बनारसी मस्ती के बनारस वाले ( HOLI Special-2014)

मैं आ गया अपने प्रेमियों के संग होली खेलने.......दोस्तों ये है बनारस ... आप कहा है... कोई मतलब नहीं..  
अब करते रहिये होली कि मस्ती सिर्फ 
   बनारसी मस्ती के बनारस वाले के साथ  
रजा अइसन हव बनारस 
तो जोर से बोलिये 
जोगीरा सा रा रा रा..
हर हर महादेव..
होली कि शुभ कामनाये..


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मित्रों फगुआ के रंगीन अवसर पर ये बानगी देखिये ----
ए भउजी ए भउजी ए भउजी , रंग देब चोलिया तोहार केवड़िया बंद करके
ए देवर , ए देवर, ए देवर; रंग देहियें देहयॆन चोलिया हमार, सजनवा जहिया अहियें
......... सजनवा जहिया अहियें ,केवड़िया बंद करके ,
सजनवा जहिया अहियें, केवड़िया बंद करके
सजनवा जहिया अहियें, केवड़िया बंद करके
अब मेरे हे सुधि लंठ मित्रों कृपया यह उत्तर देने की कृपा करें कि उपरोक्त फ़गुआये गाने में सब कुछ तो ठीक है परन्तु केवड़िया बंद करके पर इतना जोर क्यों दिया गया है , तथा गीतकार केवड़िया बंद करके से हमें क्या सन्देश देना चाहता है ? आपके अतार्किक उत्तरों की प्रतीक्षा में -----
आपका जोगीड़ा सा रा रा
तथा
आपकी हाट खड़ी रह

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होली तो सिर्फ बनारस [वाराणसी] की ... बाकी सब बकवास ..

चौराहे पर भांग घोटते लोग .. हर जगह जोगीरा सर्रर्रर्र की गूंज ...


2014..होली के पावन पर्व पर सभी को शुभकामनाओं के साथ "होली मुबारक " <POST LINK>
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"लाल" आपके गालों के लिए....
"काला" आपके बालों के लिए...
"नीला" आपके आँखों के लिए...
"पीला" आपके हाथों के लिए...
"गुलाबी" आपके सपनों के लिए....
"सफेद" आपके मन के लिए....
"हरा" आपके जीवन के लिए....

"होली" के इन सात रंगों के साथ
"जिंदगी" रंगीन हो....

सभी मित्रों को सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ....

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यार कुछ लोग अपनी भौजी के साथ होली खेलने का कहानी सुना रहे है..

ना भाई ना.. न करो ये जुल्म.. मेरी कोई भैजी नहीं है.. कैसे सुतुगा यार रात में आप की कहानी सुन कर..

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जोगीरा स र र स र र स र र स र र
गोरे गोरे गाल गुलाबी गोरे गोरे गाल। हो गोरी
आँख नशीली कमर पतीली मतवाली बा चाल।। ।। 1।। जोगीरा . . . .
भौंहा बनल कमान के अइसन, नैना दूनो बान हो गोरी . . . .
अगल बगल दूई कलसा लेके चले लू सीना तान।।2।। जोगीरा . . . .
फीकी बा रंगीन चदरिया तोहरे रंग के आगे हो। गोरी . . . .
एक नजर जे देखे तोहके, तोहरे पीछे भागे हो।। 3।। जोगीरा . . . .
जोगी जती पुजारी पंडित, चाहे हो ब्रह्मचारी। गोरी . . . .
सबके मन बेइमान हो जाई, लागी नयन कटारी।। 4।। जोगीरा . . . .
चार दिनन के जिनगी बाटे, तबले सब कुछ आपन। गोरी . . . .
कब परान निकलिहे तन से, ई केहू ना जानी ।। 5।। जोगीरा . . . .
जबले सांस आस बा तबले, तबले सब कुछ आपन। गोरी तबले . . . .
टूटी तार सांस के जहिया, विरथा होई जुआपन।। 6।। जोगीरा . . . .
छन भर के बा चढ़ल जवानी, हो जाई बे पानी। हो गोरी. . . . .
ढरकी जोर जवानी गोरी, मति करऽगरब गुमानी।। 7।। जोगीरा . . . .
तन जीवन धन सुन्दरता के, विरथा कबो नऽ करऽ। गोरी . . . .
आवे काम सदा औरन के, अइसन करम करऽ।। 8।। जोगीरा . . . .
धन जीवन अनमोल रतन बा, गोरी फिर ना पइबू। गोरी . . . .
जहिया गलि पचि जाइ जवानी, सोचि सोचि पछतइबू।। 9।। जोगी


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जोगीरा सर्ररर ..., जोगीरा सर्ररर ...!
वाह खिलाड़ी वाह ..., वाह खिलाड़ी वाह ...
गुरु गुरुआइन खेलैं होली , डारैं पानी भीगै चोली ...
बोला सर्ररर ..., वाह खिलाड़ी वाह , वाह खिलाड़ी वाह ...
नेतवन के सब देखैं भइया , पार लगइहैं उहे नइया ..
बोला सर्ररर ..., वाह खिलाड़ी वाह , वाह खिलाड़ी वाह ..



