जयति जयति श्री शंकर

जयति जयति श्री शंकर
जयति जयति जग-निवास, शंकर सुखकारी ।।
अजर अमर अज अरुप, सत चित आनंदरुप,
व्यापक ब्रह्मस्वरुप, भव ! भव-भय-हारी ।।
शोभित बिधुबाल भाल, सुरसरिमय जटाजाल,
तीन नयन अति विशाल, मदन-दहन-कारी ।।
भक्तहेतु धरत शूल, करत कठिन शूल फूल,
हियकी सब हरत हूल, अचल शान्तिकारी ।।
जयति जयति जग-निवास, शंकर सुखकारी ।।
अमल अरुण चरण कमल, सफल करत काम सकल,
भक्ति-मुक्ति देत विमल, माया-भ्रम-टारी ।।
कार्तिकेययुत गणेश, हिमतनया सह महेश,
राजत कैलाश-देश, अकल कलाधारी ।।
भूषण तन भूति व्याल, मुण्डमाल कर कपाल,
सिंह-चर्म हस्ति खाल, डमरु कर धारी ।।
अशरण जन नित्य शरण, आशुतोष आर्तिहरण,
सब विधि कल्याण-करण, जय जय त्रिपुरारी ।।
जयति जयति जग-निवास, शंकर सुखकारी ।।
जय भोलेनाथ सदाशिव शंकर
ॐ नमः शिवाय




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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!