दुर्गाकुण्ड, वाराणसी

 

दुर्गाकुण्ड उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी नगर में स्थित है। महत्वपूर्ण कुण्डों में 'दुर्गाकुण्ड' का नाम आता है। दुर्गाकुण्ड ही अब तक शेष बचे कुण्डों में सर्वाधिक सुरक्षित व अस्तित्व में है। अस्सी चौराहे से रविन्द्रपुरी होते हुए आगे मार्ग पर दुर्गाकुण्ड है जहाँ बगल में स्थित माँ दुर्गा का भव्य मंदिर भी है। यह स्थल कैण्ट से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाले मार्ग पर भी स्थित है। नवरात्रि माह में इस मंदिर में दर्शनार्थियों की भीड़ बढ़ जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दुर्गा मंदिर में माँ दुर्गा की जो मूर्ति स्थापित है वह दुर्गाकुण्ड से प्राप्त हुई थी। मान्यताओं व मनौतियों के लिये प्रसिद्ध इस मंदिर में तो पूरे वर्ष भर लोगों की भीड़ लगी रहती है। इस कुण्ड पर श्रावण माह में लगभग एक माह तक मेला लगा रहता है।
कुण्डों की मान्यता धार्मिक के साथ तो है ही साथ हीं बरसाती पानी से जल जमाव को रोकने में ये कुण्ड काफी सहायक होते हैं। कुण्डों में मछलियों या कछुओं को डालकर पानी साफ रखा जाने लगा है।
जल कुण्डों से ऐसे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि वाराणसी के नगर क्षेत्र से भू-जल गंगा में आता है जो भू-जल स्तर को गंगा स्तर से ऊपर सिद्ध करता है। प्राचीन काल में लोग कुण्डों व कूपों से ही अपनी पेयजल की समस्या का समाधान करते थे लेकिन आज इनके अस्तित्व पर संकट के कारण ही पेयजल के लिये काशी में हाहाकार मचा है।
वर्तमान समय में सरकार को इन पौराणिक मान्यताओं वाले कुण्डों के रख-रखाव पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि जिस श्रद्धा से लोग अपनी मान्यताओं को पूरा करने के लिये आते हैं उन्हें किसी प्रकार की कठिनाई न उठानी पड़े।[1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुंड व तालाब (हिंदी) काशी कथा।

 



 

 

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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!