काशी की महिमा


संसार के इतिहास में जितनी अधिक प्राक्कालिकता नैरन्तर्य और लोकप्रियता काशी को प्राप्त है,उतनी किसी भी नगर की नही है.काशी लगभग 15000 सालों से भारत के हिन्दुओ का पवित्र तीर्थ स्थान रही है.और उनकी भावनाओं का धार्मिक केन्द्र रही है.यह परम्परागत धार्मिक पवित्रता और शिक्षा का केन्द्र रही है.हिन्दू धर्म की विचित्र विषमता,संकीर्णता,तथा नानात्व और अन्तर्विरोधों के बीच यह एक सूक्षम श्रंखला है,जो सबको समन्वित करती है.केवल सनातन हिन्दुओ के लियी ही नही बौद्धो और जैनो के लिये भी यह स्थान बहुत महत्व का है.भगवान बुद्ध ने बोध गया मे ज्ञान प्राप्त होने पर सर्वप्रथम यही पर पहला उपदेश किया था.जैनियो के तीन तीर्थंकरो का जन्म यही हुआ था.इसे बनारस या वाराणसी भी कहा जाता है,पिछले सैकडो वर्षो से इसके महात्म पर विपुल साहित्य की सर्जना हुई है,पुराणो मे इसका बहुत विस्तृत वर्णन मिलता है.पुराख्यानो से पता चलता है,कि काशी प्राचीन काल से ही एक राज्य रहा,जिसकी राजधानी वाराणसी थी.पुराणो के अनुसार एल (चन्द्रवंश) के क्षत्रवृद्ध नामक राजा ने काशी राज्य की स्थापना की,उपनिषदो में यहां के राजा अजातशत्रु का उल्लेख है,जो ब्रह्म विद्या और अगिन विद्या के प्रकाण्य विद्वान थे.महाभारत के अनुशासन पर्व (३०.१०) के अनुसार अति प्राचीन काल में काशी में धन्वन्तरि के पौत्र दिवोदास नी आक्रामक भद्रश्रेण्ड्य के १०० पुत्रो को मार डाला था,और वाराणसी पर अधिकार कर लिया था,इससे क्रुद्ध होकर भगवान शिव ने अपने गण निकुम्भ को भेज कर उसका विनास करवा दिया.हजारो वर्ष तक काशी खन्डहर के रूप मे पडी रही,तदुपरान्त भगवान शिव स्वयं काशी मे निवास करने लगे,तबसे इसकी पवित्रता और बढ गयी.बौद्ध धर्म के ग्रन्थो से पता चलता है,कि काशी बुद्ध के युग मे राजगृह श्रावस्ती तथा कौशाम्बी की तरह एक बडा नगर था.वह राज्य भी था.उस युग में यहांवैदिक धर्म का पवित्र तीर्थ स्थान और शिक्षा का केन्द्र भी था.काशी खण्ड (२६.३४) और ब्रह्म पुराण के (२०७) के अनुसार वाराणसी शताब्दियों तक पांच नामो से जानी जाती रही,वाराणसी,काशी,अविमुक्त,आनन्दकानन,और शमशान या महा शमशान इसके प्रमुख नाम थे.पिनाकपाणि शम्भु ने इसे सर्वप्रथम आनन्दकानन और तदन्तर अविमुक्ति कहा (स्कन्द.काशी.२६.३४).काशी काश धातु से निष्पन्न है,काश का अर्थ है ज्योतित होना,अथवा करना,इसका नाम काशी इसलिये है कि यह मनुष्य के निर्वाणपथ को प्रकाशित करती है.अथवा भगवान शिव की परमसत्ता यहां प्रकाशित करती है,(स्कन्द.काशी.२६.६७).ब्रह्म (३३.४९) और कूर्म पुराण (१.३१.६३) के अनुसार वरणा और असी नदियों के बीच स्थित होने से इसका नाम वाराणसी पडा.जाबालोपनिषद में कुछ विपरीत मत मिलते है,वहां अविमुक्त,वरणा और नासी का अलौकिक प्रयोग है,अविमुक्त को वरणा और नाशी के मध्य स्थित बताया गया है,वरणा को त्रुटियों का नाश करने वाला,और नाशी को पापो का नाश करने वाला बताया गया है,इस प्रकार काशी पापं से मुक्त करने वाली नगरी है.लिन्ग पुराण (पूर्वार्ध ९२.१४३) के अनुसार अवि का अर्थ पाप है,और काशी नगरी पापों से मुक्त है,इसलिये इसका नाम अविमुक्त पडा.काशीखण्ड (३२.१११) तथा लिन्गपुराण (१.९१.७६) के अनुसार भगवान शंकर को काशी (वाराणसी) अतयन्त प्रिय है,इसलिये उन्होने इसे आनन्दकानन नाम से अभिहित किया है,काशी का अन्तिम नाम शमशान अथवा महाशमशान इसलिये पडा,कि वह निधनोपरान्त मनुश्य को संसार के बन्धनो से मुक्त करने वाली है,वस्तुत: शमशान प्रेतभूमि,शब्द अशुद्धि का द्योतक है,किन्तु काशी की शमशान भूमि को संसार में सर्वाधिक पवित्र माना गया है.दूसरी बात यह है कि श्म का तात्पर्य है शव,और शान का तात्पर्य है लेटना,(स्कन्द काशी ३०.१०३.४).प्रलय होने पर महान आत्मा यहां शव या प्रेत रूप में निवास करते हैं,इसलिये इसका नाम महाशमशान है.पदम पुराण (१३३.१४) के अनुसार भगवान शंकर स्वयं कहते है,कि अविमुक्त प्रसिद्ध प्रेतभूमि है.संहारक के रूप में यहां रह कर मै संसार का विनास करता हूँ.यद्यपि सामान्य रूप में काशी वाराणसी,और अविमुक्त तीनो का प्रयोग समान अर्थ मे किया गया है,किन्तु पुराणो मे कुछ सीमा तक इनके स्थानीय क्षेत्र विस्तार में अन्तर का भी निर्देश है,वाराणसी उत्तर से दक्षिण तक वरणा और असी से घिरी हुई है,इसके पूर्व मे गंगा है,तथा पश्चिम में विनायक तीर्थ है,इसका आकार धनुषाकार है,जिसका गंगा अनुगमन करती है,मतस्य पुराण (१८४.५०-५२) के अनुसार इसका विस्तार क्षेत्र ढाई योजन पूर्व से पश्चिम और अर्ध योजन उत्तर से दक्षिण है.इसका प्रथम वृत सम्पूर्ण काशी क्षेत्र का सूचक है.पदम पुराण पाताल खण्ड के अनुसार यह एक वृत से घिरी हुई है,जिसकी त्रिज्यापंक्ति मध्यमेश्वर से आरम्भ होकर देहली विनायक तक जाती है.यह दूरी दो योजन तक है (मत्स्यपुराण अध्याय १८१.६१.-६२).अविमुक्त उस स्थान को कहते है जो २०० धनुष व्यासार्ध (८०० हाथ या १२०० फ़ुट) मे विश्वेश्वर के मन्दिर के चतुर्दिक विस्तृत है,काशी खण्ड में अविमुक्त को पंचकोश तक विस्तृत बताया गया है,पर वहां वह शब्द काशी के प्रयुक्त हुआ है.पवित्र काशी क्षेत्र सम्पूर्ण अन्तर्वृत पश्चिम में गोकर्णेश से लेकर पूर्व मे गंगा की मध्य धारा तथा उत्तर में भारभूत से दक्षिण में ब्रह्मेश तक विस्तृत है.

