पैट्रिक पंचतत्व में विलीन, अंतिम दर्शन को बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे

  • उनके पार्थिव शरीर का अंतिम क्रियाकर्म दोपहर बाद चर्च कैन्ट के समीप संपंन हो गया 
  • 1970 वाराणसी धर्मप्रांत के विशप रहे, 37 वर्षो बाद 2007 में सेवा निवृत हुए 
  • पूर्वांचल के कई जिला में दर्जनों मिशनरी स्कूलों की स्थापना, मैत्री भवन, नेत्रहीन बच्चों के लिए जीवन ज्योति वि़द्यालय, मूकबधिर बच्चों के लिए नववाणी स्कूल सहित कई अस्पतालों की भी की स्थापना 
वाराणसी कैथलिक धर्म प्रांत के विशप डाॅ पैट्रिक पाॅल डिसूजा का पार्थिव शरीर शनिवार दोपहर बाद पूरी श्रद्धा व अकीदत के साथ परंपरागत तरीके से पंचतत्व में विलीन हो गया। उनके अंतिम दर्शन को भारी संख्या में लोग मौजूद रहे। वाराणसी समेत, भदोही, मिर्जापुर, बलिया, गाजीपुर, सोनभद्र, चंदौली, जौनपुर सहित कई जिलों के मिशनरी स्कूलों के फादर, टीचर, स्टाफ कर्मचारियों के अलावा रीजनल विशप्स कांफे्रेस के अध्यक्ष सहित देश व विदेश के अनके धर्मगुरु मौजूद रहे। 
उनका गत 16 अक्टूबर को सुबह साढ़े नौ बजे निधन हो गया था। उनके पार्थिव शरीर को तब तक के लिए छवनी चर्च में ही रखा था। जहां उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों का तांता लगा रहा। उनका जन्म 28 अप्रैल 1928 को कर्नाटक के मैंगलोर-बंगलूर गांव में हुआ था। पिता मेरीयन डिसूजा व माता हुलसीन पिन्टों ने परवरिश की। वह वर्ष 1953 में फादर बने। इसके बाद वर्ष 1970 वाराणसी धर्मप्रांत के विशप बने। वे इस पद पर 37 वर्षो तक बने रहे। उनकी उम्र 86 वर्ष थी। वह इन दिनों बीमार चल रहे थे। उनका इलाज मउ के एक अस्पताल में कराया जा रहा था। इस दौरान उन्होंने कई मिशनरी स्कूलों की स्थापना कर राष्टीय स्तर पर पहचान बनाई। सर्वधर्म समभाव को समर्पित वाराणसी के भेलूपुर स्थित मैत्री भवन, काशी नगरी में अंतरधर्म परिसंवाद के लिए समर्पित होकर शांति व सद्भाव को जन-जन तक पहुंचाया। नेत्रहीन बच्चों के लिए सारनाथ में जीवन ज्योति वि़द्यालय, मूकबधिर बच्चों के लिए हरउवा स्थित कोईराजपुर में नववाणी स्कूल, मउ के ताजोपुर गांव अमरवाणी शिक्षण संस्थान, फातिमा अस्पताल, सिकरौल स्थित आशा निकेतन की स्थापना, की। भदोही, जौनपुर, चंदौली, वाराणसी, मउ, गाजीपुर सहित कई जिलों में मिशनरी स्कूलों की स्थापना के साथ भदोही में करुणालय, लोहता में सेंट मेरी अस्पताल की स्थापना की, जहां भारी संख्या में दीन-हीन लाभान्वित हो रहे है। शिवपुर स्थित नवसाधना पाॅस्टोरल सेंटर, नवसाधना पीजी कालेज, नवसंचार केन्द्र की स्थापना की। उन्होंने नवसाधना कला केन्द्र नृत्य डिग्री कालेज-शिवपुर की स्थापना की। इसके जरिए भरतनाट्यम व दक्षिण भारतीय नृत्य की शिक्षा की देकर बालिका शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। वाराणसी धर्म प्रांत से पूर्व बिशप श्रधेय डाॅ पैट्रिक पाॅल डिसूजा 30 अप्रैल 2007 को सेवानिवृत हुए थे। उन्होंने राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर चर्च के

