वाराणसी
के मंदिर
वाराणसी में कई प्रमुख मंदिर स्थित हैं। वाराणसी कई प्रमुख मंदिरों का नगर है। वाराणसी में लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर स्थित है। दैनिक स्थानीय अर्चना के लिये ऐसे छोटे मंदिर सहायक होते हैं। इन छोटे मंदिरों के साथ ही वाराणसी में ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो समय-समय पर वाराणसी के इतिहास में बनवाये गये थे।
काशी विश्वनाथ मंदिर
मूल काशी विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 18वीं शताब्दी में इंदौरा की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे भव्य रूप प्रदान किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्य नाम गोल्डेन टेम्पल भी पड़ा। यह मंदिर कई बार ध्वस्त हुआ। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने सर्वप्रथम इसे 1194 ई. में ध्वस्त किया था। रजिया सुल्तान (1236-1240) ने इसके ध्वंसावशेष पर रजिया मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का निर्माण अभिमुक्तेश्वर मंदिर के नज़दीक बनवाया गया। बाद में इस मंदिर को जौनपुर के शर्की राजाओं ने तोड़वा दिया। 1490 ई. में इस मंदिर को सिंकदर लोदी ने ध्वंस करवाया था। 1585 ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को औरंगजेब ने पुन: तोड़वा दिया। औरंगजेब ने भी इस मंदिर के ध्वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।
मूल मंदिर में स्थित नंदी बैल की मूर्त्ति का एक टुकड़ा अभी भी जाना वापी मस्जिद में दिखता है। इसी मस्जिद के समीप एक जाना वापी कुंआ भी है। विश्वास किया जाता है कि प्राचीन काल में इसे कुएं से अभिमुक्तेश्वर मंदिर में पानी की आपूर्ति होती थी। 1669 ई. में जब काशी विश्वनाथ के मंदिर को औरंगजेब द्वारा तोड़ा जा रहा था तब इस मंदिर में स्थापित विश्वनाथ की मूर्त्ति को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान काशी विश्वनाथ का निर्माण हुआ तब इस कुंए से मूर्त्ति को निकाल कर पुन: मंदिर में स्थापित किया गया। इस मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। ये मंदिर विष्णु, अभिमुक्ता विनायक, दण्डपाणिश्वर, काल भैरव तथा विरुपक्ष गौरी का मंदिर है। दश्वमेद्यघाट से यह मंदिर आधे किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर चौबीस घण्टे खुला रहता है।
दूध का कर्ज़ मंदिर
वाराणसी में 'दूध का कर्ज' मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है।
पर्यटकों को वाराणसी में यह मंदिर ज़रूर देखना चाहिए।
अन्नपूर्णा का मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्नपूर्णा का मंदिर है।
इन्हें तीनों लोकों की माता माना जाता है।
साक्षी गणेश मंदिर
वाराणसी में स्थित साक्षी गणेश मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है।
काशी विशालाक्षी मंदिर
विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर काशी विशालाक्षी मंदिर है।
यह पवित्र 51 शक्तिपीठों में से एक है।
केदारेश्वर मंदिर
केदार घाट के पास केदारेश्वर मंदिर है।
यह मंदिर 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के कहर से बच गया था।
विष्णु चरणपादुका
मणिकार्णिका घाट के समीप विष्णु चरणपादुका है।
इसे संगमरमर से चिह्नित किया गया है।
भैरव मंदिर
वाराणसी में काली भैरव मंदिर भी प्रसिद्ध है।
यह मंदिर गोदौलिया चौक से 2 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में टाउन हॉल के पास स्थित है।
सीता मंदिर
वाराणसी में देवी सीता का दोमंजिला मंदिर है।
यह मंदिर मानसून के मौसम में चारों तरफ से पानी से घिर जाता है। माना जाता है कि देवी सीता यहीं पर धरती में समा गई थीं।
वाराणसी में गंगा नदी के घाट
विंध्याचल
वाराणसी से विंध्याचल मंदिर 78 किलोमीटर और इलाहाबाद से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यह एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है।
सारनाथ
सारनाथ स्तूप
सारनाथ वाराणसी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सारनाथ बौद्धों का एक बड़ा तीर्थस्थल है। यहीं महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ित के बाद प्रथम उपदेश दिया था। यहां कई स्तूप तथा मंदिर है। चौखण्डी स्तूप, धमेख स्तूप तथा धर्मराजिका स्तूप यहां हैं। धमेख स्तूप उसी जगह पर बना हुआ है जहां पर भगवान बुद्ध ने दूसरी बार उपदेश दिया था। इसे सारनाथ में सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। चौखण्डी स्तूप के निकट ही एक थाई मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1976 ई. में हुआ था।
सारनाथ में एक पुरातत्वीय संग्रहालय ( समय: सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, प्रवेश शुल्क: 5 रु., शुक्रवार बंद) भी है। इस संग्रहालय में कई उत्कृष्ट मूर्त्तियां हैं। सारनाथ में ही एक अशोक स्तंभ है। इसके अलावा यहां बुद्ध की अभयमुद्रा में 287 मीटर ऊंची मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति मूर्तिकला की मथुरा शैली में बनी हुई है। यहां एक हिरण पार्क भी है।
साभार: भारत डिस्कवरी
