विशेष : काशी के अस्सी नदी के अस्तित्व को खतरा

  • इसकी गरिमा व अस्तित्व बचा रहे, इसको लेकर मुखर हुआ साझा संस्कृति मंच 
  • मंच के बैनरतले स्वयंसेवी संगठनों ने किया सत्याग्रह और साफ-सफाई 
  • भगवान भोले को साक्षी मानकर हाथ में जल हाथ में लेकर संकल्प लिया कि यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक अस्सी स्वच्छ नहीं हो जाता 
धर्म की नगरी काशी की अस्सी एवं वरुणा नदी अब मृतप्राय हो चली हैं। प्रदूषण व उपेक्षा की मार झेल रही इन नदियों के सूखने एवं अतिक्रमण से तो अब इसके अस्तित्व पर ही संकट आ खड़ा हो गया है। जबकि वरुणा एवं असि (अस्सी) के संगम से ही काशी को वाराणसी कहा जाता है। कहा जा सकता है कि पूरी दुनिया में जिस
वाराणसी की इन दो नदियों से पहचान मिली है, अब दोनों गंदे नाले के रूप में परिवर्तित हो चुकी हैं। हालांकि काशी के स्वयंसेवी संगठन इन दोनों नदियों की अस्तित्व व गरिमा बची रहे इसके लिए जनांदोलन छेड़ दिए है। 18 अक्टूबर को साझा संस्कृति मंच के बैनरतले बड़ी संख्या में स्वयंसेवियों ने सत्याग्रह कर अस्सी नदी की साफ-सफाई की। इसके बाद अस्सी का जल हाथ में लेकर संकल्प लिया कि यह लड़ाई अस्सी को मुक्त करने तक जारी रहेगी। अंत में असि और वरुणा को प्रदूषण और अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए सैकड़ों लोगो द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन पत्र नगर निगम, जिलाधिकारी, मंडलायुक्त और मुख्यमंत्री को भेजा गया। इसके पहले वरुणा नदी की सफाई व कूड़ा से पाटे जाने को लेकर साफ-सफाई की जा चुकी है। 
बता दें, शहर के अधिकांश मुहल्लों की आबादी का मल-मूत्र सीधे इन्हीं नदियों से होकर गंगा में सीधे गिर रहा है, जो गंगा में प्रदूषण का मुख्य कारण है। नदी के दोनों किनारों पर लोगों ने कब्जा कर बड़ी-बड़ी इमारतें बना ली हैं। प्रदूषण व गंदगी के चलते वरुणा एवं अस्सी के जलजीव लगातार मरकर उतराते रहते है। मरे मछली एवं कछुआ के दुर्गंध व सडांध से गंभीर बीमारी का खतरा बना रहता है। नदियों के पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का मतलब मानव जीवन के लिए खतरे का संकेत है। क्योंकि नदियों का सीधा संबंध वायुमंडल से होता है। अत्यधिक जलदोहन एवं मल-जल की मात्रा बढ़ने से नदियों के जल में लेड, क्रोमियम, निकेल, जस्ता आदि धातुओं की मात्रा बढ़ती जाती है, जो मानव जीवन के लिए चिंताजनक है। पीने के पानी की किल्लत एक अलग समस्या होगी। हालांकि कुछ हद तक गंदा ही सही लेकिन वरुणा का अस्तित्व तो है, पर अस्सी नदी पर सवाल पूछिए तो शायद ही कोई संतोषप्रद जवाब सुनने को मिलेगा। अस्सी की स्थान पर चैड़ाई कागजो पर  25 मीटर तक है लेकिन प्रशासनिक चूक और संवेदनहीनता के कारण यह सिमट कर मात्र  2-4 फीट हो गयी है। हां, अस्सी घाट से थोड़ी दूर बढ़ें तो बड़ा गंदा नाला गंगा में जाता साफ दिखेगा। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के स्वयंसेवी संगठनों ने उनके गंगा निर्मलीकरण और अविरल प्रवाह के अभियान की सार्थकता को दुहराते हुए संकल्प लिया कि अब गंगा के साथ उसकी सहायक नदी वरुणा व अस्सी को भी स्वच्छ और निर्मल बनाना ही होगा, क्योंकि इन्हीं दोनों नदियों के नाम से वाराणसी अस्तित्व में आया और जब इनका ही अस्तित्व नहीं रहेगा तो फिर काशी की गरिमा को ठेस लगना स्वभाविक हैं। इसी संकल्प के साथ साझा संस्कृति मंच द्वारा पिछले 28 सितम्बर को वरुणा नदी के किनारे और 9 अक्टूबर को अस्सी में एक सांकेतिक सत्याग्रह किया गया था। इसी क्रम में 18 अक्टूबर को मंच व समग्र विकास समिति सहित अनेक जन संगठनों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, कलाकारों और छात्रों ने कचरा और मल युक्त असि नदी में 1 घंटे तक खड़े होकर सत्याग्रह किया। इस सत्याग्रह में गाजीपुर, चंदौली, भदोही तक से सत्याग्रही जुटे थे। सत्याग्रहियों द्वारा अस्सी नदी मुक्ति अभियान की शुरुआत की घोषणा की गयी। 
कहा गया कि अतिक्रमणकारियों, प्रदूषणकारियों और भूमाफियाओं के कुकर्मो से आज दोनों नदियाँ संकट में है। वाराणसी विकास प्राधिकरण और जिला प्रशासन की नाक के नीचे नदी क्षेत्र में अवैध लगातार निर्माण होते जा रहे हैं और नदी सिकुड़ती चली जा रही है। नगर निगम की उदासीनता से इन दोनों नदियों में लगातार कूड़ा डंपिंग की जा रही है, साथ ही तमाम नाले सीधे असि और वरुण में प्रवाहित किये जा रहे हैं। प्रदूषित पानी अंततः
गंगा में ही जाकर मिलता है। ऐसे में गंगा निर्मलीकरण की परियोजनाओं का औचित्य बेमानी है। राजस्व के अभिलेखों और प्राचीन पुस्तको में असि नदी के अस्तित्व होने के प्रमाण मिलते हैं। बीएचयु के अवकाश प्राप्त नदी वैज्ञानिक प्रो यूके चैधरी ने सारे प्रमाण प्रदेश और केंद्र सरकार तक उपलब्ध कराये हैं फिर भी कोई सार्थक प्रयास इस नदी को संरक्षित करने की दिशा में नही हो सका, जो चिंतनीय है। 
सत्याग्रहियों ने नदी में और नदी के बाहर जमा प्लास्टिक ढेर और पानी में बहते कचरे को निकाल कर बाहर किया। सत्याग्रह के दौरान प्रेरणा कला मंच के कलाकारों ने गीत और नुक्कड़ नाटक के माध्यम से नदी और जल स्रोतों के सरक्षण के लिए जनता को स्वयं आगे आने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से फादर आनंद, डा आनंद प्रकाश तिवारी, ब्रज भूषण दूबे, नंद्लाल मास्टर, प्रदीप सिंह, धनंजय त्रिपाठी, तपन कुमार, शोभनाथ यादव, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, दीनदयाल सिंह, सूरज पाण्डेय, मुकेश झांझरवाला, अवनीश गौतम, कन्हैयालाल हिन्दुस्तानी, संजीव सिंह, विनय सिंह, हर्षित शुक्ल, अमित यादव, राजकुमार पाण्डेय, रवि सोनकर, सौरभ मौर्या, विवेकानंद पाण्डेय आदि ने कहा किऐसा नहीं कि वरुणा की दुर्दशा के बारे में अधिकारियों एवं मंत्रियों को जानकारी नहीं है। जिले के अधिकारी वरुणा की सफाई एवं उसमें गिर रहे नालों को रोकने, नौका विहार एवं वृक्षारोपण जैसी योजना भी बनाते हैं लेकिन ये प्लान कागजों तक ही सीमित हैं। जिस वरुणा एवं असि के योग से काशी का नाम वाराणसी पड़ा उसमें गंदे नाले बेरोकटोक गिर रहे हैं। वरुणा एवं अस्सी में पानी की मात्रा कम कचरा ज्यादा नजर आता है।

Rajneesh K Jha
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!