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वाराणसी की संस्कृति
वाराणसी
की कला और संस्कृति अद्वितीय है। यह वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा है जिसकी
वजह से यह भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहलाती है। पुरातत्त्व, पौराणिक कथाओं, भूगोल, कला और इतिहास का एक
संयोजन वाराणसी भारतीय संस्कृति को एक महान केंद्र बनाता है। हालांकि वाराणसी
मुख्य रूप से हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन वाराणसी में पूजा और
धार्मिक संस्थाओं के कई धार्मिक विश्वासों की झलक पा सकते हैं।
वाराणसी, भारतीय कला और संस्कृति का
पूरा एक संग्रहालय प्रस्तुत करता है। वाराणसी में इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलते
पैटर्न और आंदोलनों को महसूस कर सकते हैं। सदियों से वाराणसी ने मास्टर कारीगरों
का उत्पादन किया है और और अपनी सुंदर साड़ी, हस्तशिल्प, वस्त्र, खिलौने, गहने, धातु का काम, मिट्टी और लकड़ी और अन्य शिल्प के लिए नाम और
प्रसिद्धि अर्जित की है।
वाराणसी
ने कई प्रसिद्ध विद्वानों और बुद्धिजीवियों, जो गतिविधि के संबंधित क्षेत्रों में अपनी
छाप छोड़ गये है,
को
जन्म दिया है। वाराणसी,
एक
अद्वितीय सामाजिक और सांस्कृतिक कपड़े प्रस्तुत करता है। संगीत, नाटक, और मनोरंजन वाराणसी के साथ
पर्याय रहे है। बनारस लंबे समय से अपने संगीत, मुखर और वाद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध रहा है
और अपने खुद के नृत्य परंपराओं, वाराणसी लोक संगीत और नाटक, मेलों और त्योहारों, अखाड़े, खेल आदि का एक बहुत ही
पुराना केन्द्र रहा है।
वाराणसी
गायन एवं वाद्य दोनों ही विद्याओं का केंद्र रहा है।
सुमधुर
ठुमरी भारतीय कंठ संगीत को वाराणसी की विशेष देन है। इसमें धीरेंद्र बाबू, बड़ी मोती, छोती मोती, सिद्धेश्वर देवी, रसूलन बाई, काशी बाई, अनवरी बेगम, शांता देवी तथा इस समय गिरिजा
देवी आदि का नाम समस्त भारत में बड़े गौरव एवं सम्मान के साथ लिया जाता है।
इनके
अतिरिक्त बड़े रामदास तथा श्रीचंद्र मिश्र, गायन कला में अपना सानी
नहीं रखते।
तबला
वादकों में कंठे महाराज, अनोखे लाल, गुदई महाराज, कृष्णा महाराज देश- विदेश में अपना नाम
कर चुके हैं।
शहनाई
वादन एवं नृत्य में भी काशी में नंद लाल, उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ तथा सितारा देवी जैसी
प्रतिभाएँ पैदा हुई हैं।
मनोरंजन
फ़िल्में
भारतीय
सिनेमा में वाराणसी की संस्कृति और उसकी पृष्ठभूमि पर आधारित कई फ़िल्मों का
महत्त्वपूर्ण योगदान है। जिनमें से कुछ प्रमुख फ़िल्में निम्नलिखित हैं-
बनारस – ए मिस्टिक लव स्टोरी
बनारस
–
ए
मिस्टिक लव स्टोरी बनारस शहर में बनी एक हिन्दी फ़िल्म है। इस फ़िल्म में बनारस की
गलियों,
घाटों
और मंदिरों को एक प्रेम कहानी में पिरोया गया है। आठ करोड़ की लागत वाली इस फ़िल्म
में नसीरुद्दीन शाह,
डिंपल
कपाड़िया,
उर्मिला
मातोंडकर,
अस्मित
पटेल और आकाश खुराना ने प्रमुख भूमिकाएँ निभाई हैं।
जोइ बाबा फेलुनाथ
जोइ
बाबा फेलुनाथ (1979)
भारत
रत्न सम्मानित निर्देशक सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित एक बांग्ला फ़िल्म है। इस
फ़िल्म के अभिनेता सौमित्र चटर्जी, संतोष दत्ता, सिद्दार्थ चटर्जी, उत्पल दत्त आदि हैं। यह
फ़िल्म सत्यजीत राय के प्रसिद्ध उपन्यास फ़ेलुदा पर आधारित है।
डॉन (1978)
1978
की
सुपरहिट हिन्दी फ़िल्म डॉन का गाना खई के पान बनारस वाला अमिताभ बच्चन के साथ
बनारसी पान की प्रशंसा में गाया गया था और बहुत लोकप्रिय हुआ था।
“खई
के पान बनारस वाला"
खानपान
वाराणसी
में बहुत से भोजनालय हैं,
जहाँ
पर स्वादिष्ट भोजन मिलता है।
जयपुरिया होटल
जयपुरिया
होटल वाराणसी में गोदौलिया चौक के पास स्थित है। इस होटल में बहुत स्वादिष्ट
भोजन मिलता है। यहाँ पर ख़ास थाली मिलती है। इसमें तीन सब्जी, दाल, कढ़ी, रोटी, चावल, सलाद तथा पापड़ होता है।
इस भोजनालय की ख़ास बात है कि यहाँ भोजन लकड़ी के आग पर बनाया जाता है। इस भोजन को
बनाने में प्याज और लहसुन का भी उपयोग नहीं होता है।
कचौड़ी-सब्जी
वाराणसी
के लोग नाश्ते में बहुधा कचौड़ी-सब्जी खाना पसंद करते हैं। यहाँ के लोग
कचौड़ी-सब्जी के साथ जलेबी खाते हैं।
विश्वनाथ साहब होटल
विश्वनाथ
साहब होटल गोदौलिया चौक के पास स्थित है। यहाँ देशी घी की कचौड़ी-सब्जी प्रसिद्ध
है। इस होटल के पास 'काशी चाट भंडार' है। काशी चाट भंडार की चाट
बहुत स्वादिष्ट होती है।
बनारसी पान
बनारसी
पान दुनिया भर में मशहूर है। बनारसी पान चबाना नहीं पड़ता। यह मुँह में जाकर
धीरे-धीरे घुलता है और मन को भी सुवासित कर देता है। वाराणसी आने वालों में पान
खाने का शौक़ रखने वाले को बनारसी पान ज़रुर खाना चाहिए। हिन्दी की सुपरहिट फ़िल्म
डॉन का गाना खई के पान बनारस वाला जो अमिताभ बच्चन पर चित्रांकित किया गया था, बनारसी पान की प्रशंसा में
गाया गया था और बहुत लोकप्रिय हुआ था।
बनारसी साड़ी
बनारसी
साड़ियाँ दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। लाल, हरी और अन्य गहरे रंगों की ये साड़ियां हिंदू परिवारों में किसी भी शुभ
अवसर के लिए आवश्यक मानी जाती हैं।
उत्तर
भारत में अधिकांश बहू-बेटियाँ बनारसी साड़ी में ही विदा की जाती हैं।
बनारसी
साड़ियों की कारीगरी सदियों पुरानी है।
साभार:
भारत डिस्कवरी
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