मस्ती हव...

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जिया राजा बनारस ……


गुरु चल दिए समधियाने
— ;)


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सुबहे बनारस _ हमारी काशी

सुबहे बनारस _ हमारी काशी

काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह..
सुप्रभात .. बनारस▬●Good Morning.. Banaras▬● সুপ্রভাত .. কাশী▬●મોર્નિંગ સારા .. બનારસ▬● ಮಾರ್ನಿಂಗ್ ಗುಡ್ .. ಬನಾರಸ್▬●
नमस्ते बनारस.. महादेव .. जय श्री कृष्ण.. राधे राधे.. सत श्री आकाल.. सलाम वाले कुम.. जय भोले ...




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सुबहे बनारस _ हमारी काशी

सुबहे बनारस _ हमारी काशी

काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह..
सुप्रभात .. बनारस▬●Good Morning.. Banaras▬● সুপ্রভাত .. কাশী▬●મોર્નિંગ સારા .. બનારસ▬● ಮಾರ್ನಿಂಗ್ ಗುಡ್ .. ಬನಾರಸ್▬●
नमस्ते बनारस.. महादेव .. जय श्री कृष्ण.. राधे राधे.. सत श्री आकाल.. सलाम वाले कुम.. जय भोले ...




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Comedy Nights with Kapil


Comedy Nights with Kapil : Sunidhi Chauhan - 28th September 2013 - Full Episode (HD)
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लिंगाष्टकम – Sri Shiva Lingashtakam

ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं
निर्मलभासित शॊभित लिङ्गम् ।
जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 1 ॥

दॆवमुनि प्रवरार्चित लिङ्गं
कामदहन करुणाकर लिङ्गम् ।
रावण दर्प विनाशन लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 2 ॥

सर्व सुगन्ध सुलॆपित लिङ्गं
बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम् ।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 3 ॥

कनक महामणि भूषित लिङ्गं
फणिपति वॆष्टित शॊभित लिङ्गम् ।
दक्ष सुयज्ञ निनाशन लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 4 ॥

कुङ्कुम चन्दन लॆपित लिङ्गं
पङ्कज हार सुशॊभित लिङ्गम् ।
सञ्चित पाप विनाशन लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 5 ॥

दॆवगणार्चित सॆवित लिङ्गं
भावै-र्भक्तिभिरॆव च लिङ्गम् ।
दिनकर कॊटि प्रभाकर लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 6 ॥

अष्टदलॊपरिवॆष्टित लिङ्गं
सर्वसमुद्भव कारण लिङ्गम् ।
अष्टदरिद्र विनाशन लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 7 ॥

सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं
सुरवन पुष्प सदार्चित लिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मक लिङ्गं
तत्-प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 8 ॥

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठॆश्शिव सन्निधौ ।
शिवलॊकमवाप्नॊति शिवॆन सह मॊदतॆ ॥

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Comedy Nights with Kapil


Comedy Nights with Kapil : Ranbir Kapoor & Pallavi Sharda - 21st September 2013 - Full Episode (HD)
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Baba Thandai ( मैदागिन के बाबा ठंडई )

बनारस एक तीर्थ नगर है। पण्डे-पुजारिओं, मन्दिरों-देवालयों का। यहाँ गली का कोई भी नुक्कड़ नहीं जहाँ एक मूर्ति अपने छोटे देवालय में पतिष्ठित न हो। यहाँ सारे रास्ते घूम-फिरकर गंगा की ओर जाते लगते हैं। सभी रास्ते यहीं गंगा किनारे आकर खतम हो जाते हैं। जिन्दगी का चक्कर भी तो यहीं खतम होता है - महाश्मशान पर। जी हाँ, मणिकर्णिका नाम है इस शहर के महाश्मशान का। इस महाश्मशान की आग कभी ठण्डी नहीं होती।

