रदक्षिणा पथ है जिसे कहा जाता है कि अहिल्याबाई, अमृतराव तथा कूच विहार के महाराजा ने बनवाया था। इस कुण्ड के एक ताखे पर भगवान सूर्य का प्रतीक चक्र बना हुआ है।) पुरातत्वविदों का यह मानना है कि इस स्थान पर कई वर्षों पूर्व आकाश से भयानक आवाज करते हुये एक उल्का पिंड गिरा था। आग की लपटों में घिरी उल्का ऐसा भान करा रही थी कि मानों सूर्य पिंड ही पृथ्वी पर गिरा रहा है। उल्का पिंड के पृथ्वी पर गिरने के कारण ही लोलार्क-कुण्ड का निर्माण हुआ था। बहरहाल कुण्ड के अस्तित्व में आने के कारण कुछ भी हो, लोगों का इस सम्बन्ध में जो भी तर्क हो किन्तु वर्तमान समय में यह लोगों के आस्था और विश्वास का केन्द्र है। मान्यताओं के अनुसार गंगा के सीधे सम्पर्क में होने से गंगा स्नान का महत्व है। लोलार्क षष्ठी के दिन स्नान से पुत्र प्राप्ति सम्भव और शादी के बाद भी लोग यहाँ पूजन-दर्शन करने आते हैं। इसका उल्लेख-स्कन्द पुराण के काशी खण्ड में, शिवरहस्य, सूर्य पुराण में और काशी दर्शन में विस्तार से है। खेद है कि प्रचलित लोलार्क कुण्ड धीरे-धीरे बर्बादी के कगार पर जा रहा है। अपने तरह का अनोखा दिखने वाला कुण्ड चारों ओर से घरों से घिर गया है। इससे जाने अनजाने में भी लोगों के घरों का कचरा कुण्ड में आता है। कुण्ड के नीचे स्नान करने के लिये बनी सीढ़ियों की दीवारों पर लगे पत्थर परत-दर परत उखड़ रहे हैं। चारों ओर से घिरी दीवारों का भी यही हाल है। कई दशक पुराने इस कुण्ड की दशा अत्यन्त दयनीय है, कुण्ड को घेरने के लिये बनी बाउन्डरी की ईटें भी कमजोर पड़ गयी हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ - ↑ कुंड व तालाब (हिंदी) काशी कथा।
सुबहे बनारस _ हमारी काशी
काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह.. सुप्रभात .. बनारस▬●Good Morning.. Banaras▬● সুপ্রভাত .. কাশী▬●મોર્નિંગ સારા .. બનારસ▬● ಮಾರ್ನಿಂಗ್ ಗುಡ್ .. ಬನಾರಸ್▬● नमस्ते बनारस.. महादेव .. जय श्री कृष्ण.. राधे राधे.. सत श्री आकाल.. सलाम वाले कुम.. जय भोले ...
सुबहे बनारस _ हमारी काशी
काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह.. सुप्रभात .. बनारस▬●Good Morning.. Banaras▬● সুপ্রভাত .. কাশী▬●મોર્નિંગ સારા .. બનારસ▬● ಮಾರ್ನಿಂಗ್ ಗುಡ್ .. ಬನಾರಸ್▬● नमस्ते बनारस.. महादेव .. जय श्री कृष्ण.. राधे राधे.. सत श्री आकाल.. सलाम वाले कुम.. जय भोले ...
ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं
निर्मलभासित शॊभित लिङ्गम् ।
जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 1 ॥
दॆवमुनि प्रवरार्चित लिङ्गं
कामदहन करुणाकर लिङ्गम् ।
रावण दर्प विनाशन लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 2 ॥
सर्व सुगन्ध सुलॆपित लिङ्गं
बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम् ।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 3 ॥
कनक महामणि भूषित लिङ्गं
फणिपति वॆष्टित शॊभित लिङ्गम् ।
दक्ष सुयज्ञ निनाशन लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 4 ॥
कुङ्कुम चन्दन लॆपित लिङ्गं
पङ्कज हार सुशॊभित लिङ्गम् ।
सञ्चित पाप विनाशन लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 5 ॥
दॆवगणार्चित सॆवित लिङ्गं
भावै-र्भक्तिभिरॆव च लिङ्गम् ।
दिनकर कॊटि प्रभाकर लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 6 ॥
अष्टदलॊपरिवॆष्टित लिङ्गं
सर्वसमुद्भव कारण लिङ्गम् ।
अष्टदरिद्र विनाशन लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 7 ॥
सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं
सुरवन पुष्प सदार्चित लिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मक लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 8 ॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठॆश्शिव सन्निधौ ।
शिवलॊकमवाप्नॊति शिवॆन सह मॊदतॆ ॥
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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