काशी के विनायक

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काशी के छ्प्पन  विनायक

बड़ा गणेश - देव भूमि काशी से सभी को लगाव रहा है। भगवान शिव तो इस नगरी को कभी छोड़करजाते ही नहीं। काशी में विघ्नकर्ता गणेश जी के भी कई मंदिर स्थापित हैं। यहां 56 विनायक भी हैं जिनका मंदिर है। इन 56 विनायकों के प्रमुख हैं बड़ा गणेश जिन्हें वक्रतुण्ड भी कहा जाता है। इनका विशाल एवं प्रसिद्ध मंदिर लोहटिया में इन्हीं के नाम पर पड़े मोहल्ले बड़ा गणेश में स्थित है। मंदिर परिसर के मध्य में गर्भगृह में सिन्दूरी रंग की बड़ा गणेश की विशाल प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा को देखने से अदभुत आभास होता है। बड़ा गणेश की प्रतिमा के साथ गर्भगृह में इनका पूरा परिवार पत्नी रिद्धि-सिद्धी एवं पुत्र शुभ लाभ भी हैं। जबकि गर्भगृह के बाहर हाल में गणेश जी के वाहन मूसक की भावपूर्ण प्रतिमा स्थापित है। जिसे देखकर ऐसा लगता है कि गणेश जी को ले जाने के लिए बिल्कुल तैयार है। मंदिर परिसर में ही स्थित एक कुंए के पास दन्तहस्त विनायक की प्रतिमा है। इसके अलवा मंदिर में मन्सा देवी, संतोषी मां, हनुमान जी की भी प्रतिमांयें हैं। कहा जाता है कि बड़ा गणेश के दर्शन करने से सारे रूके हुए कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं और तरक्की मिलती है। बड़ा गणेश का जन्मोत्सव धूमधाम से भादों महीने में मनाया जाता है। इस दौरान गणेश जी का दूध, दही, घी, शहद एवं गंगाजल से पंचामृत स्नान कराया जाता है। स्नान कराने के बाद आकर्षक ढंग से प्रतिमा का श्रृंगार होता है। वहीं, गणेश जी के स्नान के बाद उस पंचामृत को श्रद्धालुओं में प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। जन्मोत्सव के पर्व पर मंदिर दर्शनार्थियों से पट जाता है। वहीं दूसरा बड़ा कार्यक्रम माघ महीने में होता है। इस माह की चतुर्थी को कई हजार की संख्या में दर्शनार्थी गणेश जी का दर्शन-पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन प्रातःकाल 4 बजे से ही श्रद्धालुओं की कतारें दर्शन के लिए लग जाती हैं दर्शन-पूजन रात 12 बजे तक चलता है। इस दौरान काफी दूर-दूर से भक्त बड़ा गणेश के समक्ष अपना मत्था टेकते हैं। वहीं प्रत्येक सप्ताह बुधवार को भी काफी संख्या में भक्त मंदिर में आते हैं। मान्यता के अनुसार बड़ा गणेश से सच्चे मन से जो भी मनोकामना की जाती है वह निश्चिय ही पूरी होती है। यह मंदिर प्रातःकाल 4 बजे से रात साढ़े 10 बजे तक खुला रहता है। मंगला आरती सुबह साढ़े 4 बजे, मध्यान आरती दिन में साढ़े 10 बजे एवं शयन आरती रात साढ़े 10 बजे सम्पन्न होती है। मन्दिर कैन्ट स्टेशन से करीब 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।


