खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कुछ समझे है मंजिल, कुछ समझे पड़ाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
किसीको धर्म खीच लाया, किसीको भंगेड़ी लगाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कोई झुक के आया, कोई दीखता है ताव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
रबड़ी दीवाना, मलईयो पे झुकाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कोई जवानी में आया, कोई बुढ़ापे की छाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कम करो चिंता, थोड़ा मुस्काओ
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
तट पे मरमम्त, मरमम्त पे नाव
मरमम्त हुई नाव, तभी तो तैराओ
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
ब्लू हुई लस्सी, बिल हुआ अस्सी
बिल की न चिंता, हमको जी पिलाओ
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
मंसूर भाई आना, कबूतर मिला दाना
पास न जाओ, कबूतर न उड़ाओ
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कचौड़ी गली और जलेबी भी ली
ठठेरी बजार में रबड़ी मिली
काजू गजक ने मिटाई कसक
जिसकी तमन्ना गजक
केदार घाट की सीडी लपक
चाट चटोरे
शहर के बटोरे
नारियल बाजार में सब मिलो रे
स्वाद मैंने चखे
थोड़ा तुम भी चखो रे
नाव गई गंगा में खाने हिलोरे
गर कही न मिलू
घाट है चेत सिंह
मुझे वही मिलो रे
घाटो पे सुबह सुहानी
गलियों की शाम दीवानी
तो क्यों पालू चिंता क्यों पालू तनाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
BY : शशिप्रकाश सैनी
कुछ समझे है मंजिल, कुछ समझे पड़ाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
किसीको धर्म खीच लाया, किसीको भंगेड़ी लगाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कोई झुक के आया, कोई दीखता है ताव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
रबड़ी दीवाना, मलईयो पे झुकाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कोई जवानी में आया, कोई बुढ़ापे की छाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कम करो चिंता, थोड़ा मुस्काओ
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
तट पे मरमम्त, मरमम्त पे नाव
मरमम्त हुई नाव, तभी तो तैराओ
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
ब्लू हुई लस्सी, बिल हुआ अस्सी
बिल की न चिंता, हमको जी पिलाओ
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
मंसूर भाई आना, कबूतर मिला दाना
पास न जाओ, कबूतर न उड़ाओ
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
कचौड़ी गली और जलेबी भी ली
ठठेरी बजार में रबड़ी मिली
काजू गजक ने मिटाई कसक
जिसकी तमन्ना गजक
केदार घाट की सीडी लपक
चाट चटोरे
शहर के बटोरे
नारियल बाजार में सब मिलो रे
स्वाद मैंने चखे
थोड़ा तुम भी चखो रे
नाव गई गंगा में खाने हिलोरे
गर कही न मिलू
घाट है चेत सिंह
मुझे वही मिलो रे
घाटो पे सुबह सुहानी
गलियों की शाम दीवानी
तो क्यों पालू चिंता क्यों पालू तनाव
खिड़की में गंगा, गंगा में नाव
शशि की कविताये
BY : शशिप्रकाश सैनी
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