शिव नगरी काशी के तीन प्रसिद्ध तीर्थ हैं - काशी विश्वनाथ (ज्योतिर्लिंग) मन्दिर, काल-भैरवजी का मन्दिर और गंगा तट - मुख्यतः पञ्चगंगा से अस्सी घाट तक। यह विश्वनाथ क्षेत्र ही वाराणसी का हृदय प्रदेश है। अन्नपूर्णा सहित विश्वनाथ की परिक्रमा में रचा-बसा यह शताब्दियों से ऐसा ही है। हाँ एक बहुत बड़ा परिवर्तन कभी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यहाँ एक मस्जिद भी है - विश्वनाथ मन्दिर के ठीक पीछे उतर की ओर लगे हाथ। कहते यह हैं कि मुगल सैनिकों ने पूर्व-स्थापित विश्वनाथ मन्दिर को तोड़कर उसकी जगह मस्जिद बना दिया। भूतभावन विश्वनाथ पास के कुएँ में कूद गए। वहीं से लाकर उन्हें अहल्या बाई होलकर द्वारा बनवाए गए आज के स्वर्ण मन्दिर में प्रतिष्ठित किया गया। विश्वनाथ मन्दिर के बाद चलें इस शहर के कोतवाल काल भैरव के मन्दिर की ओर। इसे मात्र संयोग ही नहीं मानना चाहिए कि उनका मन्दिर वर्तमान कोतवाली से कुछ दूर पर ही है। मुझे याद है मेरी माँ बचपन में हमेशा भैरवजी का दर्शन कराकर डंडे लगवाती थी। पंडों को दक्षिणा देती थी। एकाध बार मेरे बालों की कटाई भी हुई है यहाँ। पहले बकरों की बलि भी लेते थे भैरव बाबा। अब तो संभवतः लोगों की बुद्धि पर तरस खाते हए उन्होंने ऐसी बलि लेनी बन्द कर दी है। फिर भी आप जाइए और सुबह से शाम तक अगर बाबा के मन्दिर पर धरना दीजिए तो आपका दूसरा लोक तो उनके आशीष से संवर ही जाएगा, इस लोक के लंद-फंद से जूझने की ताकत भी मिलेगी।





काशी सेवन का एक दूसरा अंदाज भी है। यह बनारस का चौथा सत्य है-

चना, चबेना गंग जल जो पुरवै करतार।

कासी कभी न छोड़िए विश्वनाथ दरबार।।

मैं इसका एक दूसरा ही संसकरण प्रस्तुत करना चाहूँगा -

चना भंग गंगा-जल पाना।

विश्वनाथपुर छोड़ न आना।












अगर भगवान विश्वनाथ की कृपा से चना, भांग, गंगा-जल और पान मिलता रहे तो बनारस छोड़ कहीं और जाने का जोखिम कोई क्यों उठाए। यही एक शहर है जहाँ अकेला चना भी भाड़ झोंकने की अहमियत रखता है। रही भोजन के लिए चना ही काफी है की बात - तो इस पर बहस की गुंजाइश हो सकती है। जिसकी गांठ में नामा हो वह चने की कीमत नहीं आंक सकता। जिसका गरूर यह हो कि वह चने खाकर भी ताल ठोकता हुआ काशी में ही रहने का जोखिम उठाएगा ऐसा ही आदमी चना खाकर अकेले भाड़ झोंकने की हिमाकत कर सकता है। यहीं भांग के बारे में भी कुछ कहना जरूरी हो जाता है। अगर नहीं तो इस तरह यह सारी दुनियाँ पर क्यों हावी हो जाता। बनारस मस्त शहर है और इस म्स्ती के लिए भांग एक निहायत जरूरी चीज है। सुनते हैं कि जापानी लोग चाय-पान के पहले चाय-संस्कार करते हैं। भांग पीने या गोला निगलने के पहले उसका संस्कार जरूरी हो जाता है। पहले गंगा के किनारे या गंगा पर तिरती हुई नावों में सिलबटे पर भांग पीसने का रियाज हुआ करता था। यही रियाज इस संस्कारी शहर का भंग संस्कार पर्व बन गया था। एक ऐसा पर्व जो साल के हर दिन मनाया जाता था। संस्कृत भांग विजया की संज्ञा पाकर संस्कर्ता के लिए विजया-पर्व बन जाता था। एक ऐसा पर्व जिसका धर्म मस्ती से अलग और कुछ हो ही नहीं सकता। आज यह भंग-पर्व महा-शिवरात्रि और होली के दो विशेष दिनों तक ही सीमित होकर रह गया है। होली का भंग-पर्व बहुत हद तक आधुनिक सुरा पर्व बन गया है। बुढवा-मंगल, यानी गए साल के आखिरी मंगल की रात, गंगा के वक्ष पर बजरों पर खनकती घुंघरुओं की आवाज पर रूपाजीवाओं की थिरकन, भंग की तरंग में बहकते रईसों की आन-बान अब याददाश्त की बात भर रह गई है। बनारस की रईसी मर चुकी है, ठीक वैसे ही जैसे यहाँ की गुण्डा संस्कृति। महाराज बनारस श्री चेत सिंह के जमाने तक वाराणसी की गुण्डा-संस्कृति सदाबहार रही। वारेन हेस्टिंगज़ को इसी संस्कृति ने धूल चटाई। तब गुंडा शब्द का अर्थ ही अलग हुआ करता था।




