नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो

रचना शर्मा का कविता-संग्रह 'नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो' Hind Yugm Prakashan से प्रकाशित हो चुका है और ऑनलाइन स्टोर इंफीबीम से विक्रय के लिए उपलब्ध है। रचना शर्मा अपने परिवेश, अपने सच और अपनी संवेदनाओं को कम शब्दों में रखना पसंद करती हैं और उसी के लिए पहचानी जाती हैं। हिंद युग्म ने इस किताब का प्रकाशन वर्गाकार बाइंडिंग में किया है। हमारे पाठक कविताओं की इस क़िस्म की प्रस्तुति को सोनरूपा विशाल के कविता-संग्रह 'लिखना ज़रूरी है' और संगीता मनराल-विजेंद्र विज के युगल कविता-संग्रह 'जुगलबंदी' में देख चुके हैं।



हिफाजत में था वो मेरी,महफूज रखा था मैंने।
वो कोई फूल नहीं था, एक जख्म था मेरा।
रचना शर्मा का नया कविता संग्रह '' 
नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो'' अब प्रकाशित।

काशी में लिख रहे लोगों में तेजी से पहचान बनाने वाली और संप्रति राजकीय महाविद्यालय, डीएलडब्यू , वाराणसी में संस्कृत विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत रचना शर्मा ने हिंदी कविता में भी अपनी आत्मीय उपस्थिति दर्ज की है। 

स्त्री -अस्‍मिता को लेकर उनकी कविताएं बेबाकी से अपनी बात कहती हैं। अपने कुशल संचालन एवं वाग्मिता से पहचानी जाने वाली रचना शर्मा सांस्कृतिक मुद्दों पर प्रिंट मीडिया के पन्नों पर नियमित तौर पर अपनी राय रखती आई हैं। स्त्री-अस्मिता को लेकर उनकी कविताएं सजग रही हैं। 'नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो' शीर्षक अपने नए संग्रह में वे छोटी छोटी कविताओं, अशआर और मुक्त छंद में स्त्री की अनुभूति और संवेदना के नए इंदराज सामने लाती हैं जिन्हें सोशल मीडिया पर लोग बेहद पसंद करते रहे हैं।

नींद के हिस्‍से में कुछ रात भी आने दो ।
कभी कभी मन होता है कि कम शब्‍दों में कुछ ऐसा कहा-सुना जाए कि वह एक विचार या सुभाषित की तरह मन में पैठ जाए। कविता इसीलिए स्‍फीति का कारोबार नही है। वह अनुभव और संवेदना का सत्‍व है। संस्‍कृत में जो काम एक श्‍लोक कर देता है उसे बड़ी कविताएं नहीं कर पातीं। अनुभव और संवेदना के इसी रसायन से बनी हैं रचना शर्मा की कविताएं जिनमें शब्‍दों की दुनिया भले छोटी हो, संवेदना का ऑंगन बहुत बड़ा है। हिंदयुग्‍म ने इसे खूबसूरती से सजाया है। कुछ बानगी:
हिफाजत में था वो मेरी, महफूज रखा था उसे मैने
वो कोई फूल नही था एक जख्‍म था मेरा ।

वो चला गया बस एक दीप जला कर
आज तक उसके उजालों की कर्जदार हूँ मैं।

आज खामोशियां मुखातिब हैं
नहीं दे पाऊँगी कोई जवाब मैं उनका।

बंद हैं खिड़कियां हमारे लिए सदियों से
फिर भी हम अपने हौसलों से जिंदा हैं।

जिंदगी जो कहे मुझसे कि कोई ख्‍वाब चुनो
मैं तेरे साथ बेशक जीने की ख्‍वाहिश रख दूँ।

आज हर ईमानदार का चेहरा उदास है
और हर बेईमान की बॉंछें खिली हुईं।

पन्‍ने उलट रही थी आज एक किताब के
कुछ सूखे हुए फूलों से मुलाकात हो गयी।

एक सुबह ऐसी हो जब यादें साथ हों
एक सुबह ऐसी हो जब आंखें उदास हों
एक सुबह ऐसी हो जब उसका इंतजार हो
एक सुबह ऐसी हो जब वो साथ साथ हो।

