मोदी को जिताना हमारे लिए शर्म की बात होगी: काशीनाथ सिंह



… ब्राह्मणवाद के साथ तो हम लोग जीते ही आये हैं, उसे बरदाश्‍त करने की हमारी आदत है, कुछ और सह लेंगे। लेकिन फासीवाद तो मौका ही नहीं देगा…

लोकसभा चुनाव में बनारस से नरेंद्र मोदी की उम्‍मीदवारी पर बीबीसी को दिये अपने साक्षात्‍कार के कारण अचानक चर्चा में आये हिन्दी के वरिष्‍ठ लेखक काशीनाथ सिंह शहर के उन विरल लोगों में हैं, जिनके यहाँ पत्रकारों का मजमा लगा है। दिल्‍ली से बनारस पहुँचने वाला हर पत्रकार काशीनाथ सिं‍ह का साक्षात्‍कार लेना चाहता है, लिहाजा सबको वे क्रम से समय दे रहे हैं। प्रस्‍तुत है अरविंद केजरीवाल की रैली से ठीक एक दिन पहले 24 मार्च को काशीनाथ सिंह से उनके घर पर हुयी अभिषेक श्रीवास्‍तव की बातचीत के प्रमुख अंश।

बीबीसी वाले इंटरव्‍यू का क्‍या मामला थाअचानक आपकी चौतरफा आलोचना होने लगी?

(हंसते हुये) उन्‍होंने जो दिखाया वह पूरी बात नहीं थी। बात को काटकर उन्‍होंने प्रसारित किया जिससे भ्रम पैदा हुआ। मैं आज से नहीं बल्कि पिछले पांच दशक से लगातार फासीवादी ताकतों के खिलाफ बोलता-लिखता रहा हूँ। मेरा पूरा लेखन सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ रहा है। आप समझिए कि अगर काशी के लोगों ने इस बार मोदी को चुन लिया तो हम मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जायेंगे। यह हमारे लिये शर्म की बात होगी।

वैसे चुनाव का माहौल क्‍या है? आपका अपना आकलन क्‍या है?

देखिए, ये आज की बात नहीं है। साठ के दशक में काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय में चला आंदोलन हो या फिर बाबरी विध्‍वंस के बाद की स्थिति, बनारस के लोग हमेशा से यहाँ की गंगा-जमुनी संस्‍कृति की हिफ़ाज़त के लिये खड़े रहे हैं। हम लोग जब साझा संस्‍कृति मंच की ओर से मोर्चा निकालते थे, तो नज़ीर बनारसी साहब मदनपुरा में हमारा स्‍वागत करने के लिये खड़े होते थे और यहाँ के मुसलमानों को अकेले समझाने में जुटे रहते थे। बाद में खुद नज़ीर साहब के मकान पर हमला किया गया, फिर भी वे मरते दम तक फासीवाद के खिलाफ़ खड़े रहे। आपको याद होगा कि दीपा मेहता आई थीं यहाँ पर शूटिंग करने, उनके साथ कैसा सुलूक किया गया। उस वक्‍त भी हम लोगों ने मीटिंग की थी और परचा निकाला था।

इस बार की क्‍या योजना है? कोई बातचीत हुयी है लेखकों से आपकी?

लगातार फोन आ रहे हैं। दुर्भाग्‍य है कि कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों ने अपनी करनी से अपनी स्थिति खराब कर ली, वरना माहौल कुछ और होता। हम लोग इस बार भी लेखकों, रंगकर्मियों, संस्‍कृतिकर्मियों, फिल्‍मकारों से लगातार संवाद में हैं। एक परचा ड्राफ्ट किया जा रहा है। जल्‍द ही सामने आयेगा। कोशिश है कि कुछ नामी-गिरामी चेहरों को कुछ दिन बनारस में टिकाया जाये। समस्‍या यह है कि बनारस से बाहर के लेखक नरेंद्र मोदी के खतरे की गंभीरता को नहीं समझ पा रहे हैं। कल ही पंकज सिंह से बात हुयी। उनका फोन आया था। कह रहे थे कि चिंता मत कीजिए, भाजपा सरकार नहीं बनेगी। मुझे लगता है कि यह नि‍श्चिंतता कहीं घातक न साबित हो।

आप एक ऐसे लेखक हैं जो लगातार अपनी ज़मीन पर बना रहा और जिसने स्‍थानीय पात्रों को लेकर रचनाएं लिखीं। बनारस के स्‍वभाव को देखते हुये क्‍या आपको लगता है कि यहाँ का मतदाता मोदी के उसी शिद्दत से फासीवाद से जोड़कर देख पा रहा है?