    काशी का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है,महाभारत वनपर्व (८४.७९.८०) के अनुसार ब्रह्महत्या का अपराधी अविमुक्त मे प्रवेश करके भगवान विश्वेश्वर की मूर्ति का दर्शन करने मात्र से ही पाप मुक्त हो जाता है.और यदि वहां पर मृत्यु को प्राप्त होता है,तो उसे मोक्ष मिलता है.अविमुक्त मे प्रवेश करते ही सभी प्रकार के प्राणियों को पूर्वजन्मो के हजारों पाप क्षण मात्र में नष्ट हो जाते हैं.धर्म मे आशक्ति रखने वाले व्यक्ति की काशी मे मृत्यु होने पर वह दुबारा से संसार को नही देखता.संसार मे योग के द्वारा मोक्ष (निर्वाण) की प्राप्ति नही हो सकती,किन्तु अविमुक्त मे योगी को मोक्ष सिद्ध हो जाता है,(मत्स्य १८५.१५-१६).कुछ स्थलो पर वाराणसी तथा वहां की नदियों के सम्बन्ध में रहस्यात्मक संकेत भी मिलते है,उदाहरणार्थ काशीखण्ड मे असी को "इडा",वरणा को "पिन्गला"और अविमुक्त को "सुषुम्ना" तथा इन तीनो के सम्मिलित रूप को काशी कहा जाता है,(स्कन्द काशी खण्ड ५१२),परन्तु लिन्गपुराण का इससे भिन्न मत है,वहां असी,वरणा,तथा गंगा को क्रमश: पिन्गला,इडा और सुषुम्ना कहा गया है.
    काशी क्षेत्र में एक एक पग में एक एक तीर्थ की महत्ता है,(स्कन्द काशीखण्ड ५९.११८).और काशी की तिलमात्र भूमि भी शिवलिन्ग से अछूती नही है,जैसे काशीखण्ड के दसवें अध्याय में ही ६४ लिन्गो का वर्णन है,चीनी यात्री (ह्वेनसांग) के अनुसार उसके समय में काशी मे सौ मन्दिर थे,और एक मन्दिर में १०० फ़ुट ऊंची ताम्बे की मूर्ति थी,किन्तु दुर्भाग्यवस विधर्मियो द्वारा काशी के सहस्त्रो मन्दिर विध्वस्त कर दिये,और उनके स्थान पर अपने धर्म स्थानो का निर्माण कर दिया,उस समय के प्रसिद्ध शासक औरंगजेब ने काशी का नाम मुहम्मदाबाद रख दिया था मगर यह चल नही पाया.और काशी में फ़िर से मन्दिर बनने लगे.भवान विश्वनाथ काशी के रक्षक है,और उनका मन्दिर प्रमुख है,ऐसा विधान है कि प्रत्येक काशी वासी को नित्य गंगा स्नान करके काशी विश्वनाथ के दर्शन करने चाहिये.औरंगजेब के बाद लगभग सौ वर्षों तक यह व्यवस्था नही रही,शिवलिन्ग को यात्रियो की सुविधानुसार यत्र तत्र स्थापित किया जाता रहा है,(त्रिस्थलीसेतु पृ.२०८).वर्तमान मन्दिर अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरणो मे रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित हुआ है.अस्पृस्यता का जहां तक प्रश्न है,त्रिस्थली सेतु पृष्ठ १८३ के अनुसार अन्त्यजों के द्वारा लिन्ग स्पर्श किये जाने मे कोई दोष नही है,क्योंकि विश्वनाथजी प्रतिदिन प्रात: ब्रह्मबेला में मणिकर्णिका घाट पर गंगास्नान करके प्राणियों द्वारा ग्रहण की गयी अशुद्धियों को धो डालते है.
    काशी मे विश्वनाथ के पूजनोपरान्त तीर्थ यात्री को पांच अवान्तर तीर्थों-द्शाश्वमेध,लोलार्क,केशव,बिन्दुमाधव,तथा मणिकर्णिका का भी परिभ्रमण करना आवश्यक है,(मत्स्यपुराण).आधुनिक काल में काशी के अवान्तर पांच तीर्थ पंचतीर्थी के नाम से अभिहित किये जाते है.और वे गंगा असी सन्गम दशाश्वमेध घाट,मणिकर्णिका,पंचगंगा,और वरणासंगम,लोलार्क तीर्थ असी संगम के पास वाराणसी की दक्षिणी सीमा पर स्थित हैं,वाराणसी के पास गम्गा की धारा तो तीव्र है,और वह सीधी उत्तर की ओर बहती है,इसलिये यहां इसकी पवित्रता का और अधिक महात्म्य है,दशाश्वमेधघाट तो शताब्दियों से अपनी पवित्रता के लिये ख्यातिलब्ध है,काशी खण्ड (अध्याय ५२,५६,६८) के अनुसार द्शाश्वमेध का पूर्व नाम रुद्रसर है,किन्तु जब ब्रहमा ने यहां दस अश्वमेध यज्ञ किये उसका नाम दशाश्वमेध हो गया.मणिकर्णिका (मुक्तिक्षेत्र) काशी का सर्वाधिक पवित्र तीर्थ तथा वाराणसी के धार्मिक जीवन क्रम का केन्द्र है.इसके आरम्भ के सम्बन्ध मे एक रोचक कथा है.
    विष्णु ने अपने चिन्तन से यहां एक पुष्कर्णी का निर्माण किया,और लगभग पचास हजार वर्षों तक वे यहां घोर तपस्या करते रहे,इससे शंकर प्रसन्न हुए,और उन्होने विष्णु के सिर को स्पर्श किया,और उनका एक मणिजटित कर्णभूषण सेतु के जल मे गिर पडा,तभी से इस स्थल को मणिकर्णिका कहा जाने लगा.काशीखण्ड के अनुसार निधन के समय यहां सज्जन मनुष्यों के कान में भगवान शंकर तारक मन्त्र फ़ूंकते है,इसलिये यहां स्थित मन्दिर का नाम तारकेश्वर है.
    यहां पंचगंगा घाट भी है,इसे पंचगंगा घात इसलिये कहा जाता है,कि पुराणो के अनुसार यहां किरणा,धूतपापा,गंगा,यमुना,और सरस्वती का पवित्र सम्मेलन हुआ है,यद्यपि इनमे दो अब अद्र्श्य है,काशीखण्ड (५९.११८-१३३) के अनुसार जो व्यक्ति इस पंचानद संगम स्थल पर स्नान करता है,वह इस पंचभौतिक शरीर से मुक्त होकर वापस इस संसार मे नही आता है.यह पांचनदियों का संगम विभिन्न युगों मे विभिन्न नामो से अभिहित किया गया था.सत्ययुग मे धर्ममय,त्रेता में धूतपातक,द्वापर मे बिन्दु तीर्थ,कलियुग मे इसका नाम पंचनद पडा.