हाँ, भांग घोटने और ठंडई छानने की बात घरों से उठ कर मैदागिन के बाबा ठंडाई । अब आपको छानना 
हो तो मैदागिन के बाबा ठंडई  जाइए, उससे आगे जा सकें तो बांस-फाटक की ढाल पर कन्हैया चित्र-मन्दिर से आगे बाईं ओर गली में जाइए। मेरी दृष्टि में छान-पर्व का दिव्य तीर्थ यही है। भांग-ठंडाई के साथ, खासतौर पर बनारसी (मगही) पान का योग मणि-काञ्चन योग की तरह ही मान्य होना चाहिए। पान की महिमा आयुर्वेद से लेकर संस्कृत काव्यों तक सर्वत्र चर्चित है। पान फेरा जाता है, कत्था जमाया जाता है, और चूना लगाया जाता है। यही फेरने, जमाने और लगाने की लयात्मक प्रक्रिया मगही पान के पत्तों पर उतर कर रसानुभूति बन जाती है। इस रसानुभूति का सद्यः उद्रेक जर्दे के बिना कुछ विशेष रियाज से ही संभव है। यही पान है जिसके दो बीड़े महाराज श्री हर्ष के कर कमलों से पाकर अतीत का कवि जीवन का सर्वस्व प्राप्त कर लेता था। अब तो केशव का पान बनारस की शान बना लंका तिराहे पर धूनी रमा कर बैठ गया है।
बनारस का अपना खानपान है। उत्तर भारत के प्रसिद्ध व्यंजनों के साथ ही यहां देश-दुनिया के प्रसिद्ध खाने सुलभ हैं। वैसे बनारस की खासियत है यहां की लस्सी और दूध। सुबह के समय कचौरी और जलेबी खाएं और दोपहर में सादा खाना। शाम को लौंगलता के साथ समोसा और गुलाब जामुन ले सकते हैं। इसके बाद बनारस की प्रसिद्ध ठंडई पीना और पान खाना न भूलें।
हा तो मै बात कर रहा था  मैदागिन के बाबा ठंडई की, दुकान तो शायद १६-१७ साल पुरानी है, हा पर उस
समय से देख रहा हु , जब काशी में भांग ठंडाई, बड़े लोगो का शौख होता था, उस ज़माने में पैसा जूता कर ठंडाई पिने जाता था, उम्र बहुत छोटी थे , डर से भांग मागता था

"संध्या समय छनै ठंडाई, हो शरबत का पान|| तरी भरी है तरबूजों में , खूब उड़ाओ , आम || अजी न लगते खरबूजों के, लेने में कुछ ... लगती थी अति ऊब || बजा रहे चिमटा बाबा जी , करते सीता राम || पहन लंगोटा पड़े हुए हैं , कम्बल का क्या काम "

आज भी उस दुकान को देखता हु तो अपना बचपन याद आ जाता है..  वैसे तो काशी में गाँजा और भाँग के सेवन के साथ कई नियमों का चलन है । निपटना , नहाना , रियाज और गीजा - पानी ग्रहण करना इनमें प्रमुख हैं । इनाके पालन में व्यतिक्रम हुआ तब ही शिव के इन प्रसाद से नुक़सान होता है यह मान्यता है । मलाई , रबड़ी जैसे गरिष्ट - पौष्टिक तत्व गीजा कहलाते हैं । यह धारणा प्रचलित है कि गीजा तत्वों को ग्रहण कर लेने से गाँजा- भाँग के नुकसानदेह प्रभाव खत्म हो जाते हैं और सकारात्मक प्रभाव शेष रह जाते हैं । बहरहाल , दरजा नौ की होली में इन नियमों को ताक पर रख कर मैंने एक प्रयोग किया । उन दिनों दस पैसे में चार गोलगप्पे ( पानी पूरी, बताशा या पुचका ) मिला करते थे । भाँग की सोलह गोलियाँ , सोलह गोलगप्पों में डालकर ग्रहण कर गए । कुछ दिनों तक संख्या कुछ घटा कर क्रम चलता रहा । यूँ तो काशी में विजया कई रूपों में उपलब्ध है - ठण्डई , कुल्फ़ी , नानखटाई और माजोम या मुनक्का के अलावा सरकारी ठेके पर पिसी-पिसाई गोली । इस प्रयोग का परिणाम मुझे करीब तीन महीने भुगतना पड़ा । अब काशी जाते ही पहले मृतुन्जय महादेव, फिर कल भरो दर्शन के बाद गौरी की कचौड़ी फॉर दूसरा काम, इतजार रहता है गोधुली बेला का फिर मैदागिन के जैन धर्मशाला के सामने बाबा ठंडई, २ गोला बाबा के प्रसाद के बाब १ बड़का पुरवा ठंडई, लगता है स्वर्ग का अहसास ..


