........................ (विनय वेद)
शुभम शम्भू नाथ स्वयंभू, हर हर शिव अनंत !
भगवंत को भी निर्मूल कर गये कैलाश के संत !!
शेषनाग सवारी विष्णु और तूँ प्रचंड सर्प माल,
वो विषधर देता जीवन और तूँ पलभर का अंत !
तूँ सुने तो हूँ मैं वाणी, तूँ देखे तो हूँ श्रंगार,
तूँ जिव्हा तो जीवन, छुए तो मुझ में भगवंत !
शांत हुआ तो क्रांति, अशांत तो आन्दोलन,
संघर्ष न पता अंत चाहे पा जायें अनेकों अंत !
हे हाहाकार स्वामी, तांडव दे या धर्म पांडव,
अनंत न पाये अनंत जो अंत न पाये अंत !
तो हे देवों के देव, महा विदेहों के महादेव,
संग्राम न कीजो अंत, संघर्ष न कीजो अनंत !
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