भगवान श्री स्वामिनारायण का भब्य मंदिर - वाराणसी

भूतभावन भगवान भोलेनाथ की परमपावन मोक्षपुरी काशी नगरी में  मत्स्योदरी तीर्थ पर गायधाट महाँल की सीमा पर भगवान श्री स्वामिनारायण का मन्दिर अत्यन्त रमणीय एवं चित्ताकर्षक है । इस मन्दिर के पीछे दो सौ वर्ष का इतिहास है ।
पूरे गुजरात, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश एवं देश -विदेश में फैले हुए श्री स्वामिनारायण संप्रदाय की गुजरात राज्य में  दो प्रमुख गद्दी है । एक वडताल में एवं दूसरी अहमदाबाद में है । काशी स्थित श्री स्वामिनारायण मन्दिर वडताल की श्री लक्ष्मी नारायण देव की गद्दी के अंतर्गत है ।

इस मन्दिर का इतिहास इस प्रकार है - बचपन में भगवान श्री स्वामिनारायण का नाम घनश्याम था , संप्रदाय के श्री हरि दिग्विजय ग्रंथ एवं परम्परागत कथा  के अनुसार भगवान श्री स्वामिनारायण जब दस वर्ष के थे तब पिता धर्मदेव के साथ काशी आये थे और यहाँ के मणिकार्डिका स्थित प्रसिद्ध गौमठ  में ठहरे थे । यहॉ विद्वानों की सभा हुई  जिसमे बालक घनश्याम की विदत्ता देख कर सभी विद्वान अत्यंत प्रभावित हुवे थे | तत्पश्चात भगवान श्री स्वामिनारायण ने अपने पिता के साथ काशी के प्रसिद्द  मत्स्योदरी तीर्थ एवं गायधाट पर स्नान  किया | इसी पुण्य स्मृति में यह दिब्य मंदिर बना है |
मन्दिर के  लिए यह जमीन तो लगभग १५० बर्ष पूर्व ही ली गयी थी लेकिन आज से करीब ६० वर्ष पूर्व  ध. धु . १००८  आचार्य श्री  आनंद  प्रसादजी की आज्ञा से गुजरात के महान तीर्थधाम वडताल के मुख्य कोठारी स . गु . ब्र  स्वामी श्री धर्म स्वरुप दास जी और स . गु . ब्र श्री मायतीतानन्द जी के अतिभारी परिश्रम से  एवं त्यागी संतो की सहायता से तथा हरिभक्ती के आर्थिक मदद से तथा कोठारी श्री खुशाल भाई ने (उक्त महानुभावों की ) सुचना के अनुसार, स्वयं स्रर्वप्रकार से निर्माण कार्य को संभाल कर  इस तीर्थराज काशी में श्री स्वामिनारायण के शिखर बंध मन्दिर का निर्माण  मिस्त्री वजेशंकर लक्ष्मी शंकर के द्वारा कराके उसमे श्री हरिकृष्णा महाराज ( श्री स्वामिनारायण भगवान) श्री लक्ष्मी नारायण देव , श्री काशी विश्वनाथ महादेव की प्राण प्रतिष्ठा  विक्रम संबत १९९८ के वैशाख सूदी (५) पंचमी और सोमवार एबं ता. २४-४-१९४२ के दिन कराई  गयी है ||

इस मंदिर का प्रमुख उद्देश्य भगवान श्री स्वामिनारायण की काशी यात्रा की पुण्य -स्मृति का संरक्षण करना , यात्रियों की सेवा करना एवं भगवत अनुष्ठार्थि व तीर्थवास कर सके तथा संत , विधार्थीयों की ब्यवस्था  द्वारा  सदविद्या  का प्रचार करना है || सदूविद्या - प्रवर्तन से बढ़ कर ज्यादा पुण्यप्रद कोई सत् कर्म नहीं है, अर्थात इससे बढकर भगवत्

प्रसन्नता का कोई साधन नहीं हैं और श्री स्वामिनारायण संप्रदाय का पुरे विश्व के कोने कोने तक प्रचार करने में जिन महानुभाव विद्वान संतो ने प्रमुख भूमिका निभाई उन सभी विद्वान संतो ने इस श्री स्वामिनारायण  मंदिर मन्दिर के जो अपनी मातृ संस्था है, उसका आश्रय लेकर सदविद्या की प्राप्ति की है शिल्प स्थापत्य एवं सुंदरता की दृस्टि से  श्री स्वामिनारायण मंदिर   काशी के  प्रमुख चार-पाँच मन्दिरों में से एक है । सरसरी निगाह से देखने पर उत्तरऱभिमुख यह मन्दिर सुन्दर  रथाकार प्रतीत होता है । मन्दिर के चारों ओर भगवान् के प्रमुख अवतारों शंकर-पार्वती , सरस्वती, गंगा, यमुना, यम और वरुण की प्रतिमा चित्त क्रो आकर्षित करती हैं और मन्दिर के पाँच अनुपम शिखरों पर सुवर्ण कलशा के साथ फहराती ध्वजाएँ मुमुक्षवो को मोक्ष प्रदान करने के लिए मानो आहवान कर रही हो |