पुरोहितों के लिए कई विषयों व मौकों पर सेमिनार का आयोजन भी कराया। उन्होंने वाराणसी धर्मप्रांत में निःस्वार्थ सेवाभक्ति और विकास के लिए क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और दुसरों को भी प्रेरित किया। इस मौके पर सेंट जाॅस स्कूल मढौली फादर थाॅमस, सेंट मेरी स्कूल भदोही फादर  अजय पाॅल, जौनपुर-शाहगंज के फादर रोड्रिग्स, गाजीपुर के हर्टमैन इंटर कालेज के फादर पी विक्टर सहित सभी स्कूलों के फादर, सिस्टर, टीचर व अन्य स्टाफ कर्मचारियों व समस्त सामाजिक व राजनीतिक हलकोें के लोग मौजूद रहे। सभी कार्यक्रम कैंट चर्च विशप हाउस के वाराणसी धर्म प्रांत के प्रशासक फादर यूजीन जोसेफ की अगुवाई में संपंन हुआ। 

Rajneesh K Jha

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विशेष : काशी के अस्सी नदी के अस्तित्व को खतरा

  • इसकी गरिमा व अस्तित्व बचा रहे, इसको लेकर मुखर हुआ साझा संस्कृति मंच 
  • मंच के बैनरतले स्वयंसेवी संगठनों ने किया सत्याग्रह और साफ-सफाई 
  • भगवान भोले को साक्षी मानकर हाथ में जल हाथ में लेकर संकल्प लिया कि यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक अस्सी स्वच्छ नहीं हो जाता 
धर्म की नगरी काशी की अस्सी एवं वरुणा नदी अब मृतप्राय हो चली हैं। प्रदूषण व उपेक्षा की मार झेल रही इन नदियों के सूखने एवं अतिक्रमण से तो अब इसके अस्तित्व पर ही संकट आ खड़ा हो गया है। जबकि वरुणा एवं असि (अस्सी) के संगम से ही काशी को वाराणसी कहा जाता है। कहा जा सकता है कि पूरी दुनिया में जिस
वाराणसी की इन दो नदियों से पहचान मिली है, अब दोनों गंदे नाले के रूप में परिवर्तित हो चुकी हैं। हालांकि काशी के स्वयंसेवी संगठन इन दोनों नदियों की अस्तित्व व गरिमा बची रहे इसके लिए जनांदोलन छेड़ दिए है। 18 अक्टूबर को साझा संस्कृति मंच के बैनरतले बड़ी संख्या में स्वयंसेवियों ने सत्याग्रह कर अस्सी नदी की साफ-सफाई की। इसके बाद अस्सी का जल हाथ में लेकर संकल्प लिया कि यह लड़ाई अस्सी को मुक्त करने तक जारी रहेगी। अंत में असि और वरुणा को प्रदूषण और अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए सैकड़ों लोगो द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन पत्र नगर निगम, जिलाधिकारी, मंडलायुक्त और मुख्यमंत्री को भेजा गया। इसके पहले वरुणा नदी की सफाई व कूड़ा से पाटे जाने को लेकर साफ-सफाई की जा चुकी है। 
बता दें, शहर के अधिकांश मुहल्लों की आबादी का मल-मूत्र सीधे इन्हीं नदियों से होकर गंगा में सीधे गिर रहा है, जो गंगा में प्रदूषण का मुख्य कारण है। नदी के दोनों किनारों पर लोगों ने कब्जा कर बड़ी-बड़ी इमारतें बना ली हैं। प्रदूषण व गंदगी के चलते वरुणा एवं अस्सी के जलजीव लगातार मरकर उतराते रहते है। मरे मछली एवं कछुआ के दुर्गंध व सडांध से गंभीर बीमारी का खतरा बना रहता है। नदियों के पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का मतलब मानव जीवन के लिए खतरे का संकेत है। क्योंकि नदियों का सीधा संबंध वायुमंडल से होता है। अत्यधिक जलदोहन एवं मल-जल की मात्रा बढ़ने से नदियों के जल में लेड, क्रोमियम, निकेल, जस्ता आदि धातुओं की मात्रा बढ़ती जाती है, जो मानव जीवन के लिए चिंताजनक है। पीने के पानी की किल्लत एक अलग समस्या होगी। हालांकि कुछ हद तक गंदा ही सही लेकिन वरुणा का अस्तित्व तो है, पर अस्सी नदी पर सवाल पूछिए तो शायद ही कोई संतोषप्रद जवाब सुनने को मिलेगा। अस्सी की स्थान पर चैड़ाई कागजो पर  25 मीटर तक है लेकिन प्रशासनिक चूक और संवेदनहीनता के कारण यह सिमट कर मात्र  2-4 फीट हो गयी है। हां, अस्सी घाट से थोड़ी दूर बढ़ें तो बड़ा गंदा नाला गंगा में जाता साफ दिखेगा। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के स्वयंसेवी संगठनों ने उनके गंगा निर्मलीकरण और अविरल प्रवाह के अभियान की सार्थकता को दुहराते हुए संकल्प लिया कि अब गंगा के साथ उसकी सहायक नदी वरुणा व अस्सी को भी स्वच्छ और निर्मल बनाना ही होगा, क्योंकि इन्हीं दोनों नदियों के नाम से वाराणसी अस्तित्व में आया और जब इनका ही अस्तित्व नहीं रहेगा तो फिर काशी की गरिमा को ठेस लगना स्वभाविक हैं। इसी संकल्प के साथ साझा संस्कृति मंच द्वारा पिछले 28 सितम्बर को वरुणा नदी के किनारे और 9 अक्टूबर को अस्सी में एक सांकेतिक सत्याग्रह किया गया था। इसी क्रम में 18 अक्टूबर को मंच व समग्र विकास समिति सहित अनेक जन संगठनों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, कलाकारों और छात्रों ने कचरा और मल युक्त असि नदी में 1 घंटे तक खड़े होकर सत्याग्रह किया। इस सत्याग्रह में गाजीपुर, चंदौली, भदोही तक से सत्याग्रही जुटे थे। सत्याग्रहियों द्वारा अस्सी नदी मुक्ति अभियान की शुरुआत की घोषणा की गयी। 
कहा गया कि अतिक्रमणकारियों, प्रदूषणकारियों और भूमाफियाओं के कुकर्मो से आज दोनों नदियाँ संकट में है। वाराणसी विकास प्राधिकरण और जिला प्रशासन की नाक के नीचे नदी क्षेत्र में अवैध लगातार निर्माण होते जा रहे हैं और नदी सिकुड़ती चली जा रही है। नगर निगम की उदासीनता से इन दोनों नदियों में लगातार कूड़ा डंपिंग की जा रही है, साथ ही तमाम नाले सीधे असि और वरुण में प्रवाहित किये जा रहे हैं। प्रदूषित पानी अंततः
गंगा में ही जाकर मिलता है। ऐसे में गंगा निर्मलीकरण की परियोजनाओं का औचित्य बेमानी है। राजस्व के अभिलेखों और प्राचीन पुस्तको में असि नदी के अस्तित्व होने के प्रमाण मिलते हैं। बीएचयु के अवकाश प्राप्त नदी वैज्ञानिक प्रो यूके चैधरी ने सारे प्रमाण प्रदेश और केंद्र सरकार तक उपलब्ध कराये हैं फिर भी कोई सार्थक प्रयास इस नदी को संरक्षित करने की दिशा में नही हो सका, जो चिंतनीय है। 
सत्याग्रहियों ने नदी में और नदी के बाहर जमा प्लास्टिक ढेर और पानी में बहते कचरे को निकाल कर बाहर किया। सत्याग्रह के दौरान प्रेरणा कला मंच के कलाकारों ने गीत और नुक्कड़ नाटक के माध्यम से नदी और जल स्रोतों के सरक्षण के लिए जनता को स्वयं आगे आने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से फादर आनंद, डा आनंद प्रकाश तिवारी, ब्रज भूषण दूबे, नंद्लाल मास्टर, प्रदीप सिंह, धनंजय त्रिपाठी, तपन कुमार, शोभनाथ यादव, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, दीनदयाल सिंह, सूरज पाण्डेय, मुकेश झांझरवाला, अवनीश गौतम, कन्हैयालाल हिन्दुस्तानी, संजीव सिंह, विनय सिंह, हर्षित शुक्ल, अमित यादव, राजकुमार पाण्डेय, रवि सोनकर, सौरभ मौर्या, विवेकानंद पाण्डेय आदि ने कहा किऐसा नहीं कि वरुणा की दुर्दशा के बारे में अधिकारियों एवं मंत्रियों को जानकारी नहीं है। जिले के अधिकारी वरुणा की सफाई एवं उसमें गिर रहे नालों को रोकने, नौका विहार एवं वृक्षारोपण जैसी योजना भी बनाते हैं लेकिन ये प्लान कागजों तक ही सीमित हैं। जिस वरुणा एवं असि के योग से काशी का नाम वाराणसी पड़ा उसमें गंदे नाले बेरोकटोक गिर रहे हैं। वरुणा एवं अस्सी में पानी की मात्रा कम कचरा ज्यादा नजर आता है।