    काशी में तीर्थ यात्री के लिये पंचकोशी की यात्रा बहुत ही महत्व पूर्ण है,पंचकोशी मार्ग की लम्बाई लगभग पचास मील है,और इस मार्ग पर सैकडों मन्दिर है,मणिकर्णिका केन्द्र से यात्री वाराणसी की अर्धवृत्ताकार मे परिक्रमा करता है,जिसका अर्धव्यास पंचकोश है,इसी लिये इसे पंच कोश कहते हैं (काशीखन्ड२६.८०. और ११४ तथा अध्याय ५५-४४) इसके अनुसार यात्री मणिकर्णिका घाट से गंगा के किनारे किनारे चलना आरम्भ करके अस्सी घाट के पास मणिकर्णिका से ६ मील दूर खाण्डव (कंदवा) नामक गांव में रुकता है,वहा से दूसरे दिन धूपचन्डी के लिये जिसकी दूरी १० मील है,प्रस्थान करता है,वहां धूपचन्डी का मन्दिर है.तीसरे दिन वह १४ मील की यात्रा पर रामेश्वर नामक गांव के लिये प्रस्थान करता है,चौथे दिन वहां से ८ मील दूर शिवपुर पहुंचता है,५ वें दिन ६ मील दूर कपिलधारा जाता है,वहां पर पितरों का श्राद्ध करता है,छठे दिन वह वरणासंगम होते हुए ६ मील की यात्रा करके मणिकर्णिका आजाता है.कपिलधारा से मणिकर्णिका तक वह यव (जौ) देवान्न बिखेरता हुआ आता है.तदुपरान्त वह गंगा स्नान करके पुरोहितों को दक्षिणा देता है,फ़िर साक्षीविनायक के मन्दिर मे जाकर अपनी पंचकोशी यात्रा की पूर्ति की साक्षी देता है.
    इसके अतिरिक्त काशी के कुछ अनु तीर्थ भी प्रमुख है,इनमे ज्ञानवापी का नाम उल्लेखनीय है,यहां भगवान शिव ने शीतल जल मे स्नान करके यह वर दिया था, कि यह तीर्थ अन्य तीर्थों से उच्चतर कोटिका होगा.इसके अतिरिक्त दुर्गाकुण्ड पर एक विशाल दुर्गा मन्दिर है,काशीखण्ड (श्लोक ३७.६५) में इससे सम्बन्ध दुर्गास्तोत्र का भी उल्लेख है.विश्वेश्वर मन्दिर से एक मील उत्तर भैरवनाथ का मन्दिर है,इनको काशी का कोतवाल कहा जाता है,इनका वाहन कुत्ता है.साथ ही गणेशजी के मन्दिर तो काशी में अनन्त हैं,(त्रिस्थलीसेतु प्रुष्ठ ९८-१००) से यह पता चलता है,कि काशी मे प्रवेश करने मात्र से ही इस जीवन के पापॊ का क्षय हो जाता है.और विविध पवित्र शलो पर स्नान करने से पूर्व जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है.
    कुछ पुराणो के अनुसार काशी मे रहकर जरा भी पाप नही करना चाहिये,क्योंकि इसके लिये बडे ही कठोर दंड का विधान है.तीर्थ स्थान होने के कारण यहां पूर्वजो अथवा पितरों का श्राद्ध और पिण्डदान किया जा सकता है.किन्तु तपस्वियों द्वारा काशी में मठों का निर्माण अधिक प्रसंसनीय है,साथ ही यह भी कहा जाता है,कि प्रत्येक काशीवासी को प्रतिदिन मणिकर्णिका घाट पर गंगा स्नान करके विश्वेशवर का दर्शन करना चाहिये.(त्रिस्थली पेज १६८) में कहा गया है कि किसी अन्य स्थल पर किये गये पाप काशी मे नष्ट हो जाते है,किन्तु काशी मे किये गये पाप और काशी के प्रति मन में लायी गयी गलत अवधारणा दारुण यातनादायक होते है,जो काशी मे रहकर पाप करते है वह पिसाच योनि मे चला जाता है,वह इस अवस्था में हजारो वर्षों तक भी रह सकता है,और पापों का क्षय होने पर ही वह मोक्ष का अधिकारी होता है.काशी मे रहकर जो पाप करते है,उन्हे यम यातना नही सहन करनी पडती है,चाहे वे काशी मे मरे या और कहीं,जो काशी मे रहकर पाप करते है वे कालभैरव द्वारा दण्डित होते है,जो काशी मे पाप करने के बाद अन्यत्र मरते है,वे राम नामक शिव के गण द्वारा सर्वप्रथम यातना सहते हैं,तत्पश्चात वे कालभैरव द्वारा दिये गये दण्ड को सहते हैं फ़िर वे नश्वर मानव योनि में प्रविष्ट होते हैं,और काशी मे मर कर संसार से मुक्ति पाते हैं.
    स्कन्द पुराण के काशीखण्ड मे (८५,११२-११३) मे यह उल्लेख है कि काशी से उत्तर में धर्म क्षेत्र सारनाथ विष्णु का निवास स्थान है,जहां उन्होने बुद्ध का रूप धारण किया,यात्रियो के लिये सामान्य नियम है कि उन्हे आठ मास तक रह कर संयत तरीके से स्थान शान पर भ्रमण करना चाहिये,किन्तु काशी में प्रवेश के बाद बाहर भ्रमण नही करना चाहिये,और काशी को छोडना ही नही चाहिये,क्योंकि वहां पर मोक्ष निश्चित है.भगवान शिव के श्रद्धालु भक्त के लिये महान विपात्तियों मे भी उनके चरणो के जल के अतिरिक्त और अन्य कही स्थान नही है,शरीर के अन्दर और बाहर के किसी भी रोग में भगवान शंकर की प्रतिमा पर चढे जल के आस्था पूर्ण स्पर्श से वे दूर हो जाते है.(काशीखण्ड ६७,७२-८३)
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सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं ऐसे कार्टून

कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया की दुनिया में तेजी से वायरल हो रहे हैं. इन तस्वीरों में चुनाव नतीजों से पहले देश की बदलती सियासत और पार्टियों व नेताओं द्वारा अपने अंतरात्मा की मनचाही आवाज सुनने को लेकर जमकर चुटकी ली जा रही है. पेश हैं ऐसी ही कुछ तस्वीरें...


 ये कार्टून तब सोशल मीडिया में छाया जब कभी कांग्रेस के करीबी रहे वरिष्ठ पत्रकार और लेखक एमजे अकबर बीजेपी में शामिल हो गए.




जब बीजेपी ने अपना चुनावी गीत लॉन्च किया था तब ये कॉर्टून सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया. पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने चुनावी गीत 'मैं देश नहीं झुकने दूंगा' को लॉन्च किया था. इस कार्टून में इसी पर चुटकी ली गई है.


बाबा जी का ठुल्लू' बोलना लोगों को तो कूल लगने ही लगा है, लेकिन इसके साथ-साथ 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' के होस्ट कपिल शर्मा के इस जुमले का इस्तेमाल अब सोशल मीडिया व इस पर वायरल होने वाले कार्टूनों में भी जमकर होने लगा है. ये कार्टून भी इसी की मिसाल है.


लोकसभा चुनाव से पहले मोदी लहर और बीजेपी की मजबूत स्थिति पर आधारित इस कार्टून को भी सोशल मीडिया पर काफी पंसद किया गया. इसमें मोदी को एक डॉक्टर बनाकर पेश किया गया है.


चुनाव प्रचार में कुछ ऐसी होर्डिंग भी लगाई गईं जिसमें दूसरी पार्टियों और राजनेताओं पर निशाना साधा गया. ये होर्डिंग भी उसी का उदाहरण है.


जब आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर  चुनाव प्रचार के दौरान हमला हुआ, तब ये कार्टून वायरल हुआ.
इस कार्टून को भी सोशल मीडिया पर काफी पसंद किया गया.

इस कार्टून के जरिए मोदी लहर पर चुटकी लेने की कोशिश की गई है



16 मई के बाद क्या होगा? सोशल मीडिया पर इस कार्टून को भी काफी पंसद किया गया.


मोदी, राहुल, केजरीवाल, सोनिया ही नहीं कार्टूनों में ममता बनर्जी पर भी चुटकी ली गई है.


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पुरुषों की पैंट पर ताला लगा दोः हाई कोर्ट

पब्लिक प्लेस पर पेशाब करने की हरकतों से आजिज हाई कोर्ट ने हल्के-फुल्के लहजे में कहा, 'हर पुरुष की पैंट की जिप में एक ताला लगा देना चाहिए और उसकी चाबी घर पर रखनी चाहिए।'

जस्टिस प्रदीप नंदराजग और जस्टिस दीपा शर्मा की बेंच ने इस बात पर परेशानी जाहिर की कि इस बुरी आदत को रोका नहीं जा पा रहा है। हालांकि कोर्ट ने इस बारे में अधिकारियों को कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया। इस मुद्दे पर हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका में मांग की गई थी कि अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि लोगों को पेशाब से दीवारें गंदी करने से रोके। कोर्ट ने कहा कि हम ऐसा कोई निर्देश नहीं दे सकते।

