पर्यटन स्थल



वाराणसी पर्यटन

वाराणसी, बनारस या काशी भी कहलाता है। वाराणसी दक्षिण-पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तरी-मध्य भारत में गंगा नदी के बाएँ तट पर स्थित है और हिन्दुओं के सात पवित्र शहरों में से एक है। वाराणसी एक पर्यटन स्थल हैं। वाराणसी में देखने के लिए बहुत कुछ है। वाराणसी में क़रीब 2000 मंदिर हैं। वाराणसी में शाम के समय गंगा के किनारे होने वाली आरती काफ़ी आकर्षक होती है। हिन्‍दुओं के अलावा बौद्ध धर्म के अनुयायी भी वाराणसी में घूमने आते हैं।

वाराणसी के घाट
वाराणसी (काशी) में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अस्सी घाट तक सौ से अधिक घाट हैं।

वाराणसी में गंगा नदी के घाट
मणिकर्णिका घाट पर चिता की अग्नि कभी शांत नहीं होती, क्योंकि बनारस के बाहर मरने वालों की अन्त्येष्टी पुण्य प्राप्ति के लिये यहीं की जाती है । कई हिन्दू मानते हैं कि वाराणसी में मरने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है।

वाराणसी की नदियाँ
वाराणसी का विस्तार गंगा नदी के दो संगमों वरुणा और असी नदी से संगम के बीच बताया जाता है। इन संगमों के बीच की दूरी लगभग 2.5 मील है। इस दूरी की परिक्रमा हिन्दुओं में पंचकोसी यात्रा या पंचकोसी परिक्रमा कहलाती है। वाराणसी ज़िले की नदियों के विस्तार से अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि वाराणसी में तो प्रस्रावक नदियाँ है लेकिन चंदौली में नहीं है जिससे उस ज़िले में झीलें और दलदल हैं, अधिक बरसात होने पर गाँव पानी से भर जाते हैं तथा फ़सल को काफ़ी नुकसान पहुँचता है।

वाराणसी के मंदिर
वाराणसी में कई प्रमुख मंदिर स्थित हैं। वाराणसी कई प्रमुख मंदिरों का नगर है। वाराणसी में लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर स्थित है। दैनिक स्थानीय अर्चना के लिये ऐसे छोटे मंदिर सहायक होते हैं। इन छोटे मंदिरों के साथ ही वाराणसी में ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो समय-समय पर वाराणसी के इतिहास में बनवाये गये थे।

काशी विश्‍वनाथ मंदिर
मूल काशी विश्‍वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 18वीं शताब्‍दी में इंदौरा की रानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने इसे भव्‍य रूप प्रदान किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्‍य नाम गोल्‍डेन टेम्‍पल भी पड़ा। यह मंदिर कई बार ध्‍वस्‍त हुआ। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने सर्वप्रथम इसे 1194 ई. में ध्‍वस्‍त किया था। रजिया सुल्‍तान (1236-1240) ने इसके ध्‍वंसावशेष पर रजिया मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का निर्माण अभिमुक्‍तेश्‍वर मंदिर के नज़दीक बनवाया गया। बाद में इस मंदिर को जौनपुर के शर्की राजाओं ने तोड़वा दिया। 1490 ई. में इस मंदिर को सिंकदर लोदी ने ध्‍वंस करवाया था। 1585 ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्‍यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को औरंगजेब ने पुन: तोड़वा दिया। औरंगजेब ने भी इस मंदिर के ध्‍वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।
मूल मंदिर में स्थित नंदी बैल की मूर्त्ति का एक टुकड़ा अभी भी जाना वापी मस्जिद में दिखता है। इसी मस्जिद के समीप एक जाना वापी कुंआ भी है। विश्‍वास किया जाता है कि प्राचीन काल में इसे कुएं से अभिमुक्‍तेश्‍वर मंदिर में पानी की आपूर्ति होती थी। 1669 ई. में जब काशी विश्‍वनाथ के मंदिर को औरंगजेब द्वारा तोड़ा जा रहा था तब इस मंदिर में स्‍थापित विश्‍वनाथ की मूर्त्ति को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान काशी विश्‍वनाथ का निर्माण हुआ तब इस कुंए से मूर्त्ति को निकाल कर पुन: मंदिर में स्‍थापित किया गया। इस मंदिर परिसर में कई अन्‍य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। ये मंदिर विष्‍णु, अभिमुक्‍ता विनायक, दण्‍डपाणिश्‍वर, काल भैरव तथा विरुपक्ष गौरी का मंदिर है। दश्‍वमेद्यघाट से यह मंदिर आधे किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर चौबीस घण्‍टे खुला रहता है।

दूध का कर्ज़ मंदिर
   
वाराणसी में 'दूध का कर्ज' मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है।
   
पर्यटकों को वाराणसी में यह मंदिर ज़रूर देखना चाहिए।

अन्‍नपूर्णा का मंदिर
   
काशी विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्‍नपूर्णा का मंदिर है।
   