Rajneesh K Jha
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साँड़ बनारसी

इलाहाबादी, मुरादाबादी और बनारसी आदि शब्दों के आगे-पीछे यदि अमरूद, लोटा, लँगड़ा आम जैसे शब्द न जोड़े जाएँ तो इसका अर्थ होगा - इन शहरों के निवासी। उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ के शहरों के नाम के  पीछे ‘ई’ लगा देने से उसका अर्थ वहाँ के निवासी से हो जाता है जैसे बनारसी, मलीहाबादी, आजमगढ़ी, सहारनपुरी, गोरखपुरी, रामपुरी, इलाहाबादी, मिरजापुरी और फर्रुखाबादी आदि। किसी शहर में बस जाने का यह मतलब नहीं कि उस व्यक्ति को उस शहर का निवासी मान लिया जाए। अक्सर आपने लोगों को कहते सुना  होगा - ‘भाई, गाँव जाना है।’ ‘देश में बहिन की शादी है’ ‘घर पर हालत ठीक नहीं, रुपये भेजने हैं’ आदि। इससे यह स्पष्ट है कि वह व्यक्ति मौजूदा समय जहाँ है, उसे अपना शहर नहीं मानता और न वहाँ का रजिस्टर्ड बाशिन्दा हो गया है - इसे स्वीकार करता है, रोजी-रोजगार के लिए टिका हुआ है। भले ही वह बाहर जाकर अपने को उस शहर का निवासी घोषित करे, लेकिन मन, वचन और कर्म से वह उस शहर का निवासी नहीं है। ठीक इसी प्रकार बनारस में रहनेवाले सभी बनारसी नहीं हैं।

बनारसी कौन?
आखिर असली बनारसी है कौन? उनकी पहचान क्या है? पहले आपको यह जान लेना चाहिए कि बनारसी कहना किसे चाहिए। बनारस में पैदा होने या पैदा होकर मर जाने से बनारसी कहलाने का हक हासिल नहीं होता। इस प्रकार के अनेक बनारसी नित्य पैदा होते हैं और मरते हैं। क्या वे सभी बनारसी हैं? कभी नहीं। बनारस में पैदा होना, बनारस में आकर बस जाना या बनारसी बोली सीख लेना भी बनारसी होने का पक्का सबूत नहीं है। हिन्दुस्तान को इस बात का फख़्र है
कभी कभी पढ़ते पढ़ते कोई विचार दिमाग में छा जाता है और उस पर चिंतन मनन करना ही पड़ता है . रांड सांड सीढ़ी सन्यासी, इनसे बचो तो कबहु न होई हानि ... ये वाक्य मैंने कहीं पढ़े हैं पर याद नहीं आ रहा है की मैने किस पुस्तक में पढ़ा है और कौन इसके लेखक हैं .

 
काशी के बारे में एक उक्ति है... रांड सांड सीढ़ी सन्यासी इनसे बचे तो सेवे काशी.

