- चहुंओर उत्साह-उमंग, बाबा की नगरी में मथुरा-वृंदावन सा नजारा
- हर जगह सड़कों पर पगलबाजों की टोली
- सभी तरफ गूंजे होरी और फाग के राग
वाराणसी : जिंदगी के रंजो गम व शिकवे गिले फागुन पूर्णिमा यानी रविवार की रात होलिका की आग में जले, पिंगल राग और होरी फाग के दौर चले। इसके साथ नव संवत्सर की चुनौतियों से भिड़ने को तैयार हो गया ताजा दम बनारसी मन। सड़कों -गलियों के नुक्कड़ों-चौराहों पर लकड़ियों का विशाल अंबार लगाया। सुनहरी पन्नियों व अबीर गुलाल की रंगोलियों से संवार कर होलिका सजाया। विधि विधान और अनुष्ठान पूर्वक आग लगाया व दुश्वारियों को इसकी धधकती आग में झोंक कर नए साल को तन मन से जीने के लिए तैयार हो गए। मस्तानों की टोली ने ढोल मजीरे और नगाड़े पर थाप दी और इस ओर से उस छोर तक होरी फाग गूंजे और भरभरा उठीं भेद की दीवारें। जन जन के मन बांध तोड़ होली का उल्लास व आह्लाद वातावरण में छाया। पिंगलबाजों ने ठेठ काशिका अंदाज में छेड़ा राग और इसके साथ रंग पर्व के महाउत्सव का आगाज हो आया।
अलसुबह से ही नगाड़ों के डंकों की गूंज के साथ गली कूचों में होली का उत्साह सुरसुराते हुए पसर आया। मस्ती में झूमते फाग गाते अबीर गुलाल उड़ाते उमंग से सराबोर उत्साही युवाओं ने इसमें रंग भरे। होलिका के चंदा के लिए घर दुकानों पर डेरा डाला तो राह चलते लोगों को घेरा। तीसरे पहर के साथ फगुनहटी मिजाज शबाब पर आने लगा। फिजा रंगीन तो दुआ सलाम का अंदाज भी रंगीला हो आया। एक दूजे को गरमजोशी से गले लगाया तो लगे हाथ रंग पर्व की एडवांस शुभकामनाएं भी दे डालीं। ठंडई और भंग की तरंग में गोते लगाए तो शाम के साथ ही होलिका के इर्द गिर्द जत्थे उमड़ आए और शुरू हो गया दहन का तामझाम।
वसंत पंचमी के दिन रखी गई रेड़ की टहनियों से रूपित होलिका को विस्तार दिया। इस पर उपले- झाड़ियां और लकड़ियों के बोटे रखे और घी के कई कनस्टर होम किए। कई स्थानों पर लकड़ियों के अंबार में होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं सजाईं। रंगोली और सजावटी पन्नियों से रंगत बढ़ाई।
गंगाजल से चौहद्दी पवित्र की व पुरोहितों ने मंगल मुहूर्त में अनुष्ठान कराए। प्रह्लाद को सुरक्षित हटाया और रात 10.17 से पहले पहले होलिका में आग लगाया। होलिका मइया की जय से पूरा इलाका गूंजाया। सुख-समृद्धि की कामना से होलिका का फेरा लगाया। रंजो गम जलकर खाक और हर ओर चहक उठा रंगोत्सव का उमंग-उल्लास जिसका वास सोमवार की सुबह हर सांस में होगा। इसे महसूसने को अंगड़ाई लेते बिताई रात।काशी में देशी-विदेशी का भेद मिटा.
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