भारत माता मंदिर, वाराणसी

भारत को मातृदेवी के रूप में चित्रित करके भारतमाता या 'भारतम्बा' कहा जाता है। भारतमाता को प्राय: केसरिया या नारंगी रंग की साड़ी पहने, हाथ में भगवा ध्वज लिये हुए चित्रित किया जाता है तथा साथ में सिंह होता है।
फिल्म अभिनेता-अभिनेत्रियों, नेताओं और सैनिकों के मंदिर के बारे में तो आपने सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है देश में एक मंदिर ऐसा भी है जहां भारत माता और तिरंगे की पूजा की जाती है। ऐसा ही एक मंदिर रांची, वाराणसी में और हरिद्वार में भी है।
नियमित रूप से खुलता है मंदिर
मंदिर के पास ही कारगिल स्मारक
बजते हैं देशभक्ति के गीत
राष्ट्रीय पर्वों पर लगता है मेला
झारखंड में मंदिर में लहराता है तिरंगा
हरिद्वार में भी है भारत माता का मंदिर
भारत माता मन्दिर, वाराणसी  उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरियों में से एक वाराणसी के महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (वाराणसी) के प्रांगण में स्थित अपने ढंग का अनोखा मंन्दिर है। यह मंदिर केवल 'भारत माता' को समर्पित है।  भारत माता मंदिर का निर्माण बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा करवाया गया था, जबकि इसका उद्घाटन वर्ष 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा हुआ था। मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति स्थापित नहीं है। केवल भारत का भू मानचित्र है, जो संगमरमर के टुकड़ो पर उकेरा गया है।

निर्माण
राष्ट्र रत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त को 1913 में करांची कांग्रेस से लौटते हुए मुम्बई जाने का अवसर मिला था।
वहाँ से वह पुणे गये और धोंडो केशव कर्वे का विधवा आश्रम देखा। आश्रम में ज़मीन पर 'भारत माता' का एक मानचित्र बना था, जिसमें [मिट्टी]] से पहाड़ एवं नदियां बनी थीं। वहाँ से लौटने के बाद शिवप्रसाद गुप्त ने इसी तरह का संगमरमर का भारत माता का मंदिर बनाने का विचार किया। उन्होंने इसके लिये अपने मित्रों से विचार-विमर्श किया। उस समय के प्रख्यात इंजीनियर दुर्गा प्रसाद सपनों के मंदिर को बनवाने के लिये तैयार हो गये और उनकी देखरेख में काम शुरू हुआ। 


उद्घाटन
1936 के शारदीय नवरात्र में महात्मा गांधी ने पहले दर्शक के रूप में मंदिर का अवलोकन किया। पांच दिन बाद यानी ['[विजयादशमी]]' को उन्होंने मंदिर का उद्घाटन किया। भू मानचित्र तैयार करने में 20 शिल्पी लगे थे, जबकि मंदिर का बाहरी कलेवर 25 शिल्पियों ने लगभग पांच वर्ष में तैयार किया। मंदिर के संस्थापक राष्ट्र रत्न शिवप्रसाद गुप्त ने अपना नाम कहीं नहीं दिया है।


गाँधीजी का कथन
'काशी विद्यापीठ', वर्तमान में 'महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ' के परिसर में दुनिया के इस अनोखे मंदिर का निर्माण हुआ है। इसका उद्घाटन करने के बाद महात्मा गांधी ने अपने सम्बोधन में कहा था कि- "इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। मुझे आशा है कि यह मंदिर सभी धर्मों,सभी जातियों के लोगों के लिये एक सार्वदेशिक मंच का रूप ग्रहण कर लेगा और इस देश में पारस्परिक धार्मिक एकता, शांति तथा प्रेम की भावना को बढ़ाने में योगदान देगा।"


मानचित्र
भारत भूमि की समुद्र तल से उंचाई और गहराई आदि के मद्देनज़र संगमरमर बहुत ही सावधानी से तराशे गये हैं। मानचित्र को मापने के लिये धरातल का मान एक इंच बराबर 6.4 मील जबकि ऊंचाई एक इंच में दो हज़ार फ़ीट दिखायी गयी है। एवरेस्ट की ऊंचाई दिखाने के लिये पौने 15 इंच ऊँचा संगमरमर का एक टुकड़ा लगाया गया है। मानचित्र में हिमालय समेत 450 चोटियां, 800 छोटी व बड़ी नदियां उकेरी गयी हैं। बडे़ शहर सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी भौगोलिक स्थिति के मुताबिक दर्शाये गये हैं। बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने इस मानचित्र को ही जननी जन्मभूमि के रूप में प्रतिष्ठा दी। मंदिर की दीवार पर बंकिमचंद्र चटर्जी की कविता 'वन्दे मातरम' और उद्घाटन के समय सभा स्थल पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गयी कविता ‘भारत माता का यह मंदिर’ समता का संवाद है।
भारत माता मंदिर, वाराणसी 

भारत माता मंदिर की यात्रा करने के लिए समय
भारत माता मंदिर में सुबह में सुबह 9.30 बजे खुलता है और शाम 8.00 बजे बंद कर देता है. आप किसी भी मौसम में यात्रा कर सकते हैं.




















कैसे भारत माता मंदिर तक पहुंचने के लिए
भारत माता मंदिर बीएचयू से 8 किमी की दूरी 2 किमी दूरी कैंट वाराणसी से और Godaulia को पश्चिम 3 किमी की दूरी पर स्थित है. आप आसानी से वाराणसी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से ऑटो रिक्शा लेकर मंदिर तक पहुँच सकते हैं, यह वहाँ तक पहुँचने के लिए केवल 10 मिनट का समय लगेगा और आप भी रिक्शा लेने के लिए और केवल 10 रुपये का भुगतान करके वहाँ तक पहुँच सकते हैं सिर्फ रुपये 5 खर्च होंगे और समय के 15 मिनट खर्च करते हैं.



भारत माता मंदिर, वाराणसी का नक्सा 



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!