इन्‍हें तीनों लोकों की माता माना जाता है।

साक्षी गणेश मंदिर
  
वाराणसी में स्थित साक्षी गणेश मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है।

काशी विशालाक्षी मंदिर
   
विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर काशी विशालाक्षी मंदिर है।
   
यह पवित्र 51 शक्तिपीठों में से एक है।

केदारेश्‍वर मंदिर
   
केदार घाट के पास केदारेश्‍वर मंदिर है।
   
यह मंदिर 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के कहर से बच गया था।

विष्‍णु चरणपादुका
   
मणिकार्णिका घाट के समीप विष्‍णु चरणपादुका है।
   
इसे संगमरमर से चिह्नित किया गया है।

भैरव मंदिर
   
वाराणसी में काली भैरव मंदिर भी प्रसिद्ध है।
यह मंदिर गोदौलिया चौक से 2 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में टाउन हॉल के पास स्थित है।

सीता मंदिर
   
वाराणसी में देवी सीता का दोमंजिला मंदिर है।
यह मंदिर मानसून के मौसम में चारों तरफ से पानी से घिर जाता है। माना जाता है कि देवी सीता यहीं पर धरती में समा गई थीं।

वाराणसी में गंगा नदी के घाट

विंध्‍याचल
वाराणसी से विंध्‍याचल मंदिर 78 किलोमीटर और इलाहाबाद से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
   
यह एक प्रसिद्ध शक्‍तिपीठ है।

सारनाथ

सारनाथ स्तूप
सारनाथ वाराणसी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सारनाथ बौद्धों का एक बड़ा तीर्थस्‍थल है। यहीं महात्‍मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद प्रथम उपदेश दिया था। यहां कई स्‍तूप तथा मंदिर है। चौखण्‍डी स्‍तूप, धमेख स्तूप तथा धर्मराजिका स्तूप यहां हैं। धमेख स्तूप उसी जगह पर बना हुआ है जहां पर भगवान बुद्ध ने दूसरी बार उपदेश दिया था। इसे सारनाथ में सबसे पवित्र स्‍थान माना जाता है। चौखण्‍डी स्‍तूप के निकट ही एक थाई मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1976 ई. में हुआ था।

सारनाथ में एक पुरातत्‍वीय संग्रहालय ( समय: सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, प्रवेश शुल्‍क: 5 रु., शुक्रवार बंद) भी है। इस संग्रहालय में कई उत्‍कृष्‍ट मूर्त्तियां हैं। सारनाथ में ही एक अशोक स्‍तंभ है। इसके अलावा यहां बुद्ध की अभयमुद्रा में 287 मीटर ऊंची मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति मूर्तिकला की मथुरा शैली में बनी हुई है। यहां एक हिरण पार्क भी है।

वाराणसी के कुंड

लोलारक कुंड
तुलसीघाट से पैदल दूरी पर पवित्र लोलारक कुंड है। महाभारत में भी इस कुण्‍ड का उल्‍लेख मिलता है। रानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने इस कुण्‍ड के चारों तरफ कीमती पत्‍थर से सजावट करवाई थी। यहां पर लोलाकेश्‍वर का मंदिर है। भादो महीने (अगस्‍त-सितम्‍बर) में यहां मेला लगता है।

दुर्गा कुण्‍ड
अस्‍सी रोड से कुछ ही दूरी पर आनन्‍द बाग़ के पास दुर्गा कुण्‍ड है। यहां संत भास्‍करानंद की समाधि है। यहां पर एक दुर्गा मंदिर भी है। मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में भक्‍तों की काफ़ी भीड़ रहती है। इसी के पास हनुमान जी का संकटमोचन मंदिर है। महत्ता की दृष्टि से इस मंदिर का स्‍थान काशी विश्‍वनाथ और अन्‍नपूर्णा मंदिर के बाद आता है।

अन्‍य सांस्‍कृतिक उत्‍सव
फागुन (फ़रवरी-मार्च) में शिवरात्रि के उत्‍सव के दौरान यहां जरुर आना चाहिए। इस दौरान मंदिर के देवता का शृंगार किया जाता है। रंगभरी एकादशी भी यहां बहुत उत्‍साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान शिवभक्‍त भगवान शिव की मूर्त्ति को लाल रंग के चूर्ण से रंग देते हैं। पंचकरोशी यात्रा प्रत्‍येक साल अप्रैल के महीने में होती है। दुर्गा पूजा (सितम्‍बर-अक्‍टूबर) के दौरान मनाया जाता है। भरत मिलाप उत्‍सव विजयादशमी को मनाया जाता है। इस दिन संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय के समीप मेला लगता है। दीपावली के समय का यहां का गंगा स्‍नान भी काफ़ी प्रसिद्ध है। दीपावली के अगले दिन यहां अन्‍नाकूता उत्‍सव मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहां सभी घाटों को मृत्‍यु के देवता यमराज के सम्‍मान में दीयों से सजाया जाता है।

साभार: भारत डिस्कवरी  

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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!