तो ये सीढ़ी काशी की सीढ़ी है...
काशी तीन लोक से न्यारी है। वह शेषनाग के फन पर अथवा शंकर के त्रिशूल पर स्थित है। चूँकि काशी बाबा की राजधानी है, जाड़े के दिनों में वे यहीं रहते हैं, गर्मी में पहाड़ पर आबोहवा बदलने चले जाते हैं, इसलिए यह जरूरी है कि साँड़ अपने मालिक के राज्य में काफी तादाद में रहें, क्योंकि ज़माना तटस्थ रहते हुए भी गुर्राहट और हमले की आशंका से भयभीत है। ऐसी हालत में पता नहीं, कब किसकी और कितनी संख्या में जरूरत पड़ जाए। यही कारण है कि काशी को अपना अस्तबल समझकर साँड़ इतनी आजादी से रहते हैं।


ऐसे ही बनारसी साँड़ के ब्याख्या में बनारस के संस्कारो के संरक्षक श्री सुदामा तिवारी (साँड़ बनारसी ) जिनका एक छोटा सा परिचय 


जौनपुर से २२ कि.मी. दक्षिण और पश्चिम के कोने पर ग्राम-गहलाईं,  वर्तमान में पोस्ट- तेजगढ़,  जिला-जौनपुर में एक साधारण किसान पिता स्वं. विश्वनाथ तिवारी,  माता स्व. नर्मदा तिवारी के परिवार में १३ अप्रैल १९४२ को जन्म हुआ था । ६ वर्ष की  अवस्था मे उनके पिता का देहांत हो गया था । उसी वर्ष उनके बडे भाई का भी अल्पायु में निधन हो गया |

उनकी बुआ उन्हें  १९४६- ४७ में बनारस ( वाराणसी ) लेकर आ गईं और अगस्तकुंड मुहल्ले में रहते हुये टेढीनीम से प्राइमरी स्कूल और उसके बाद सनातन धर्म इंटर कालेज मे पढना प्रारंभ किया । प्रतिकूल परिस्तिथियों के कारण पढाई रुक-रुक कर होती रही |

उनके पिता के स्वर्गवास के बाद उनके पिता के चाचा स्वं. रांमानन्द तिवारी उनके पिता की खेती बारी देखने लगे,  और उन्हें पुत्रवत स्नेह देकर कार्य करने लगे और वह अन्त तक उनके साथ रहे और १९९१ में उनका स्वर्गवास हो गया |

१९६५ मैं उनकी माता जी का भी स्वर्गवास हो गया और उसी समय उनकी शादी भी हो गई लेकिन उनका गाव से भी बरांबर आना-जाना रहता था |


कविता और पैरोडी लिखने की आदत उनकी सनातन धर्म इण्टर कालेज से प्रारम्भ हो गई थी । उन्होंने नौकरी  के साथ-साथ काशी विद्यापीठ से शास्वी एवं एम.ए. समाजशास्त्र बिषय से किया केवल ज्ञान बढाने के लिये । तब तक वो काफी चर्चित हो चुके थे । चकाचक बनारसी एवं स्व. चन्द्रशेखर मिश्र , भइया जी बनारसी,  श्री धर्मशील जी के सहयोग से वाराणसी में लोग जानने सुनने लगे थे । एक कबि सम्मेलन के दौरान गोरखपुर में स्वं. श्याम नारायण पाण्डेय जी  ने उनके डील-डौल एवं शरीर को देखने के बाद कविता सुनकर कहा कि तुम तो साँड़ की तरह लग रहे हो । उस समय स्वं. रूप नारायण त्रिपाठी , स्व. क्षेम , स्व. सुड़ फैजाबादी , स्वं. चन्द्रशेखर मिश्र आदि सबने उनका समर्थम किया और उनका कवि उपनाम साँड़ बनारसी रख दिया गया |  

धीरे- धीरे यह नाम प्रचलित होता गया । मंचों पर कविता पढने का अवसर व उन्हें आगे बढाने में स्वं. चन्द्रशेखर मिश्र एवं स्व. सुड़ फैजाबादी ज्यादा थे । बनारस में चकाचक बनारसी, श्री धर्मशील चतुर्वेदी जी एवं साँड़ बनारसी जी की ही तिकडी ज्यादा सक्रिय रही । अब बनारस में सिर्फ  श्री धर्मशीत्न जी श्री साँड़ बनारसी जी ही है,  उनको धीरे- धीरे लगभग सभी शहरों में काव्य पाठ का अवसर प्राप्त हुआ | कवितायें उस समय दैनिक आज में छपने लगीं जिसे भइया जी बनारसी ने काफी प्रोत्साहित किया |