कोर्ट ने कहा, 'सार्वजनिक स्थानों पर पेशाब की समस्या को किसी और मंच पर हल करना होगा। निश्चित तौर पर कोर्ट किसी व्यक्ति को यह नहीं कह सकता कि घर से निकलते वक्त अपनी जिप बंद रखे।' 


कोर्ट ने इस बात पर निराशा जाहिर की कि दीवारों पर देवताओं की तस्वीरें लगाने से भी पुरुषों को नहीं रोका जा सकता। जज ने कहा, 'तस्वीरों से यह बात साबित होती है कि लोग अपने ब्लैडर का प्रेशर हल्का करने के लिए अपने देवताओं की तस्वीरों पर भी पेशाब करने से नहीं चूकते।'

याचिका में कुछ दीवारों पर लगी देवताओं की तस्वीरें हटाने का भी आग्राह था। ये तस्वीरें इसीलिए लगाई गई थीं कि पुरुषों को वहां पेशाब करने से रोका जा सके। लेकिन कोर्ट ने तस्वीरें हटाने का आदेश देने से भी इनकार कर दिया। बेंच ने कहा, 'किसी को भी अपने घर या कंपाउंड की दीवारों पर देवताओं की तस्वीरें लगाने से नहीं रोका जा सकता।'

याचिकाकर्ता मनोज शर्मा इस बात से दुखी हैं कि लोग देवताओं की तस्वीरों वाली दीवार पर पेशाब कर रहे हैं। उन्होंने इसके समर्थन में तस्वीरें भी पेश की थीं। लेकिन कोर्ट ने बस इतना ही कहा कि अपना प्रेशर हल्का करने के लिए किसी भी दीवार का सहारा लेने वालों की आदत बहुत ज्यादा परेशान करने वाली है। 
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हवा में 'मोदी लहर' है, तो ज़मीन पर क्या?




 भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से इस चुनाव के संदर्भ में बनारस सर्वाधिक चर्चित चुनाव क्षेत्र हो चुका है.

आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अरविन्द केजरीवाल के मोदी के ख़िलाफ़ खम ठोकने से यह क्षेत्र और भी चर्चा में आ गया है.

मंगलवार को कांग्रेस ने एक लंबे ऊहापोह, खोजबीन एवं इंतज़ार के बाद बनारस क्षेत्र के पिंडरा क्षेत्र से विधायक अजय राय को अपना उम्मीदवार घोषित किया है.

अजय राय बनारस क्षेत्र में काफ़ी लोकप्रिय हैं. यहां के लोगों के साथ उनका सुख-दुख का संबंध है.

पिछले लोकसभा के चुनाव में वह समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में यहां से चुनाव भी लड़ चुके हैं एवं एक लाख 23 हज़ार से ज़्यादा वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे. फिर भी यह कहना मुश्किल है कि वह मोदी के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन सकते हैं?

सामाजिक आधार
मीडिया विशेषकर टीवी चैनल एवं उनके सर्वेक्षण 'मोदीलहर' की घोषणा कर रहे हैं. किन्तु यहां के गांवों एवं शहरों में लोग इस लहर को मान तो रहे हैं पर इसे कोई शंका से, कोई संशय से देख रहा है. लहर अगर है भी तो उसे वोट में बदलने के लिए सामाजिक आधार की ज़रूरत होती है.

बनारस लोकसभा क्षेत्र के जातीय बनावट का अध्ययन करें तो अजय राय जिस जाति से जुड़े हैं वह भूमिहार जाति है जिसकी जनसंख्या बनारस में 90 हज़ार के आसपास है.

इस क्षेत्र में ब्राह्मण, पटेल, मुसलमान और वैश्य सभी जातियों की संख्या दो लाख से ऊपर है.

अगर जातीय स्थिति के आधार पर देखा जाए तो अजय राय को इसका बहुत फ़ायदा नहीं मिलता दिखता है. जातीय समीकरण के लिहाज से स्थिति भिन्न है.

अजय राय के कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलापति त्रिपाठी के परिवार से गहरे संबंध होने के कारण ब्राह्मण वोट कांग्रेस को भी मिल सकते हैं. वहीं मोदी विरोधी वोट के धुव्रीकरण की प्रक्रिया में मुसलमान वोटों की बड़ी भूमिका होगी.

बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से तक़रीबन 17,000 वोटों से पराजित हुए थे लेकिन इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला किया है.

मुख़्तार अंसारी के फ़ैसले से मुसलमान मतों के विभाजित होने का ख़तरा कम हुआ है. लगता है कि मुसलमान बड़े पैमाने पर कांग्रेस के साथ जा सकते लेकिन इसके लिए कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.

दूसरी तरफ़ अगर केजरीवाल मेहनत कर पाए तो वे भी मुसलमान वोटों को प्रभावित कर सकते हैं.

पुरानी दुश्मनी
मुख्तार अंसारी एवं अजय राय की दुश्मनी इस क्षेत्र में काफ़ी प्रसिद्ध है. कांग्रेस मुख्तार अंसारी का असर कम करने की कोशिश कर रही थी ताकि मुस्लिम मत विभाजित न हो और कांग्रेस को एकमुश्त वोट मिल सके.

ऐसे में 'भूमिहार-ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़' जिसे बनाने की कोशिश कांग्रेस के अजय राय कर रहे हैं, अगर वो बन जाता है तो वह मोदी को बड़ी चुनौती दे सकते हैं.

लेकिन इसमें एक पेंच है कि बनारस क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट के लिए कई ब्राह्मण प्रत्याशी उत्सुक थे जो टिकट न मिलने के कारण दुखी होंगे और इस बीएमबी (ब्राह्मण-मुस्लिम-भूमिहार) समीकरण बनाने में समस्या खड़ी कर सकते हैं.

इस क्षेत्र में दलित लगभग 80 हज़ार के आसपास हैं जिनका कुछ मत बीएसपी को और कुछ कांग्रेस को मिल सकता है.

इस क्षेत्र में पटेलों की भी बड़ी संख्या है, उनकी आबादी दो लाख के आसपास है जिसमें से ज़्यादातर सोने लाल पटेल की पार्टी 'अपना दल' के प्रभाव में हैं.