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अबकी फगुआ 
भी गाऊंगा 
रंग बिरंगे 
गीत मैं होली के ! 
भरे अबीरी 
हाथ मलूँगा
गाल
रँगूँगा बँधन चोली के !
हवा में मह मह महकी
साँस तुम्हारी
बहकी गलियाँ गलियाँ,
मेरे प्राणों
छुअन कुवाँरी
जूड़े बँधीं जुही की कलियाँ,
भौजी मिली
मिली न सखियाँ
लिखूँ कुतुहल कच्चे
किस हमजोली के !
अबकी फगुआ
भी गाऊंगा
रंग बिरंगे
गीत मैं होली के !
भरे अबीरी
हाथ मलूँगा
गाल
रँगूँगा बँधन चोली के !
अँग अँग के रँग रँग से
नाम तुम्हारे
भरी है हमने पिचकारी,
झरे अबीरी बादल बरखा
मेरे रंग में
भींजो प्राण पियारी,
ढोल नगाड़े
मादन बरसे
रंग रंगीली
अलख जगी मुह टोली के !
अबकी फगुआ
भी गाऊंगा
रंग बिरंगे
गीत मैं होली के !
भरे अबीरी
हाथ मलूँगा
गाल
रँगूँगा बँधन चोली के !
अंतर यौवन की
अमृत सिसकारी
भाँग पिये घुंघरू पग नाचें,
आदिम पर्व के
उत्सव की
खुली किताबें द्वारे द्वारे बाचें,
मधुरस ओंठ
गगरिया छलकें
घूँघट खिले
पलाश ठिठोली के !
अबकी फगुआ
भी गाऊंगा
रंग बिरंगे
गीत मैं होली के !
भरे अबीरी
हाथ मलूँगा
गाल
रँगूँगा बँधन चोली के !



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उत्सवों का शहर है बनारस,एक ऐसा शहर जहाँ मृत्यु को भी उत्सव की तरह मनाया जाता है| तभी तो वहाँ के लोग मय्यत को ढोल नगाडो के साथ शमशान तक पहुचने के बाद गोलघर के झुल्लन मिठाई वाले कीदुकान से होते हुए घर जाते है| कमाल का है मेरा बनारस जिसे बस मौकामिलना चाहिए त्योहार मानने का फिर होली तो आख़िर होली है|

बनारस की होली मुझे हमेशा से पसंद रही है, यहाँ की होली की सबसे बड़ी खाशियत है की इसे सिर्फ़ हिंदू ही नही मुसलमान भी मानते है, काशी की प्राचीनतम होली बारात जिसे वहाँ के हिंदू मुस्लिम मिलकर निकालते है गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक बेमिशाल कड़ी है


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सारा रारा रारा रारा रंग बरसेला बहै बसंती बयार..
सबसे नीक करियई भौजी रहे सदा तैयार...
रंग डाले डलवावे में ना करे कब्भो इनकार ....
रंगवा ल हो...पूरब के रहवइन से...
फागुन मस्त महिना चउचक होली के त्यौहार..
रंगवा ल हो...पूरब के रहवइन से...

जोगीरा सारा रारारारारारारा...


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होली मेँ बहुत दारु पीयक्कङ देखनी बाकिन बनारसी पियक्कङन के हेठे
अगर दारु से मुह जुठार लेहनय तऽ नटई भर पिहय जरुर आउर दू चार गो बात जरुर बोलिहयँ कि जइसे-
" तू का सोचत हवे कि हमेँ चढ़ गईल हे"
"गाङी हमके चलावय दे'
अपने के जादा स्मार्ट मत समझली "

"जादा दाँत मत चीयार मुह देखले हवे आपन"
"तोहरे बदे जान हाजिय हव मरदे"
''पईसा तऽ हाथ के मइल होला''

अब उनके का बताइ हम कि जेतना पी के उ एतना बङबङ करय नऽ ओतना से हमार नटइ ना गील होले.. 


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बात अगर सोंधेपन की करें तो माटी की उस सोंधी गंध का कोई जोड़ नहीं, नासिका जिसका कतरा-कतरा सोख लेने को आतुर हो जाती है। तबीयत इस गंध को दिल तक उतार लेने को मचल जाती है। मजे की बात यह है कि प्रकृति भी कुछ ऐसी रचना बनाती है कि फागुन में यह ललक कुछ ज्यादा ही सताती है। ऐसे में अगर कोई यह बताए कि इस सोंधेपन को बाकायदा स्वाद में ढाला जा सकता है।

तरावट से भरपूर ठंडई के प्याले में माटी का भी अर्क निकाला जासकता है तो यकीन मानिए ऐसा मजबूत दावा करने वाला कोई फक्कड़मस्त बनारसी ही हो सकता है। क्या कहने बाबा विश्वनाथ के चरणामृत के रूप में प्रसिद्ध इस पारंपरिक पेय के ठाट के। दूध-मलाई और बादाम-पिस्ता जैसी गिजा में घोली गई ठंडई मौसम और बनारसियों के बदलते मिजाज के मुताबिक कभी चंदन, केसर और गुलाब, जूही, के साथ छनती है। कभी आम, अनानास, संतरा, चकोतरा नारंगी के रस में घोल कर बनती है। पोतनी मिट्टी (कभी माटी वाले चूल्हों की पोताई के रूप में काम आती थी) के सोंधे स्वाद को ठंडई के कुल्हड़ में उतारने वाले स्वाद के जादूगर अब कम रहे मगर जो इक्का-दुक्का हैं वे अब भी आपको मिट्टी के अर्क में छनी ठंडई पिला सकते हैं।