दुर्ग विनायक - काशी के विनायकों में से एक हैं दुर्ग विनायक। दुर्गाकुण्ड क्षेत्र में स्थित दुर्ग विनायक का मंदिर कुण्ड के दक्षिणी कोने पर एवं माँ दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर के ठीक पीछे स्थित है। कहा जाता है कि कलयुग में काली और विनायक की पूजा-अर्चना से तत्काल फल प्राप्त होता है। इसलिए दुर्ग विनायक में दर्शनार्थियों की सहज आस्था है। पंचक्रोशी यात्रा के क्रम में भी यात्री दुर्ग विनायक का आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता के अनुसार दुर्ग विनायक के दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और मान-प्रतिष्ठा में दिनों-दिन वृद्धि होती है। जनवरी महीने में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी को मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान दुर्ग विनायक का भव्य श्रृंगार किया जाता है। इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं। वहीं हर महीने पड़ने वाली चतुर्थी को भी मंदिर में दर्शन-पूजन करने वालों की अच्छी तादात रहती है। दुर्ग विनायक का मंदिर प्रातः साढ़े 4 बजे खुलता है और सुबह की आरती 5 बजे होती है। मंदिर दिन में 12 तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है। जबकि सायंकाल मंदिर 4 बजे पुनः दर्शन-पूजन के लिए खुलता है एवं आरती सायं 6 बजे सम्पन्न होती है। मंदिर रात को 10 बजे बंद होता है। मंदिर के पुजारी बालेश्वर दुबे हैं।


चिंतामणि गणेश - काशी के अधिकतर मंदिरों में गणेश यानी विनायक की प्रतिमा स्थापित है। वेदों में गणेश का उल्लेख बृहस्पति-वाचस्पति और ब्रह्णास्पति के रूप में है। प्राचीनकाल से ही मान्यता रही है कि कोई अनुष्ठान करने से पहले गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जाती है। इसलिए विनायक का महत्व हिन्दू धर्म में बढ़ जाता है। काशी के प्रसिद्ध विनायक मंदिरों में से एक चिंतामणि गणेश का मंदिर केदारखण्ड क्षेत्र में स्थित है। सोनारपुरा से केदारघाट की ओर बढ़ने पर गली में स्थित चिंतामणि विनायक का छोटा सा मंदिर काफी प्रस़िद्ध है। इस मंदिर में नियमित रूप से भक्त दर्शन-पूजन के लिए आते हैं। माना जाता है कि चिंतामणि गणेश का आशीर्वाद मिल जाने पर सभी प्रकार की समस्या सुलझ जाती है और सुख-शांति का आगमन होता है। गणेश चतुर्थी पर इस मंदिर में भव्य आयोजन किया जाता है। इस दौरान मंदिर को सजाने के साथ ही चिंतामणि विनायक का आकर्षक ढंग से श्रृंगार किया जाता है। भगवान विनायक के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन करने के लिए काफी संख्या में भक्त मंदिर में पहुंचते हैं। वहीं भादों महीने में इनका हरियाली श्रृंगार किया जाता है। इस दौरान मंदिर में भजन-कीर्तन भी होता है। जिससे मंदिर सहित आस-पास का महौल भक्तिमय हो जाता है। यह मंदिर नियमित रूप से सुबह साढ़े पांच बजे खुलता है और सुबह की आरती 6 बजे सम्पन्न होती है। मंदिर दोपहर 11 बजे तक खुला रहता है। शाम को मंदिर पुनः 5 बजे खुलता है जो रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है। शाम की आरती मन्त्रोच्चारण के बीच साढ़े 7 बजे होती है। मंदिर के पुजारी चल्ला सुब्बाराव शास्त्री हैं।


अभय विनायक - सभी भयों से मुक्ति देने वाले अभय विनायक का मंदिर डी 17/111, दशाश्वमेध घाट के बगल में स्थित है। दर्शनार्थी रिक्शा से इस मंदिर तक पहुँच सकते हैं। यह मंदिर दर्शन पूजन के लिए दिन भर खुला रहता है।


अर्क विनायक - आर्क विनायक का मंदिर 2/17 तुलसी घाट स्थित लोलार्क कुण्ड के पास विद्यमान है। रविवार को इनका दर्शन-पूजन करने का विशेष महत्व है।

आशा विनायक - आशा विनायक का मंदिर डी.3/71 मीर घाट हनुमान मंदिर के पास स्थित है। इनके दर्शन-पूजन से सारी मनोकामनायें पूरी होती है। विश्वनाथ गली दशाश्वमेध घाट होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है यह मंदिर सुबह सात बजे से दोपहर एक बजे तक और शाम को चार से रात 9 बजे तक खुला रहता है।