सोने लाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल ने भाजपा के साथ गठजोड़ किया गया है जिससे पटेल दुःखी तो हैं क्योंकि उनकी चाह थी कि अपना दल अलग से चुनाव लड़े. किन्तु इस गठबंधन का सम्मान रखते हुए वो वोट भाजपा को ही देते दिख रहे हैं.

जातियों की जोड़-तोड़
इस क्षेत्र में वैश्यों की संख्या लगभग दो लाख है और वे भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक माने जाते हैं. उनका एक बड़ा हिस्सा मोदी के पक्ष में संगठित होता दिखता है.

केजरीवाल वैश्य होने के बाद भी वैश्य मतों को कितना तोड़ पाते हैं, यह भविष्य में देखने वाली बात है. उम्मीद है कि शहरी मध्य वर्ग के वोटों में से केजरीवाल अच्छे ख़ासे वोट ले जाएंगे.

पटेल के अतिरिक्त लगभग 1.50 लाख मतदाताओं का संबंध अन्य ओबीसी जातियों से है. बनारस में यादवों की जनसंख्या तक़रीबन एक लाख है. समाजवादी पार्टी इन सामाजिक समूहों के मतों को लेने की कोशिश कर रही है.

लेकिन अजय राय के व्यक्तिगत संबंध जातियों से परे लोगों से वर्षो से बने हैं. इसीलिए उन्हें पिछडों और दलित जैसी उपेक्षित जातियों के वोट मिलने की आशा है.

अजय राय जोर-शोर से 'स्थानीय बनाम बाहरी' का मुद्दा इस चुनाव में उठाएंगे. पिछले दिनों हम लोगों ने इस क्षेत्र में फील्ड वर्क किया जिनमें देखने को मिला कि यहां के लोगों में स्थानीय उम्मीदवार की चाह महत्वपूर्ण है.

देखना यह है कि 'स्थानीय बनाम बाहरी' का मुद्दा राय को कितना फ़ायदा पहुंचाता है.

कम रहा मतदान, तो
अगर मतदान कम हुआ तो इसका असर बीजेपी की महत्तवकांक्षाओं पर पड़ेगा क्योंकि अब तक जो चुनाव पूर्व सर्वेक्षण बीजेपी को 40 से 50 लोकसभा सीटें दे रहे थे, वो शायद ना मिल पाएं.

इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां मत प्रतिशत थोड़ा-बहुत बढ़ा भी है उसकी वजह मोदी के जोश ना होकर शायद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण है.

अगर बीजेपी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक सीटें लाना चाहती है तो उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ी बढ़त हासिल करनी होगी. ऐसा ना होने की स्थिती में राज्य के बाक़ी हिस्सों में पार्टी की हालत पिछले चुनाव सरीखी ही रह सकती है.

इसका एक अर्थ ये भी है कि शायद 'लहर' वाली बात पूरी तरह सही नहीं है.

बद्री नारायण
समाजशास्त्री, जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद
शुक्रवार, 11 अप्रैल, 2014 को 11:41 IST तक के समाचार
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चुनाव प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल पर हमला, बोले - 'मुझे बहुत तेज मुक्का मारा'

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर फिर हमला हुआ है. दिल्ली के दक्षिण पुरी इलाके में चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल की गर्दन पर एक युवक ने मुक्का मारा.

ये हमला काफी हद तक हरियाणा के चरखी दादरी की घटना जैसा था. चरखी दादरी में रोड शो के दौरान केजरीवाल को एक युवक ने गर्दन पर थप्पड़ मारा था. ताजा हमले में युवक ने जीप पर चढ़ कर केजरीवाल पर हमला किया.

हमले के बाद युवक को आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने दबोच लिया और उसकी जमकर पिटाई की. इसके बाद उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया. हमलावर ने पुलिस पूछताछ के दौरान अपना नाम अब्‍दुल बैस्‍त बताया है. उसका कहना है कि वह आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है और पार्टी की नीतियों से नाराज है.

हमले के बाद केजरीवाल ने आज तक से बातचीत की. उन्होंने कहा - 'मेरी गर्दन पर बहुत तेज मुक्का मारा, लेकिन कार्यकर्ताओं को उसे मारना नहीं चाहिए. वो लोग हमें मारेंगे ही उनका तो धर्म है मारना.'

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भाजपा का घोषणपत्र- जानिए क्या है भाजपा के 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' में


नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है। घोषणा पत्र के मुख्य बिंदु हम स्लाइडर में प्रस्तुत कर रहे हैं। उससे पहले जानिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने क्या कहा। उन्होंने कहा कि हमने मात्र औपचारिकता पूरी करने के लिये नही घोषित किया है। यह घोषणापत्र हमारा संकल्पपत्र है। पिछली सरकार ने जो कोई भी वादे किये वो पूरे नहीं हुए। अगर यूपीए सरकार ने अपने वादे आंश‍िक रूप से भी पूरे किये होते, तो आज हमारा भारत बड़ी शक्त‍ि बन गया होता।
लिहाजा यूपीए ने विश्वस्नीयता खो दी। हमने उन्हीं बिंदुओं को रखा है, जो हम पूरा कर सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हम सिर्फ वही करेंगे, जो मेनीफेस्टो में लिखा है। इसके अलावा भी हमारे सामने बहुत सारी चुनौतियां हैं। भारत का समग्र और समेकिक विकास होना चाहिये। चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार, महंगाई और बेराजगारी हैं। इन सब सारी चीजों से अलग स्वतंत्र भारत की बढ़ती हुई आर्थ‍िक विषमता है। भारत एक कृष‍ि प्रधान देश है, लिहाजा यहां सबसे ज्यादा रोजगार की संभावनाएं कृष‍ि क्षेत्र में हैं। अलग-अलग प्रोफेशन्स में भाजपा क्या करना चाहती है इसका उल्लेख इस मेनीफेस्टो में किया गया है।