पंचगंगा घाट की कंगनवाली हवेली में रहने वाले रवि महाराज वर्षो से तरह तरह की ठंडई बनाते आ रहे हैं। जयपुर राजपरिवार के गुरु घराने के प्रतिनिधि रवि महाराज कहते हैं बचपन में पुरनियों को घाटों पर ठंडई बनाते देखता था। छोटइयां में उनके साथ रहता और कई बार मैं भी ठंडई बनाने में हाथ बंटाता, बादाम पीस देता या फिर ठंडई की सामग्री बाजार से ले आता। वे लोग फूलों- फलों के बेस पर नायाब-लाजवाब ठंडई बनाते थे। धीरे धीरे मैंने वह सारी विधा सीख ली। आज वे लोग तो नहीं रहे, लेकिन उनकी सिखाई इस कला को आज भी हमने बड़े जतन से संभाल रखा है। कई चीजों में मैंने प्रयोग भी किया। फल में अनार, सेब, संतरा, अंगूर और फूलों में बेला, केवड़ा, चमेली की ठंडई बनाता हूं। इसके साथ ही गंगा जमुनी, मनचली और पोतनी मिट्टी की ठंडई भी बनाता हूं। इस बेजोड़ ठंडई की खूबी बयान करते हुए रवि महाराज बताते हैं-भीषण गर्मी से अगर आप परेशान हैं तो पोतनी की ठंडई पीते ही तरावट आ जाएगी।

नुस्खा कुछ यूं बताते हैं महाराज- हम पोतनी मिट्टी को कई घंटे पानी में भिगोकर रख देते हैं फिर इसका पानी निकाल लेते हैं। इस पानी में मिट्टी की पूरी सोंधी सुगंध उतर आती है। इसके बाद बादाम, इलायची, पिस्ता, गुलाब जल, केसर, चीनी इन सबको अच्छी तरह महीन पीसकर मिला लेते हैं और इस पानी में डाल देते हैं। इसके बाद चार परदे की छननी से छान लेते हैं। बस बन गई पोतनी मिट्टी की तरावट भरी ठंडई। रवि महाराज को इस बात का भी संतोष है कि स्वाद की इस जादूगरीकी विरासत उन्होंने अभी से अपने बच्चों को सौंप दी है।


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गुरु बनारस मे आज यानि होली के एकदिन पहले एक परम्परा है और वो है उबटन लगाने की।हमारे यहा सरसो के दानो को पीस कर एक प्रकार का उबटन तैयार किया जाता है।जिसे माताएँ बड़े प्रेम से अपनी संतानो को लगाती है।इस उबटन से निकले मैल को इकट्ठा कर होलिका मे डाल दिया जाता है।इसके पीछे धारणा शायद यही है कि हम अपनी बुराईयो को निकालकर होलिका मे प्रज्जवलित कर दे।
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लगभग दस दिन पहले से ही माहौल बन जाता था ..दुकाने सज जाती थी ..बंदूक, हाथी, बैगन और तरह तरह की पिचकारियाँ दुकानों पर सज जाया करती थी और हम तरह तरह की प्लानिंग किया करते थे ...अब भी बचपन को याद कर के मुस्कुरा तो सकते हैं न ?
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एक आदमी पब्लिक टॉयलेट में बैठा था कि अचानक साथ वाले टॉयलेट से आवाज आई:
"क्‍या हाल है?
आदमी: घबराकर, ठीक हूं.
फिर आवाज आई: क्‍या कर रहे हो?
.
आदमी: भाई जो सब यहां करते हैं.
फिर आवाज आई: मैं आ जाऊं?
आदमी: परेशान हो गया और जल्‍दी से बोला:"नहीं-नहीं मैं अकेला ही ठीक हूं.

फिर आवाज आई: "अच्‍छा यार मैं तुम्‍हें बाद में काल करता हूं,अभी कोई उल्‍लू का पट्ठा साथ वाले टॉयलेट से मेरी हर बात का जवाब दे रहा है!"

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लड़कियाँ (सिर्फ अविवाहित) गालों पर रंग लगे फोटो शेयर न करें, क्योंकि दिमाग में यह चलने लगता है कि यार, किस ने लगाया होगा ... पुरुषों की होली खराब करने से बचें 
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मोदी के उम्मीदवारी से काशी उद्योग जगत के साथ साथ अमेरिका के निगाह मे भी फ्लैश हो गया


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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
Copyright © 2014 बनारसी मस्ती के बनारस वाले Designed by बनारसी मस्ती के बनारस वाले
Converted to blogger by बनारसी राजू ;)
काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!