काशी में जन्मी और 'काशी खंड’ पर बी.एच.यू. से संस्कृत में पीएचडी की उपाधिप्राप्त रचना शर्मा ने वाराणसी के प्राचीन मंदिरों के नष्ट होते जाने की पटकथा भी लिखी है तथा वाराणसी की अक्षुण्ण सांस्कृंतिक परंपरा में मौजूद विरल लोककथाओं का संग्रह किया है। इसीलिए उनकी कविताओं में लोक में प्रचलित शब्दों की आवाजाही इधर प्रबल हुई है। शब्दोंं की महिमा पहचानते हुए वे कम से कम शब्दोंं से अपनी अनुभूतियों की क्यारी सजाती हैं जिसमें समकालीनता का कोलाहल नहीं, जीवनानुभवों का सनातन वैभव बोलता है। वे बातों ही बातों में आज की युगीन सचाई का बयान करती हैं: आज हर ईमानदार का चेहरा उदास है। और हर बेईमान की हैं बॉंछें खिली हुई्र। 

लेकिन उनकी कविताओं का अंत:संसार अंतत: स्त्रीे की अलक्षित पीड़ा का भाष्य है। उसमें प्रवेश करना आसान नहीं। इंसानी रिश्तों का फरेब उस दुनिया को हर वक्त बेनकाब करता रहता है, जिसमें हम कई कई चेहरों और नाटकीय अन्विति के साथ मुखातिब होते हैं। रचना मनुष्य के इस चरित्र को महज दो पंक्तियों में उद्घाटित करती हैं: हिफाजत में था वो मेरी,महफूज रखा था मैंने। वो कोई फूल नहीं था एक जख्म था मेरा। कविता न किसी परिभाषा में बँध सकती है न किसी नियमन में। वह हमेशा अपनी शर्तों और कौशल से कवि के करघे पर बुनी जा रही होती है। रचना के पास कविताई का वह सलीका है कि जिससे वे कविता के रूठे हुए पाठकों को ठिठक कर पढने को विवश कर सकें।

‘पन्ने उलट रही थी आज इक किताब के। कुछ सूखे हुए फूलों से मुलाकात हो गयी।‘ कवयित्री रचना शर्मा ने जब कुछ बरस पहले अपनी अनुभूतियों को सहेजना शुरु किया तो शायद उन्हें यह अंदाजा न था कि वे कविता के अधिष्ठाता की देहरी पर अपनी रचनाओं का अर्घ्य लिये एक गहरे संकल्प के साथ आई हैं। 'अंतर-पथ' उनका पहला संग्रह था, स्त्रीं-वेदना और अस्मिता के नए पाठ तलाशता हुआ। 'नींद के हिस्से् में भी कुछ रात आने दों’ के साथ उन्होंने कविता की पायदान पर दूसरा कदम रखा है। इसे उन्होंने शब्दों से नहीं, संवेदना की स्याही से लिखा है। इसीलिए इनमें अल्फाज़ कम हैं, इनकी अनुगूँज सीमातीत है। यह एक ऐसा आईना है जिसमें भारतीय स्त्री का अनिंद्य चेहरा दीख पड़ता है। सजल स्त्री-संवेदना के साथ-साथ उनके शब्द हमारे हौसलों को भी एक उड़ान देते हैं: ‘बंद हैं खिड़कियॉं हमारे लिए सदियों से। फिर भी हम अपने हौसलों से जिंदा हैं।‘ यह संग्रह अपने आपमें सादगी की मिसाल है।
 

इसे इन्‍फेबीम पर विक्रय के लिए उपलब्‍ध है जिसका लिंक निम्‍नांकित है:
http://www.infibeam.com/Books/neend-ke-hisse-mein-kuch-raat-bhi-aane-rachana-sharma/9789384419035.html
Neend Ke Hisse Mein Kuch Raat Bhi Aane Do (Hindi)
www.infibeam.com



Rachana Sharma
 
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!