राजनाथ ने कहा कि इसका अक्षरस: पालन किया जायेगा। भाजपा के लिये माहौल के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। देश यह चाहता है कि परिवर्तन होना चाहिये। जिस व्यक्त‍ि को हमने अपने प्रधानमंत्री के रूप में देश के सामने पेश किया है, उनके लिये तमाम राजनीतिक पार्टियां उन्हें अछूत मानने लगी थीं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में सर्वाध‍िक राजनीतिक आक्रमण अगर किसी पर हुए हैं, तो वो नरेंद्र मोदी पर हुए हैं। उनके नेतृत्व में हम मेनीफेस्टो में दिये गये एक-एक वादे को पूरे करेगी। 


भाजपा के मेनीफेस्टो के मुख्य बिंदु तस्वीरों के साथ स्लाइडर में देखें-


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मोदी को जिताना हमारे लिए शर्म की बात होगी: काशीनाथ सिंह



… ब्राह्मणवाद के साथ तो हम लोग जीते ही आये हैं, उसे बरदाश्‍त करने की हमारी आदत है, कुछ और सह लेंगे। लेकिन फासीवाद तो मौका ही नहीं देगा…

लोकसभा चुनाव में बनारस से नरेंद्र मोदी की उम्‍मीदवारी पर बीबीसी को दिये अपने साक्षात्‍कार के कारण अचानक चर्चा में आये हिन्दी के वरिष्‍ठ लेखक काशीनाथ सिंह शहर के उन विरल लोगों में हैं, जिनके यहाँ पत्रकारों का मजमा लगा है। दिल्‍ली से बनारस पहुँचने वाला हर पत्रकार काशीनाथ सिं‍ह का साक्षात्‍कार लेना चाहता है, लिहाजा सबको वे क्रम से समय दे रहे हैं। प्रस्‍तुत है अरविंद केजरीवाल की रैली से ठीक एक दिन पहले 24 मार्च को काशीनाथ सिंह से उनके घर पर हुयी अभिषेक श्रीवास्‍तव की बातचीत के प्रमुख अंश।

बीबीसी वाले इंटरव्‍यू का क्‍या मामला थाअचानक आपकी चौतरफा आलोचना होने लगी?

(हंसते हुये) उन्‍होंने जो दिखाया वह पूरी बात नहीं थी। बात को काटकर उन्‍होंने प्रसारित किया जिससे भ्रम पैदा हुआ। मैं आज से नहीं बल्कि पिछले पांच दशक से लगातार फासीवादी ताकतों के खिलाफ बोलता-लिखता रहा हूँ। मेरा पूरा लेखन सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ रहा है। आप समझिए कि अगर काशी के लोगों ने इस बार मोदी को चुन लिया तो हम मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जायेंगे। यह हमारे लिये शर्म की बात होगी।

वैसे चुनाव का माहौल क्‍या है? आपका अपना आकलन क्‍या है?

देखिए, ये आज की बात नहीं है। साठ के दशक में काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय में चला आंदोलन हो या फिर बाबरी विध्‍वंस के बाद की स्थिति, बनारस के लोग हमेशा से यहाँ की गंगा-जमुनी संस्‍कृति की हिफ़ाज़त के लिये खड़े रहे हैं। हम लोग जब साझा संस्‍कृति मंच की ओर से मोर्चा निकालते थे, तो नज़ीर बनारसी साहब मदनपुरा में हमारा स्‍वागत करने के लिये खड़े होते थे और यहाँ के मुसलमानों को अकेले समझाने में जुटे रहते थे। बाद में खुद नज़ीर साहब के मकान पर हमला किया गया, फिर भी वे मरते दम तक फासीवाद के खिलाफ़ खड़े रहे। आपको याद होगा कि दीपा मेहता आई थीं यहाँ पर शूटिंग करने, उनके साथ कैसा सुलूक किया गया। उस वक्‍त भी हम लोगों ने मीटिंग की थी और परचा निकाला था।

इस बार की क्‍या योजना है? कोई बातचीत हुयी है लेखकों से आपकी?

लगातार फोन आ रहे हैं। दुर्भाग्‍य है कि कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों ने अपनी करनी से अपनी स्थिति खराब कर ली, वरना माहौल कुछ और होता। हम लोग इस बार भी लेखकों, रंगकर्मियों, संस्‍कृतिकर्मियों, फिल्‍मकारों से लगातार संवाद में हैं। एक परचा ड्राफ्ट किया जा रहा है। जल्‍द ही सामने आयेगा। कोशिश है कि कुछ नामी-गिरामी चेहरों को कुछ दिन बनारस में टिकाया जाये। समस्‍या यह है कि बनारस से बाहर के लेखक नरेंद्र मोदी के खतरे की गंभीरता को नहीं समझ पा रहे हैं। कल ही पंकज सिंह से बात हुयी। उनका फोन आया था। कह रहे थे कि चिंता मत कीजिए, भाजपा सरकार नहीं बनेगी। मुझे लगता है कि यह नि‍श्चिंतता कहीं घातक न साबित हो।

आप एक ऐसे लेखक हैं जो लगातार अपनी ज़मीन पर बना रहा और जिसने स्‍थानीय पात्रों को लेकर रचनाएं लिखीं। बनारस के स्‍वभाव को देखते हुये क्‍या आपको लगता है कि यहाँ का मतदाता मोदी के उसी शिद्दत से फासीवाद से जोड़कर देख पा रहा है?