बाब बम अलख ! खोल दा पलक ! दिखा दा दुनिया के झलक ! ' , 'बमबम ,लगे दम,मिटे गम,खुशी रहे - हरदम ' , ' बम चण्डी ,फूँक दे दालमण्डी , ना रहे कोठा , ना नाचे रण्डी


Baba Thandai
St Kabir Rd
Maidagin Crossing, Maidagin, Bisweshwarganj
Varanasi, Uttar Pradesh 221001
India

Open today



  1. 10:00 am – 10:00 pm

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बेनिया कुण्ड

<<--मुख्य पेज "वाराणसी एक परिचय " 


बेनिया कुण्ड, वाराणसी

 आज से कई हजार वर्ष पूर्व काशी का बेणी तीर्थ था, सम्प्रति बेनिया बाग के विशाल मैदान के एक छोर का कूड़ा-करकट व बड़ी-बड़ी जंगली घास से युक्त छोटी से गंदी झील में तब्दील हो चुका है। रख-रखाव के अभाव में इस झील में पानी इतना कम है कि वह किसी काम लायक नहीं है और पानी इतना गंदा व दुर्गन्धयुक्त है कि कोई भी आदमी इसमें हाथ डालना तक उचित नहीं समझता। वैशाख व ज्येष्ठ मास की गर्मी में इस झील का पानी सूखकर नाम मात्र रह जाता है।
विदेशी लेखिका डायना एलएक की पुस्तक 'बनारस सिटी ऑफ् लाइट' में 'वेणी तीर्थ' का उल्लेख जेम्स प्रिन्सेप ने सन् 1822 के बनारस के मानचित्र के आधार पर किया है। वेणी तीर्थ की चर्चा काशी खण्ड में भी की गयी है।
काशी के सम्बन्ध में प्राप्त विवरणों, मान्यताओं व चर्चाओं के अनुसार यह नगर राजघाट व अस्सी के बीच एक पहाड़ी पर बसा था और तत्कालीन समय में राजघाट को पठार माना जाता था उक्त क्षेत्र सर्वाधिक उँचाई पर स्थित है जबकि अस्सी क्षेत्र को निचला इलाका कहा जाता था। उक्त मान्यताएं आज के संदर्भ में भी उतनी ही समीचीन मानी जाती है। उँचाई पर स्थित होने के कारण ही राजघाट में उस दौरान किले का निर्माण भी किया था। राजा बनारस जिसके नाम पर काशी का नाम बदलकर बनारस हुआ था तथा दुर्ग (किला) राजघाट क्षेत्र में होने का उल्लेख भी पुरातत्व विभाग के पास है।
भूगर्भीय संरचना के अनुसार ऐसा माना गया है कि उत्तर वाहिनी गंगा के समानान्तर पहाड़ीनुमा शहर से सटी नदी भी बहती होगी जो बाद में नगर के अन्यान्य कुण्डों व सरोवरों में तब्दील हो गई होगी और उसी दौरान वेणी तीर्थ का निर्माण हुआ होगा। प्राप्त तथ्यों के अनुसार वेणी तीर्थ का रूप बेनियाबाग क्षेत्र में सन् 1863 तक विद्यमान था और यह कुण्ड सम्पूर्ण बेनियाबाग के मैदान के मध्य में विशालकाय कुण्ड के रूप में था।
सम्भवतः 20वीं सदी के प्रारम्भ में रख-रखाव के अभाव व अन्य कारणों से इस कुण्ड के रूप में परिवर्तन आने लगा और कूड़े के ढेर व घरों के मलबे आदि के कारण पटना शुरू हो गया। बाद में बेनियाबाग का मैदान हो गया। शायद इसी कारण कुण्ड एक गन्दे पोखरे के रूप में आज विद्यमान है। यहाँ गंदगी की भरमार है। इसके चलते यहां और आस-पास के क्षेत्र में मच्छरों व मक्खियों का साम्राज्य हो गया है और आये दिन इस क्षेत्र में संक्रामक रोगों का प्रसार होता रहता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुंड व तालाब (हिंदी) काशी कथा।

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Comedy Nights with Kapil

Comedy Nights with Kapil : Parineeti & Sushant - 1st September 2013 - Full Episode (HD)
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
Copyright © 2014 बनारसी मस्ती के बनारस वाले Designed by बनारसी मस्ती के बनारस वाले
Converted to blogger by बनारसी राजू ;)
काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!