अविमुक्त विनायक
- कुछ लोगों के अनुसार मूल अविमुक्त विनायक का मंदिर गायब हो चुका है। वहीं ज्ञानवापी मस्जिद के पास अविमुक्त विनायक का मंदिर है। बगल में ही विश्वेश्वर विश्वनाथ जी का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि अविमुक्त विनायक सारी परेशानियों से मुक्ति देते हैं।

भीमचण्डी विनायक - भीमचण्डी विनायक का मंदिर पंचकोशी मार्ग में स्थित है। इनका मंदिर हर समय खुला रहता है।

चक्रदंत विनायक - चक्रदंत विनायक का मंदिर डी 49/10 सनातन धर्म स्कूल नई सड़क के पास ही स्थित है। दर्शनार्थियों के लिए यह मंदिर हमेशा खुला रहता है।

चिन्तामणि विनायक - चिन्तामणि विनायक का मंदिर सी के 26/42 ईश्वर गंगी तालाब के पूरब स्थित है। लहुराबीर से रिक्शा के जरिए इस मंदिर तक पहुँचा जा सकता है। दर्शनार्थी किसी भी समय मंदिर में दर्शन-पूजन कर सकते हैं।

चित्रघण्ट विनायक
- चित्रघण्ट विनायक का मंदिर सी के 23/34 चित्र घण्टा देवी के पास स्थित है। यह मंदिर चौक में यूको बैंक के सामने गली में स्थित है दर्शनार्थी दिनभर कभी भी मंदिर में जाकर दर्शन-पूजन कर सकते हैं।

दंत हस्त विनायक - दन्त हस्त विनायक का मन्दिर सी के 58/101 बड़ा गणेश मंदिर के पास लोहटिया में स्थित है। यह मंदिर भोर में साढ़े चार बजे से रात साढ़े दस बजे तक खुला रहता है। प्रतिदिन मंगला आरती पौने पांच बजे सुबह व शाम की आरती रात साढ़े दस बजे होती है। बुधवार को मंदिर में विशेष आरती रात साढ़े ग्यारह बजे होती है।

देहली विनायक - देहली विनायक का मंदिर वाराणसी शहर से 20 किलो मीटर दूर गांव में स्थित है। यह मंदिर हर समय खुला रहता है।

दुर्मुख विनायक - दुर्मुख विनायक का मंदिर सी के 34/60 काशी करवट मंदिर के पास स्थित है। चौक से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

द्वार विनायक - द्वार विनायक का मंदिर स्वर्गद्वारेश्वर मणिकर्णिका घाट के पास स्थित है। यहां कभी भी दर्शन-पूजन किया जा सकता है।

द्विमुख विनायक - द्विमुख विनायक का मंदिर डी 51/90 संबा आदित्य के पश्चिम सूरज कुण्ड के पास स्थित है।

एक दंत विनायक - एक दंत विनायक का मंदिर डी.32/102 पुष्प दंतेश्वर बंगाली टोला में स्थित है। एक दंत विनायक काशी को बुरी शक्तियों से बचाते हैं।

गजकर्ण विनायक
का मंदिर – सी के 37/43, कोतवालपुरा ईशानेश्वर में स्थित हैं इस मंदिर में कभी भी दर्शन-पूजन कर सकते हैं।

गजविनायक - गज विनायक का मंदिर सी के 54/44 राजा दरवाजा बड़ा भूतेश्वर मंदिर के पास स्थित है। चौक से रिक्शा या पैदल चलकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

गणनाथ मंदिर - गणनाथ विनायक का मंदिर सी के 37/1 ढंढ़ी राज गली विश्वेश्वर मंदिर के पास स्थित है। ज्ञानवापी से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

ज्ञान विनायक - ज्ञान विनायक का मंदिर खोवा गली चौराहा सी के 28/4 लंगीलेश्वर मंदिर सुबह आठ से दस बजे तक और शाम छह बजे तक खुला रहता है।

