ये होली पंडित मिश्रा के स्वर में सुनी थी बहुत साल पहले, सीधे बनारस से लाइव.

ये होली पंडित मिश्रा के स्वर में सुनी थी बहुत साल पहले, सीधे बनारस से लाइव:
 

पेश है:
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खेलैं मसाने में होरी दिगंबर खेले मसाने में होरी
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,
चिता, भस् भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
गोप गोपी श्याम राधा, ना कोई रोक ना, कौनाऊ बाधा
ना साजन ना गोरी,
‍‍ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी.
नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी
पीतैं प्रेत-धकोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी.
भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज की गोरी
धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी.


भारतीय शास्‍त्रीय संगीत की महान परंपरा के महान वाहक बनारस के पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा की ‘दिगंबर की होरी’ जटा-जुटधारी भगवान शिव की अद्भुत होली का बखान करती है। औघड़ दानी शंकर की होली भी उन्‍हीं की तरह संसार से अलग है। यहां विषधर सर्प भी हैं, चिता का भस्‍म भी है, भूत-पिशाच भी हैं, जिसे देख कर ब्रज की गोपियां अभिभूत हैं। इस गायकी ऑडियो-विडियो अपलोड कर पाने में सफल नहीं हो सका, लेकिन शब्‍दों में भी कम जादू नहीं है। दिगंबर की मसान होरी का जम कर मजा लीजिए। 
खेलैं मसाने में होरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी।
भूत पिसाच बटोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी।।
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!