सवाल आस्था का...

हाईकोर्ट की रोक के बाद भी गंगा में ही मूर्ति विसर्जन पर अड़े लोगों पर काशी में कल हुए लाठीचार्ज की निंदा करने वालों की फेसबुक पर बहार सी आई हुई है। कोई इसे बर्बरता बोल रहा है तो कोई बेरहमी। कुछ लोग तो इसे यूपी सरकार की पुलिस बताकर सपा और सीएम अखिलेश यादव को दोषी ठहराते हुए तरह-तरह के विशेषणों से नवाज रहे हैं। इन्हें ये नहीं पता कि पुलिस केवल पुलिस होती है।
मंगलवार रात करीब दस बजे...स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का संबोधन.
काशी में आधी रात को बर्बरता करने वाली पुलिस सपा की नहीं है। और न ही आधी रात को दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव की टीम को पीटने वाली पुलिस कांग्रेस की थी। गुजरात में हार्दिक पटेल के साथियों पर बर्बरता करने वाली पुलिस भी बीजेपी की नहीं थी। गुजरात में तो पुलिस ने पटेलों के साथ मीडिया वालों को भी पीटा और पटेलों की कालोनियों में उत्पात भी मचाया। इसलिए पुलिस केवल पुलिस होती है।
मंगलवार रात करीब 11 बजे...भीड़ को किसी प्रकार संभालने की कोशिश
काशी में कल पीटे गए और इसे बर्बरता कहने वाले दोनों लोगों के साथ मेरी पूरी सहानुभूति है। मुझे नहीं पता कि जो लोग वीडियो और फ़ोटो डालकर सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं, उनमें से कितने लोग गोदौलिया चौराहे पर गए थे और कितनी देर रहे थे? मैं सोमवार की रात, मंगलवार की दोपहर और मंगलवार की आधी रात यानी लाठीचार्ज के समय भी उसी चौराहे पर मौजूद था। धरना दे रहे लोग किस तरह से मीडिया खासकर चैनल के साथियों को गाली दे रहे थे सभी ने देखा। उनकी खिजलाहट ये थी कि धरना को लाइव क्यों नहीं किया जा रहा है। साफ लग रहा था कि इनकी आस्था गंगा में या गणपति में नहीं, पब्लिसिटी और शक्तिप्रदर्शन में है। अगर कुंड में विसर्जन नहीं करना था तो पंडाल से मूर्ति उठानी ही नहीं चाहिए थी।
मंगलवार रात करीब आठ बजे...उत्पात कर रहे युवकों को संयम बरतने की सलाह
स्थानीय थाने में लिख कर दिया गया कि हम लक्ष्मीकुण्ड में विसर्जन करेंगे। इसके बाद भी काशी के ह्रदय स्थल गोदौलिया पर मूर्ति लाकर धरना शुरू कर दिया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर और सबसे महत्वपूर्ण घाट दशाश्वमेध के रास्ते को ब्लाक कर दिया गया। स्कूली बच्चों को जो परेशानी हुई सो हुई, जहां एक रात से दूसरी रात तक भाषणबाजी-नारेबाजी हुई वहीं स्थित मारवाड़ी अस्पताल में भर्ती मरीजों की भी चिंता नहीं की गई। ये कैसी आस्था है? आस्था सिर्फ मूर्ति के प्रति है, जीवित लोग अौर अस्पताल में जीवन से संघर्ष कर रहे लोगों के प्रति कोई आस्था नहीं?
मंगलवार रात करीब नौ बजे...नारेबाजी
पुलिस ने धरना शुरू होते ही इन्हें हटाने के लिए बल प्रयोग नहीं किया? बीच सड़क मूर्ति के साथ धरना 
सोमवार की शाम शुरू हुआ। मंगलवार की रात एक बजे लाउडस्पीकर से चेतावनी दी गई और सभी से धरना खत्म करने को कहा गया। इसके 15 मिनट बाद यानी सवा एक बजे लाठीचार्ज शुरू हुआ। मतलब धरना शुरू होने के 36 घंटे बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इन 36 घंटों में 36 बार पुलिस ने अपनी तरफ से इन लोगों को समझाने की कोशिश की। एक्सरसाइज करने के लिए पुलिस को लाठी नहीं दी गई है। पुलिस को लाठी इसी तरह की स्थिति से निबटने के लिए मिली है।
मंगलवार रात करीब पौने दो बजे...लक्ष्मीकुंड पर गणपति की पूजा के लिए फूल-माला खरीदी गई
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हाईकोर्ट के आदेश को ही गलत ठहराने में लगे हैं। उनकी भावनाअों को भी मैं सम्मान करता हूं। लेकिन हाईकोर्ट या सरकार के किसी भी आदेश का पालन कराने के लिए ही पुलिस नाम
मंगलवार रात करीब दो बजे...विसर्जन से पहले गणपति की पूजा
की संस्था बनाई गई है। अदलत और सरकार के आदेश सही हों या गलत, उनका पालन कराना ही कार्यपालिका का दायित्व है। जिस दिन पुलिस ने अदालत या सरकार के आदेश को मानने से इनकार कर दिया, उस दिन की स्थिति की कल्पना भी करना मुश्किल है। अगर हमें लगता है कि हाईकोर्ट का आदेश गलत है तो उसके लिए तीन रास्ते हैं। पहला हाईकोर्ट में ही गुहार लगाई जाए। दूसरा, वहां बात न बने तो सुप्रीमकोर्ट में मामला पहुंचाया जाए। तीसरा, सुप्रीम कोर्ट से भी बात न बने तो संसद से इस बारे में नया कानून बनाने के लिए जनप्रतिनिधियों पर दबाव बनाया जाए। इस समय तो केन्द्र में सरकार भी काशी के सांसद मोदी की है। फिर आम आदमी को परेशान करने वाला आंदोलन क्यों? जिन नारों ने 1991 में देश में माहौल खराब किया अौर कई राज्य दंगों की आग में जले, उन नारों का इस्तेमाल यहां क्यों? ऐसे में क्यों न माना जाए कि कुछ लोग काशी का अमन चैन खराब करने की कोशिश कर रहे थे?
मंगलवार रात करीब सवा दो बजे...गणपति का विसर्जन
अंत में एक बात अौर...पुलिस ने भी गणपति को ले जाकर ऐसे ही कुंड में फेंक नहीं दिया है। आपसे ज्यादा आस्था का प्रदर्शन किया गया। मूर्ति को गाड़ी से उतारने से लेकर प्रवाहित करने तक पूरी श्रद्धा के साथ जवान लगे रहे। सीअो स्तर के अधिकारी ने अपनी जेब से पैसे निकालकर माला खरीदी, पंडित जी का इंतजाम किया, कुंड के किनारे विधिवत पूजा पाठ के बाद विसर्जन संपन्न हुआ।
गणपति के बगल में खड़े सभी युवा एसटीएफ के जवान हैं अौर बाकायदा जूता खोलकर ही गाड़ी पर चढ़े।
रिपोर्ट बनारस से बनारसी मस्ती के  बनारस वाले के लिए योगेश जी की .. हर हर महादेव
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!