देखिए, बनारस यथास्थितिवादी शहर है। पुरानी कहावत है- कोउ नृप होय हमें का हानि। यहाँ के लोग इसी भाव में जीते हैं। इस बार हालाँकि यह यथास्थितिवाद फासीवाद के पक्ष में जा रहा है। लोगों के बीच कोई काम नहीं हो रहा। आखिर उन तक अपनी बात कोई कैसे पहुँचाए। जिस अस्सी मोहल्‍ले पर मैंने किताब लिखी, अब वहाँ जाने लायक नहीं बचा है। मुझे दसियों साल हो गये वहाँ गये हुये। सब भाजपाई वहाँ इकट्ठा रहते हैं। लोगों के बुलाने पर जाता भी हूँ तो पोई के यहाँ बैठता हूँ। दरअसल, लोगों को लग रहा है कि बनारस से इस बार देश को प्रधानमंत्री मिलना चाहिए। यह एक बड़ा फैक्‍टर है। लोगों को लग रहा है कि लंबे समय बाद बनारस इतने लाइमलाइट में आया है, बड़े नेता यहाँ से खड़े हो रहे हैं। लोगों को लगता है कि मोदी को जितवाना उनकी प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न है।

लेकिन जो बात टीवी चैनलों के माध्‍यम से आ रही है, जिस हवा की बात की जा रही है, वह तो अस्‍सी और पक्‍का महाल के इर्द-गिर्द ही है। बाकी बनारस का क्‍या?

ये बड़ी विडम्‍बना है। असल में "काशी का अस्‍सी" इतनी चर्चित है कि यहाँ जो कोई नया अधिकारी आता है, उसे ही पढ़कर बनारस को समझता है। अभी कल ही दिल्‍ली से एक पत्रकार आई थीं और किताब का जि़क्र कर रही थीं। जिस अस्‍सी के बारे में मैंने लिखा है किताब में, वह बहुत पुरानी बात हो चुकी। वह अस्‍सी अब वैसा नहीं रहा। और बनारस सिर्फ अस्‍सी नहीं है। विडम्‍बना है कि इस किताब को पढ़कर लोग सोचते हैं कि अस्‍सी से ही बनारस का मूड जान लेंगे। अब इसका क्‍या किया जाये।

मोदी अगर जीत गये तो क्‍या माहौल खराब होने की आशंका है?

बेशक, लेकिन एक आशंका लोगों के मन में यह भी है कि मोदी इस सीट को रखेंगे या वड़ोदरा चले जायेंगे। जहाँ तक मेरा मानना है, बनारस का य‍थास्थितिवाद फासीवाद की ज़मीन तो तैयार करेगा लेकिन यही प्रवृत्ति इस शहर को फासीवाद से अछूता बनाए रखेगी। लेकिन सवाल सिर्फ बनारस का नहीं, देश का है। अगर मोदी के खिलाफ़ कोई संयुक्‍त उम्‍मीदवार सारी पार्टियां मिलकर उतार देतीं, तो शायद उनकी लड़ाई मुश्किल हो जाती। अरविंद केजरीवाल को ही समर्थन दिया जा सकता था। पता नहीं कांग्रेस की क्‍या स्थिति है, आप लोग बेहतर जानते होंगे।

कांग्रेस से तो दिग्विजय सिंह का नाम चल रहा है। संकटमोचन के महंत विश्‍वम्‍भरजी और काशी नरेश के लड़के अनंतजी की भी चर्चा है

दिग्विजय सिंह का तो पता नहीं, लेकिन अगर विश्‍वम्‍भर तैयार हो गये तो खेल पलट सकता है। अनंत नारायण तो तैयार नहीं होंगे। विश्‍वम्‍भर के नाम पर शहर के ब्राह्मण शायद भाजपा की जगह कांग्रेस के साथ आ जायें, हालांकि विश्‍वम्‍भर के ऊपर न लड़ने का दबाव भी उतना ही होगा। अगर विश्‍वम्‍भर वाकई लड़ जाते हैं, तो यह अच्‍छी खबर होगी।

हां, इधर बीच ब्राह्मणों में कुछ नाराज़गी भी तो है भाजपा को लेकर… ?

ये बात काम कर सकती है। हो सकता है कि भाजपा के वोट आ भी जायें, लेकिन एनडीए बनाने के क्रम में मोदी छँट जायेंगे। पता नहीं राजनाथ के नाम पर सहमति बनेगी या नहीं, हालांकि राजनाथ ने काफी सधी हुयी रणनीति से ठाकुरों को पूर्वांचल में टिकट दिये हैं। संघ के भीतर तो ठाकुरों को लेकर भी रिजर्वेशन है ही। हां, ब्राह्मण अगर नाराज़ है तो मुझे लगता है कि हमें एक ऐसे उम्‍मीदवार की कोशिश करनी होगी जो भाजपा के ब्राह्मण वोट काट सके।

मतलब ब्राह्मणवाद इस बार फासीवाद की काट होगा?