अभी वो जे.ईं॰ पद से अवकाश ग्रहण कर चुके है । उन्होंने १९५९ में आई.टी.सी. (बी.एच.यू. से इंडस्ट्रियल  ट्रेनिग सेन्टर से ) ट्रेनिग करके डी.एल.डब्लू में अपरेन्टिस में भर्ती हो गए और दो वर्ष के बाद वो कर्मचारी के रूप में स्थाई रूप से काम करने लगे |

श्री साँड़ बनारसी जी बिहार एवं प्रदेश के लगभग सभी शहरों में काव्य पाठ कर चुके है | प्रदेशों में राजस्थान, पजाब, कश्मीर, म.प्र., गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र ( मुम्बई ), कोलकाता, उडीसा, हरियाणा, नैनीताल, अल्मोड़ा, देहरादून यानि पूरे भारत में केवल केरल को छोडकर । बाद में दो चार बार अमेरिका भी जाने का अवसर प्राप्त हुआ |

उनकी कविता का अंदाज वो जिस स्वर में पढते है उसे श्रोता पसंद भी करते है, वो हमेशा स्वान्तः सुखाय सवैया और कवित्त, पैरोडी, हास्य लिखने का महारथ हासिल है, समय के अनुसार उनके मन में जो भी उद्गार आते है वो लिख डालते है |


वो अपने माता-पिता की पाँच सन्तानों में चार बहनों एबं एक मात्र में ही पुत्र है | आज उनके दो पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं बड़ा पुत्र रेलवे में एवं छोटा एडवोकेट हैं । आज के परिवेश में सिर्फ चुनिन्दा कवि सम्मलेन ही करते है लेकिन अपनी संस्था का ही आयोजन परिश्रम के साथ करते है |

मान सम्मान में उन्हें चकल्लस सम्मान, ठहाका सम्मान, सुड़ फैजाबादी सम्मान, चकाचक बनारसी सम्मान, शारदा सम्मान, हुडदंग सम्मान,  स्वं. कैलाश गौतम रजत मुकुट सम्मान जैसे कितने सम्मान से आप अलंककृत है आज भी आप आकाशवाणी से दूरदर्शन तक अपने चहेतों के बीच में अपने काब्य पाठ के माध्यम से हमारे दिल में बैठे है |



काशी में बनारस की सभ्यता के अनुरूप वो हर आयोजन से जुड़े रहते है , वो अत्यंत भावुक, संवेदशील और सहृदय ब्यक्ति है , साँड़ बनारसी जी गीत, पैरोडी, भले ही लिखी हो , परन्तु मूलतः प्राचीन छंद के ही इर्द गिर्द रहते है |


काब्य की विविधता के साथ ही बेलाग प्रस्तुतीकरण में महारथ हासिल करने के कारण श्रोताओ का भरपूर सहयोग और स्नेह मिलता रहा है , दो बार तो अमेरिका में भी अपनी हनक पहुचाने वाले साँड़ बनारसी काशी की हास्य परंपरा से लोगो को आनंदित किया है |

विषय वस्तु में भी वैश्विध्य इनकी विशेषता है , किसी भी अवसर पर झटपट रचना कर लेना आप का कौशल है, आप अमेरिका में भी अपने मित्रो के साथ वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की उची ईमारत के अवलोकन के बाद उनकी ये रचना की दिल को छु जाती है |




आज मनोरंजन के जिस संस्कार को विकार रहित, दूषण रहित , साहित्य को जिन्दा रखे है, ब्यंजना तथा अन्य अलंकारो में इतनी सजावट है की वो मुर्दा दिलो को भी गुदगुदा सकते है |

पता :
श्री सुदामा तिवारी (साँड़ बनारसी )
डी . ३६/१९८ , अगस्त कुंड, गौदोलिया
वाराणसी
मोबाईल : ९४५०५२८७७७  
 

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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!