निज मन्दिर
मुख्य मन्दिर, जिसको निज मन्दिर कहते है-तीन शिखरों वाला है  जिसमें पूर्व खण्ड में श्री विश्वनाथजी एबं पार्वतीजी अर्चास्वरूप से मूर्तिमान विराजमान होकर भक्तों को
प्रतिदिन इक्छित सुख देते हुवे दर्शन दे रहे है मध्य खण्ड में भगवान श्री स्वामि-नारायण एवं भगवान श्री लक्ष्मी नारायण  देव पंचधातुओँ से निर्मित प्रतिमा स्वरुप से विराजमान हो कर दरसनार्थियो के मन को आकर्षित करते है और अपूर्व शांति प्रदान कर के भक्त के तीन - ताप को हर लेते है मंदिर के पश्चिम खंड में भगवान की सुख शय्या रखी गयी है और श्री राधा कृष्णा एवं भगवान श्री स्वामिनारायणका सुन्दर चित्र और सुखशय्या है | मंदिर में प्रति दिन भगवान का पूजन एवं नूतन शृंगार होता है | मंदिर के उत्तर में प्रवेश द्वार्की सोपान श्रेणी के पास श्री हनुमान जी एवं श्री गणेश जी के मंदिर में शिव - सूर्यनारायण आदि विराजमान है  | सर्व देवो के प्रति आदर भावना  श्री स्वामिनारायण संप्रदाय की प्रमुख विसेसता  है |
मंदिर में संत छात्रावास भी है , मंदिर के आगंतुक यात्रियों के लिए आवास का सुन्दर प्रभन्ध  भी है  और आधुनिक ढंग से विशाल नूतन अतिथि भवन का निर्माण भी हुवा है

| वर्तमान समय में ये भगवान श्री स्वामिनारायण  का भब्य मंदिर सुन्दर कलाकृति का अनुपम नमूना कहा जाता है..

Address :

Shree Swaminarayan Mandir - Kashi

K 1/1, Machhodari Park
Gayghat - 221 001
Kashi, Banaras
Uttar Pradesh(UP)
Tel: +91 542 2435492
India










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मंदिर के फूल मालाओं से अब जैविक खाद

काशी के मंदिरों में प्रतिदिन चढ़ाई जाने वाली हजारों किलो फूल मालाएं अब गंगा में प्रदूषण का कारण नहीं बन रही हैं. भागीरथ सेवार्चन समिति ने मंदिरों के निर्माल्य से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया शुरु कर दी है

इस प्रक्रिया के तहत काशी के मंदिरों के निर्माल्य विर्सजित करने से रोकने और इस निर्माल्य को एकत्रित करने का काम समिति ने शहर के बाहर स्थित राजा तालाब के मेहदीगंज स्थित अपने जैविक खाद उत्पादन केंद्र में शुरु कर दिया है. तैयार खाद लागत मूल्य पर किसानों को उपलब्ध कराई जा रही है.

एक किलो खाद बनाने में समिति को 11.50 रुपये की लागत आ रही है जबकि इसे 12 रुपये प्रतिकिलो की दर से किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है. समिति के संरक्षक व काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के अनुसार नगर के सभी प्रमुख मंदिरों से निर्माल्य इकट्ठा कर उससे जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया शुरु की गई है.

 उन्होंने बताया कि केंद्र में 63 टैंको में गोबर, माला, फूल, धतूरा और नीम की खली डालकर छोड़ उसे दिया जाता है. 60 दिनों के बाद खाद तैयार होने पर उसे 10 दिन तक सुखाया जाता है.

इस कोशिश से न केवल मंदिरों का निर्माल्य साफ हो रहा है, बल्कि गंगा भी साफ सुथरी रहेगी. अगर भारत के सभी मंदिरों में ये काम शुरू कर दिया जाए तो न केवल मंदिरों की सफाई हो सकेगी, बल्कि आस पास की छोटी नदियों या नालियां जाम नहीं होंगी. इतना ही नहीं पुराने फूलों के कारण होने वाले मच्छर भी नहीं होंगे.

जैविक खाद उत्पादन केंद्र के डॉ संजय गर्ग जैविक खाद को किसानों में लोकप्रिय कराने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि इसकी मदद से पैदा होने वाले फसल से शरीर स्वस्थ रहता है. वहीं संस्था के सचिव कैलाशनाथ बाजपेयी ने बताया कि गंगा को बचाने के लिए संस्था लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाएगी.


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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!