देखिए, बनारस यथास्थितिवादी शहर है। पुरानी कहावत है- कोउ नृप होय हमें का हानि। यहाँ के लोग इसी भाव में जीते हैं। इस बार हालाँकि यह यथास्थितिवाद फासीवाद के पक्ष में जा रहा है। लोगों के बीच कोई काम नहीं हो रहा। आखिर उन तक अपनी बात कोई कैसे पहुँचाए। जिस अस्सी मोहल्‍ले पर मैंने किताब लिखी, अब वहाँ जाने लायक नहीं बचा है। मुझे दसियों साल हो गये वहाँ गये हुये। सब भाजपाई वहाँ इकट्ठा रहते हैं। लोगों के बुलाने पर जाता भी हूँ तो पोई के यहाँ बैठता हूँ। दरअसल, लोगों को लग रहा है कि बनारस से इस बार देश को प्रधानमंत्री मिलना चाहिए। यह एक बड़ा फैक्‍टर है। लोगों को लग रहा है कि लंबे समय बाद बनारस इतने लाइमलाइट में आया है, बड़े नेता यहाँ से खड़े हो रहे हैं। लोगों को लगता है कि मोदी को जितवाना उनकी प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न है।

लेकिन जो बात टीवी चैनलों के माध्‍यम से आ रही है, जिस हवा की बात की जा रही है, वह तो अस्‍सी और पक्‍का महाल के इर्द-गिर्द ही है। बाकी बनारस का क्‍या?

ये बड़ी विडम्‍बना है। असल में "काशी का अस्‍सी" इतनी चर्चित है कि यहाँ जो कोई नया अधिकारी आता है, उसे ही पढ़कर बनारस को समझता है। अभी कल ही दिल्‍ली से एक पत्रकार आई थीं और किताब का जि़क्र कर रही थीं। जिस अस्‍सी के बारे में मैंने लिखा है किताब में, वह बहुत पुरानी बात हो चुकी। वह अस्‍सी अब वैसा नहीं रहा। और बनारस सिर्फ अस्‍सी नहीं है। विडम्‍बना है कि इस किताब को पढ़कर लोग सोचते हैं कि अस्‍सी से ही बनारस का मूड जान लेंगे। अब इसका क्‍या किया जाये।

मोदी अगर जीत गये तो क्‍या माहौल खराब होने की आशंका है?

बेशक, लेकिन एक आशंका लोगों के मन में यह भी है कि मोदी इस सीट को रखेंगे या वड़ोदरा चले जायेंगे। जहाँ तक मेरा मानना है, बनारस का य‍थास्थितिवाद फासीवाद की ज़मीन तो तैयार करेगा लेकिन यही प्रवृत्ति इस शहर को फासीवाद से अछूता बनाए रखेगी। लेकिन सवाल सिर्फ बनारस का नहीं, देश का है। अगर मोदी के खिलाफ़ कोई संयुक्‍त उम्‍मीदवार सारी पार्टियां मिलकर उतार देतीं, तो शायद उनकी लड़ाई मुश्किल हो जाती। अरविंद केजरीवाल को ही समर्थन दिया जा सकता था। पता नहीं कांग्रेस की क्‍या स्थिति है, आप लोग बेहतर जानते होंगे।

कांग्रेस से तो दिग्विजय सिंह का नाम चल रहा है। संकटमोचन के महंत विश्‍वम्‍भरजी और काशी नरेश के लड़के अनंतजी की भी चर्चा है

दिग्विजय सिंह का तो पता नहीं, लेकिन अगर विश्‍वम्‍भर तैयार हो गये तो खेल पलट सकता है। अनंत नारायण तो तैयार नहीं होंगे। विश्‍वम्‍भर के नाम पर शहर के ब्राह्मण शायद भाजपा की जगह कांग्रेस के साथ आ जायें, हालांकि विश्‍वम्‍भर के ऊपर न लड़ने का दबाव भी उतना ही होगा। अगर विश्‍वम्‍भर वाकई लड़ जाते हैं, तो यह अच्‍छी खबर होगी।

हां, इधर बीच ब्राह्मणों में कुछ नाराज़गी भी तो है भाजपा को लेकर… ?

ये बात काम कर सकती है। हो सकता है कि भाजपा के वोट आ भी जायें, लेकिन एनडीए बनाने के क्रम में मोदी छँट जायेंगे। पता नहीं राजनाथ के नाम पर सहमति बनेगी या नहीं, हालांकि राजनाथ ने काफी सधी हुयी रणनीति से ठाकुरों को पूर्वांचल में टिकट दिये हैं। संघ के भीतर तो ठाकुरों को लेकर भी रिजर्वेशन है ही। हां, ब्राह्मण अगर नाराज़ है तो मुझे लगता है कि हमें एक ऐसे उम्‍मीदवार की कोशिश करनी होगी जो भाजपा के ब्राह्मण वोट काट सके।

मतलब ब्राह्मणवाद इस बार फासीवाद की काट होगा?

(हंसते हुये) हो सकता हैब्राह्मणवाद के साथ तो हम लोग जीते ही आये हैं, उसे बरदाश्‍त करने की हमारी आदत है, कुछ और सह लेंगे। लेकिन फासीवाद तो मौका ही नहीं देगा।

क्‍यों नहीं ऐसा करते हैं कि हिन्दी के व्‍यापक लेखक, बुद्धिजीवी, संस्‍कृतिकर्मी समुदाय की ओर से आप ही प्रतीक के तौर पर चुनाव लड़ जायें मोदी के खिलाफ़?

(ठहाका लगाते हुये) देखो, हमें जो करना है वो तो हम करेंगे ही। हमने पहले भी ऐसे मौकों पर अपनी भूमिका निभाई है, आज भी हम तैयारी में जुटे हैं। अभी महीना भर से ज्‍यादा का वक्‍त है। उम्‍मीद है दस-बारह दिन में कोई ठोस कार्यक्रम बने। मैंने प्रलेस, जलेस, जसम आदि संगठनों से और खासकर शहर के रंगकर्मियों से बात की है। शबाना आज़मी, जावेद अख्‍़तर, गुलज़ार आदि को शहर में लाने की बात चल रही है। कुछ तो करेंगे ही, चुप नहीं बैठेंगे।

चुनाव और मोदी के संदर्भ में नामवरजी से कोई संवाद…?

नहीं, अब तक तो उनसे कोई बात नहीं हुयी है। देखते हैंकरेंगे।

(शुक्रवार पत्रिका में प्रकाशित और साभार)

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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!