बरसात में वाराणसी नगर

वाराणसी दो दिनों से जारी बरसात में नगर ही नहीं डूबा, रिकार्ड ही नहीं ध्वस्त हुए, सच मायनों में डूब गयी प्रशासन की साख और ध्वस्त हो गयी सारी प्रशासनिक व्यवस्था। कागज की नाव पर स्याही के आंकड़े गल-पिघल कर कुछ यूं बह गये कि किसी अधिकारी के पास किसी भी सवाल का कोई जवाब ही नहीं रहा। रविवार को पूरी तरह ताल-तलैया में तब्दील हो गये बनारस की सड़कों पर प्रशासन के इकबाल की धज्जियां उड़ती दिखायी दीं। हवाला अगर बाबतपुर स्थित मौसम कार्यालय का दिया जाय तो शनिवार सुबह 8 से रविवार की शाम तक जनपद में कुल जमा 180.8 मिमी. वर्षा रिकार्ड की गयी। वहीं बीएचयू स्थित कृषि प्रक्षेत्र पर स्थापित मौसम विज्ञान वेधशाला के अनुसार नगर क्षेत्र में 267.8 मिमी वर्षा रिकार्ड की गयी। उपलब्ध रिकार्ड बताते हैं कि बीते एक दशक में किसी भी एक दिन में होने वाली यह सर्वाधिक वर्षा है। इसके पीछे का रिकार्ड संबंधित महकमों के पास नहीं मिला, प्रमुख वजह रविवार रही। भारी बरसात का ही जलवा रहा कि पहली बार वरुणा नदी अपना बेसिन-अपने पानी से लबालब हुई। इसके पूर्व गंगा के बैक फ्लो का ही जल वरुणा में दिखायी देता रहा है। मूसलधार वर्षा से नगर के सभी ताल तलैया और सड़क एक रस हो गये। सड़कों पर सड़क का निशान तक गायब हो गया। पूर्व से ही ध्वस्त चल रही सड़कों पर शनिवार व रविवार की भारी बरसात ने बमबाजी सी की और रही सही सड़कों की धज्जी उड़ गयी। तमाम इलाकों से तारकोल का नामों निशान मिट गया और यत्र तत्र सर्वत्र बिखरी गिट्टियां स्थानीय प्रशासन की पोल खोलते हुए सारी दास्तान खुद बयान करने लगीं। भारी बरसात ने जलनिकासी प्रबंधन को कुछ यूं पटका कि चोट सहलाते ही महकमों को हफ्तों बीत जायेंगे। जिस शहर को बीते कई वर्षो से सीवर-पानी के नाम पर खोदकर उलट दिया गया हो, जिस शहर में जल प्रबंधन के नाम पर कई अरब की परियोजनाएं रन कर रहीं हों, उस शहर में सारा इंतजाम कपूर की तरह हवा हो गया। जो जहां फंसा, पनाह मांग गया। कोई घर ऐसा न बचा जो पानी से घिर न गया हो, बड़े बड़ों की हवेलियों को भी पसीने छूट गये। इस व्यवस्था में गरीब गुरबा का तो अब यूं भी कोई पूछनहार नहीं है लिहाजा लोग घायल होकर अस्पतालों में पहुंचते रहे और व्यवस्थागत बदइंतजामियों से रूबरू होते रहे। जर्जर व कच्चे मकानों के गिरने से जहां जनपद में 6 लोगों की मौत हो गयी वहीं न मालूम कितने लोग जख्मी हो गये। शहर को झकझोर देने वाली इस बरसात ने व्यवस्था के प्रति लोगों के विश्र्वास को भी झकझोर दिया है। अगर किसी मुल्क की सांस्कृतिक राजधानी का यही हाल होना है ..जो हुआ है, तो फिर अंजाम खुदा जाने।
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!