वाराणसी में कई प्रमुख मंदिर स्थित हैं। वाराणसी कई प्रमुख मंदिरों का नगर है। वाराणसी में लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर स्थित है। दैनिक स्थानीय अर्चना के लिये ऐसे छोटे मंदिर सहायक होते हैं। इन छोटे मंदिरों के साथ ही वाराणसी में ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो समय-समय पर वाराणसी के इतिहास में बनवाये गये थे।
काशी विश्वनाथ मंदिर
मूल काशी विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 18वीं शताब्दी में इंदौरा की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे भव्य रूप प्रदान किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्य नाम गोल्डेन टेम्पल भी पड़ा। यह मंदिर कई बार ध्वस्त हुआ। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने सर्वप्रथम इसे 1194 ई. में ध्वस्त किया था। रजिया सुल्तान (1236-1240) ने इसके ध्वंसावशेष पर रजिया मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का निर्माण अभिमुक्तेश्वर मंदिर के नज़दीक बनवाया गया। बाद में इस मंदिर को जौनपुर के शर्की राजाओं ने तोड़वा दिया। 1490 ई. में इस मंदिर को सिंकदर लोदी ने ध्वंस करवाया था। 1585 ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को औरंगजेब ने पुन: तोड़वा दिया। औरंगजेब ने भी इस मंदिर के ध्वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।
मूल मंदिर में स्थित नंदी बैल की मूर्त्ति का एक टुकड़ा अभी भी जाना वापी मस्जिद में दिखता है। इसी मस्जिद के समीप एक जाना वापी कुंआ भी है। विश्वास किया जाता है कि प्राचीन काल में इसे कुएं से अभिमुक्तेश्वर मंदिर में पानी की आपूर्ति होती थी। 1669 ई. में जब काशी विश्वनाथ के मंदिर को औरंगजेब द्वारा तोड़ा जा रहा था तब इस मंदिर में स्थापित विश्वनाथ की मूर्त्ति को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान काशी विश्वनाथ का निर्माण हुआ तब इस कुंए से मूर्त्ति को निकाल कर पुन: मंदिर में स्थापित किया गया। इस मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। ये मंदिर विष्णु, अभिमुक्ता विनायक, दण्डपाणिश्वर, काल भैरव तथा विरुपक्ष गौरी का मंदिर है। दश्वमेद्यघाट से यह मंदिर आधे किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर चौबीस घण्टे खुला रहता है।
दूध का कर्ज़ मंदिर
वाराणसी में 'दूध का कर्ज' मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है।
पर्यटकों को वाराणसी में यह मंदिर ज़रूर देखना चाहिए।
अन्नपूर्णा का मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्नपूर्णा का मंदिर है।
इन्हें तीनों लोकों की माता माना जाता है।
साक्षी गणेश मंदिर
वाराणसी में स्थित साक्षी गणेश मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है।
काशी विशालाक्षी मंदिर
विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर काशी विशालाक्षी मंदिर है।
यह पवित्र 51 शक्तिपीठों में से एक है।
केदारेश्वर मंदिर
केदार घाट के पास केदारेश्वर मंदिर है।
यह मंदिर 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के कहर से बच गया था।
विष्णु चरणपादुका
मणिकार्णिका घाट के समीप विष्णु चरणपादुका है।
इसे संगमरमर से चिह्नित किया गया है।
भैरव मंदिर
वाराणसी में काली भैरव मंदिर भी प्रसिद्ध है।
यह मंदिर गोदौलिया चौक से 2 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में टाउन हॉल के पास स्थित है।
सीता मंदिर
वाराणसी में देवी सीता का दोमंजिला मंदिर है।
यह मंदिर मानसून के मौसम में चारों तरफ से पानी से घिर जाता है। माना जाता है कि देवी सीता यहीं पर धरती में समा गई थीं।
वाराणसी में गंगा नदी के घाट
विंध्याचल
वाराणसी से विंध्याचल मंदिर 78 किलोमीटर और इलाहाबाद से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यह एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है।
सारनाथ
सारनाथ स्तूप
सारनाथ वाराणसी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सारनाथ बौद्धों का एक बड़ा तीर्थस्थल है। यहीं महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ित के बाद प्रथम उपदेश दिया था। यहां कई स्तूप तथा मंदिर है। चौखण्डी स्तूप, धमेख स्तूप तथा धर्मराजिका स्तूप यहां हैं। धमेख स्तूप उसी जगह पर बना हुआ है जहां पर भगवान बुद्ध ने दूसरी बार उपदेश दिया था। इसे सारनाथ में सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। चौखण्डी स्तूप के निकट ही एक थाई मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1976 ई. में हुआ था।
सारनाथ में एक पुरातत्वीय संग्रहालय ( समय: सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, प्रवेश शुल्क: 5 रु., शुक्रवार बंद) भी है। इस संग्रहालय में कई उत्कृष्ट मूर्त्तियां हैं। सारनाथ में ही एक अशोक स्तंभ है। इसके अलावा यहां बुद्ध की अभयमुद्रा में 287 मीटर ऊंची मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति मूर्तिकला की मथुरा शैली में बनी हुई है। यहां एक हिरण पार्क भी है।
साभार: भारत डिस्कवरी
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