ज्येष्ठ विनायक - ज्येष्ठ विनायक का मंदिर सी के 62/144 सप्तसागर मोहल्ला में स्थित है। मैदागिन से इस मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर दर्शन पूजन के लिए सुबह साढ़े पांच बजे से दोपहर साढ़े 12 बजे तक और शाम पांच से रात साढ़े आठ बजे तक खुला रहता है।

काल विनायक - काल विनायक सी के 247/10 राम घाट पर स्थित है। चौक से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

कलिप्रिय विनायक - कलिप्रिय विनायक का मंदिर डी 10/50 साक्षी विनायक के पीछे मनप्रकमेश्वर मंदिर के पास स्थित है।

खर्व विनायक - खर्व विनायक का मंदिर राजघाट किले के बगल में स्थित है।

उद्दण्ड विनायक - उद्दण्ड विनायक का मंदिर भुइली रामेश्वर में विद्यमान है।

पाशपाणी विनायक - इनका मंदिर सदर बाजार क्षेत्र में स्थित है।

सिद्धि विनायक - सिद्धि विनायक का मंदिर मणिकर्णिका कुण्ड के पास है।

लम्बोदर विनायक - लम्बोदर विनायक का मंदिर केदारघाट पर स्थित है।

कूटदन्त विनायक
- कूटदन्त विनायक का मंदिर – क्रींकुण्ड पर है।

शालकण्ड विनायक - इनका मन्दिर मण्डुवाडीह पर है।

कुण्डाण्ड विनायक - कुण्डाण्ड विनायक का मंदिर फुलवरिया में है।

मुण्ड विनायक - इनका मंदिर सदर बाजार में स्थित है।

विकटद्विज विनायक - इनका मंदिर धूपचंडी क्षेत्र में है।

राजपुत्र विनायक - इनका मंदिर राजघाट किले के पास स्थित है।

प्रणव विनायक - प्रणव विनायक का मंदिर त्रिलोचन घाट पर स्थित है।

वक्रतुण्ड विनायक - वक्रतुण्ड विनायक का मंदिर लोहटिया में है।

त्रिमुख विनायक - इनका मंदिर सिगरा टीले के पास है।

पंचास्य विनायक - पंचास्य विनायक का मंदिर पिशाचमोचन स्थित है।

हेरम्ब विनायक - हेरम्ब विनायक का मन्दिर मलदहिया इलाके में है।

विघ्न हरण विनायक - इनका मन्दिर चित्रकूट इलाके में स्थित है।

वरद विनायक - वरद विनायक का मन्दिर प्रह्लाद घाट पर है।

मोदक प्रिय विनायक - इनका मन्दिर त्रिलोचन मन्दिर के पास है।

सिंहकुण्ड विनायक - इनका मन्दिर खालिसपुरा में है।

कूणिताक्ष विनायक - इनका मन्दिर लक्ष्मीकुण्ड में है।

प्रसाद विनायक - प्रसाद विनायक का मन्दिर पितरकुण्डा पर है।

पिचडिला विनायक - इनका मन्दिर प्रह्लाद घाट पर है।

उद्दण्ड विनायक - इनका मन्दिर त्रिलोचन बाजार में स्थित है।

स्थूलदण्ड विनायक - इनका मन्दिर मानमंदिर के पास है।

नागेश विनायक - इनका मन्दिर भोंसला घाट पर है।

सृष्टि विनायक - इनका मन्दिर कालिका गली में है।

यक्ष विनायक - इनका मंदिर कोतवालपुरा में है।

मंगल विनायक - मंगल विनायक बालाघाट में स्थित है।

मित्र विनायक - इनका मन्दिर सिंधिया घाट पर विद्यमान है।

मोदक विनायक - इनका मन्दिर काशी करवट मन्दिर के पास है।

प्रमोद विनायक - प्रमोद विनायक का मन्दिर सी के 31/16 काशी में है।

सुमुख विनायक - विनायक का मन्दिर मोतीघाट पर स्थित है।
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!