(हंसते हुये) हो सकता हैब्राह्मणवाद के साथ तो हम लोग जीते ही आये हैं, उसे बरदाश्‍त करने की हमारी आदत है, कुछ और सह लेंगे। लेकिन फासीवाद तो मौका ही नहीं देगा।

क्‍यों नहीं ऐसा करते हैं कि हिन्दी के व्‍यापक लेखक, बुद्धिजीवी, संस्‍कृतिकर्मी समुदाय की ओर से आप ही प्रतीक के तौर पर चुनाव लड़ जायें मोदी के खिलाफ़?

(ठहाका लगाते हुये) देखो, हमें जो करना है वो तो हम करेंगे ही। हमने पहले भी ऐसे मौकों पर अपनी भूमिका निभाई है, आज भी हम तैयारी में जुटे हैं। अभी महीना भर से ज्‍यादा का वक्‍त है। उम्‍मीद है दस-बारह दिन में कोई ठोस कार्यक्रम बने। मैंने प्रलेस, जलेस, जसम आदि संगठनों से और खासकर शहर के रंगकर्मियों से बात की है। शबाना आज़मी, जावेद अख्‍़तर, गुलज़ार आदि को शहर में लाने की बात चल रही है। कुछ तो करेंगे ही, चुप नहीं बैठेंगे।

चुनाव और मोदी के संदर्भ में नामवरजी से कोई संवाद…?

नहीं, अब तक तो उनसे कोई बात नहीं हुयी है। देखते हैंकरेंगे।

(शुक्रवार पत्रिका में प्रकाशित और साभार)

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13 comments:

Ashok Gupta said...

एक ठे किताब का लिख दिए काशी इनकी जागीर हो गयी ...बाकी सब उनके रियाया हो गए वो अपना प्रतिनिधित्व करते हैं ,काशी का नहीं |

संजय अनेजा said...

किसी की एक चीज पसंद आई तो हर चीज को पसंद किया जाये, आवश्यक तो नहीं

Lalit Sharma said...

फ़िर तो इन्हें शर्म से डूब जाना चाहिए।

Anmol Sahu said...

ये भी तो सोंचो कि वो ऐसा क्यों कह रहे हैं? कोई कारण तो होगा ही न।

Prashant Priyadarshi said...

अभी पंद्रह दिन भी नहीं बीता हुआ होगा, जब इसी काशीनाथ जी ने कुछ ऐसा कहा जिससे लोग कयास लगाने लगे थे कि यह मोदी के पक्ष में बोल रहे हैं. उस समय मोदी भक्तों का उत्साह देखते बनता था. अब इसे पढ़कर उसे पहचानने से भी इनकार कर रहे हैं..

Masao Masao said...

वैसे, किसको जिताना गर्व की बात होगी? यह भी तो स्पष्ट करो?

बेचैन आत्मा said...

बिचारे काशी नाथ सिंह। कितनी बार शर्मिंदा होना पड़ता है इन्हें!!! पिछली बार जब जोशी जीते थे, तब भी हुए होंगे। इन्होने हमें अच्छे साहित्य पढ़वाये हैं, भगवान इन्हें शर्म में डूबने से बचाये।

Sanjay Bhawnani said...

yeh baat digvijay singh ji bolte to mein samaj jata, kyoki unko mein janta hu

Anoop Pandey said...

गुरु जी पुरनिया हो चलले लेकिन कांग्रेस के बुखार क पीड़ा अबे ना दूर भैल भाई |एगो साहित्यकार के रूप में राउर हमारे दिल में बहुत इज्जत हौ गुरुवार पर मोदी के बारे में राउर इ बयान अच्छा नहीं लागल .अबकी बार मोदी सरकार ................

Rakesh Singh said...

बुढऊ सठिया गया है

Abhijeet Tripathi said...

kashi nath purane congressi hai ..hum hindi sathiya ma unka adar karteya hai isaka matlab nhi hai ki uooljaloo bayan de...modi ko harana vns ma namumkin hai.,.,..modi modi..

Suresh Chiplunkar said...

शायद "बुद्धिजीवी" साहब कहना चाहते होंगे, कि जेल में बंद बाहुबली मुख्तार अंसारी के जीतने से डूबने का खतरा कम हो जाएगा...

NEAL said...

बौद्धिक रूप से दिवालिया हो चुके हैं


कॉग्रेस का चमचा है

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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!