बेनिया कुण्ड

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बेनिया कुण्ड, वाराणसी

 आज से कई हजार वर्ष पूर्व काशी का बेणी तीर्थ था, सम्प्रति बेनिया बाग के विशाल मैदान के एक छोर का कूड़ा-करकट व बड़ी-बड़ी जंगली घास से युक्त छोटी से गंदी झील में तब्दील हो चुका है। रख-रखाव के अभाव में इस झील में पानी इतना कम है कि वह किसी काम लायक नहीं है और पानी इतना गंदा व दुर्गन्धयुक्त है कि कोई भी आदमी इसमें हाथ डालना तक उचित नहीं समझता। वैशाख व ज्येष्ठ मास की गर्मी में इस झील का पानी सूखकर नाम मात्र रह जाता है।
विदेशी लेखिका डायना एलएक की पुस्तक 'बनारस सिटी ऑफ् लाइट' में 'वेणी तीर्थ' का उल्लेख जेम्स प्रिन्सेप ने सन् 1822 के बनारस के मानचित्र के आधार पर किया है। वेणी तीर्थ की चर्चा काशी खण्ड में भी की गयी है।
काशी के सम्बन्ध में प्राप्त विवरणों, मान्यताओं व चर्चाओं के अनुसार यह नगर राजघाट व अस्सी के बीच एक पहाड़ी पर बसा था और तत्कालीन समय में राजघाट को पठार माना जाता था उक्त क्षेत्र सर्वाधिक उँचाई पर स्थित है जबकि अस्सी क्षेत्र को निचला इलाका कहा जाता था। उक्त मान्यताएं आज के संदर्भ में भी उतनी ही समीचीन मानी जाती है। उँचाई पर स्थित होने के कारण ही राजघाट में उस दौरान किले का निर्माण भी किया था। राजा बनारस जिसके नाम पर काशी का नाम बदलकर बनारस हुआ था तथा दुर्ग (किला) राजघाट क्षेत्र में होने का उल्लेख भी पुरातत्व विभाग के पास है।
भूगर्भीय संरचना के अनुसार ऐसा माना गया है कि उत्तर वाहिनी गंगा के समानान्तर पहाड़ीनुमा शहर से सटी नदी भी बहती होगी जो बाद में नगर के अन्यान्य कुण्डों व सरोवरों में तब्दील हो गई होगी और उसी दौरान वेणी तीर्थ का निर्माण हुआ होगा। प्राप्त तथ्यों के अनुसार वेणी तीर्थ का रूप बेनियाबाग क्षेत्र में सन् 1863 तक विद्यमान था और यह कुण्ड सम्पूर्ण बेनियाबाग के मैदान के मध्य में विशालकाय कुण्ड के रूप में था।
सम्भवतः 20वीं सदी के प्रारम्भ में रख-रखाव के अभाव व अन्य कारणों से इस कुण्ड के रूप में परिवर्तन आने लगा और कूड़े के ढेर व घरों के मलबे आदि के कारण पटना शुरू हो गया। बाद में बेनियाबाग का मैदान हो गया। शायद इसी कारण कुण्ड एक गन्दे पोखरे के रूप में आज विद्यमान है। यहाँ गंदगी की भरमार है। इसके चलते यहां और आस-पास के क्षेत्र में मच्छरों व मक्खियों का साम्राज्य हो गया है और आये दिन इस क्षेत्र में संक्रामक रोगों का प्रसार होता रहता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुंड व तालाब (हिंदी) काशी कथा।

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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!