इतिहास के झरोखों से काशी

इतिहास के झरोखों से झांकती काशी की छाती पर दर्ज इमारतें उसके सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक बदलावों की दीर्घकालिक झलक है। कंक्रीट का बना यह शहर महज एक शहर नहीं बल्कि आस्था, विश्वास और मान्यताओं की वह भावभूमि है जहां सभी मिथक टूट जाते हैं। वाराणसी मौज मस्ती और अपने फन का भी अलग शहर है। आदि काल में इस नगर का नाम वृहच्चरण था और आगे आने पर महाजनपद के नाम से जाना गया। राजा बन्नार के जमाने में इसे बनारस की संज्ञा मिली। काशी का उल्लेख महाभारत काल से मिलता है। घाटों के लिये प्रसिद्ध गंगा नदी किनारे बसी इस नगरी का प्रचलित नाम वाराणसी है जो अस्सी तथा वरुणा दो उप नदियों के नाम के प्रथमाक्षरों को संयोजित कर बनाया गया है। वैदिक परम्परा में काशी पहले विष्णु क्षेत्र थी। बाद में शैवपुरी हुई जब काशी पर आर्यो का अधिकार हुआ तो यहां दो प्रकार के धर्म चले। आर्य धर्म एवं अनार्य धर्म। लगभग ढाई हजार वर्षो पूर्व जब अधिकांश यूरोप में सभ्यता का सूर्योदय नहीं हुआ था, जब रोम अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील था जब पश्चिम में आज के उन्नतशील राष्ट्रों का कोई अस्तित्व न था, उस समय काशी वैभव सम्पदा और ऐश्र्वर्य में सबसे आगे थी तथा वह धर्म, सभ्यता व संस्कृति सर्वोच्च शिखर पर थी। मान्यता है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी देवाधिदेव महादेव को अत्यंत प्रिय है। इसलिये यह नगरी धर्म कर्म मोक्ष की नगरी मानी जाती है। गंगा मुहाने पर बसे इस शहर की छटा को निखारने वाले सौ से अधिक पक्के घाट पूरी नगरी को धनुषाकार का स्वरुप प्रदान करते है। काशी को यह गौरव प्राप्त है कि यह विद्या, कला के साथ ही पर्यटन, बनारसी साड़ी, पान, लगड़ा आम व कार्पेट उद्योग का बड़ा केंद्र है। काशी के पक्के घाट अत्यंत दर्शनीय है। ये घाट देशी विदेशी पर्यटकों के लिये भी आकर्षण का केन्द्र है। सूर्योदय के समय इन घाटों की छटा देख मन कह उठता वाह सुबहे बनारस। काशी विश्वनाथ मंदिर-बाबा विश्र्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर काशी विश्र्वनाथ मंदिर अत्यंत प्राचीन है। इसका नवनिर्माण सन 1775 में महारानी अहिल्याबाई ने करवाया। बाद के ब्रिटिश काल में मंदिर में नौबतखाना बनवाया गया। मंदिर के शिखर स्वर्ण मंडित है जिन पर महाराजा रणजीत सिंह ने सोना चढ़वाया। सन् 1828 में चंपा जी ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया। नेपाल के राजा ने उन्नसवीं सदी के आरम्भ में मंदिर के बाहर अवस्थित नंदी की पुन: स्थापना की। मंदिर में भगवान शिव का ज्योर्तिलिंग स्थित है। काशी के इस मंदिर की कला अत्यंत प्राचीन है। सारनाथ-वाराणसी शहर से दस किलोमीटर दूर सारनाथ क्षेत्र बौद्ध तीर्थ के रूप में विख्यात है। यह पर्यटन के रूप में भी मशहूर है। सारनाथ में भगवान बुद्ध की प्रस्तर प्रतिमा अवस्थित है जो एक भव्य मंदिर की परिधि में है। यहां यहां पर अशोक का चतुर्भुज सिंह स्तंभ व ऐतिहासिक महत्व का धमैक सतूप अवस्थित है। जैन मंदिर यहां का दर्शनीय स्थल है। बौद्ध मंदिर चौखंडी स्तूप और संग्रहालय देखने योग्य है। यहां प्राचीन मुर्तियों के अवशेष न शिलाखण्ड संरक्षित है। भारत माता मंदिर-श्री भारत माता मंदिर राष्ट्ररत्न श्री शिप प्रसाद गुप्त की राष्ट्रीय चेतना का मूर्तरूप है और भारतीय कला की उत्कृष्ट निधि भी। मूर्ति शिल्पी श्री दुर्गा प्रसाद ने 1918 ई. में मूर्ति बनाने का कार्य आरम्भ किया और लगभग छ: वर्षो में यह कार्य सम्पन्न हुआ। रामनगर की रामलीला-यद्यपि समस्त भारत में प्रतिवर्ष रामलीलाएं होती है तथापि विधिवत तुलसीकृत रामायण के अनुसार जैसी रामलीला रामनगर में होती है वैसी कहीं नहीं होती। पंचक्रोशी यात्रा-काशी में पंचकोशी का अत्यंत धार्मिक महत्व है। मोक्षदायिनी गंगा एवं काशी के हृदयस्थली मणिकर्णिका से शुरू होता है। पंचक्रोशी में पांच पड़ाव स्थल पांच-पांच कोसों की दूरी पर स्थित है। जिसे कन्दवा, भीमचण्डी, रामेश्र्वर, शिवपुर एवं कपिलधारा के नाम से जाना जाता है। हर पड़ाव स्थलों पर विशाल मंदिर एवं तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिये धर्मशालाएं स्थित है। काशी हिन्दू विश्र्वविद्यालय-वाराणसी शिक्षण संस्थानों के लिये भी मशहूर है।


गंगा तरंग रमणीय जता क्लापम गौरी बिभुषित बम्भागम



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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!